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सोमवार, फ़रवरी 04, 2019

दीवारों से बतियाना

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मां
अक्सर बातें करती थी
दीवारों से अकेले ही,
कभी
समझा नहीं
मां का बतियाना
दीवारों से,
आज समझा हूँ 
होता क्या है
अकेलापन
और
एकटक
दीवारों को देखना,
दीवारों से
बतियाना,
एक उम्र के बाद
लगता है अच्छा
एकाकी
दीवारों को एकटक देखना
और
उनसे
अकेले बतियाना।

मंगलवार, नवंबर 13, 2018

हिन्दी कवि धूमिल

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09 नवंबर 1936 को ज़िला बनारस के गाँव खेवली में पैदा हुए धूमिल हिन्दी में साठोत्तरी पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि हैं | वे आज अगर हमारे बीच जीवित होते तो बयासी की उम्र के होते | वे मात्र कोई  38 साल की अल्पायु में ही सन्  1975 की 10 फरवरी को लखनऊ में ब्रेन ट्यूमर के चलते असमय ही चल बसे | धूमिल ने अपने समय की कविता के मुहावरे को बदलने का काम किया था | उनकी कविता में सपाटबयानी का शिल्प  उनकी अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी की नयी कविता में प्रतीकों और बिम्बों की जटिलता, दुरूहता एवं कृत्रिमता के विरूद्ध प्रतिक्रिया में सहज -स्वाभाविक तरीके से सामने आया था | उनकी कविता में समय के तीख़े स्वर को भारतीय स्तर पर सुना और जाना गया | उनकी कविताएँ जनतंत्र के ढोंग और छद्म को सामने लाती हैं | वे विषमता और अमानवीयता के ख़िलाफ सच्ची आवाज़ की तरह हैं | आज जबकि अपने समय की सच्चाइयों  को लेकर कई कवि अपनी नकली और कृत्रिम कविताओं की मार्केटिंग में  दिन-रात मुब्तिला हैं, धूमिल की कविताओं  की याद आना स्वाभाविक है | धूमिल की कविताएँ लोक से गहरे जुड़ी हैं | उनकी कविताओं में भाषा और उसके तल्ख़ तेवर में एक तरह का पूरबिया देशज ठाट देखा जा सकता है | धूमिल की कविताओं को पढ़ते हुए मुझे अक्सर महसूस होता है कि उनमें एक अभावग्रस्त किसान के संघर्षशील बेटे की बौखलाहट दिखती है | वे पूरी तरह से एक गँवई  और क़स्बाई संवेदना के कवि हैं | जीवन और कविता में साथ -साथ  प्रतिरोध की ज़मीन पर कैसे टिके रहा जा सकता है,  इसमें धूमिल अब भी हमें राह दिखाते हैं |  वे हमें चेतस और विवेकवान बनाते हैं | उनकी कविताएँ सड़क पर खड़े,गुस्से में अदहन की तरह खौलते आम आदमी की आवाज़ को संसद तक पहुँचाने का काम करती हैं | इधर धूमिल को स्त्री विरोधी और सामंती कहने का भी एक ट्रेन्ड चला है | यह समय धूमिल के काव्य के प्रति पॉजिटिव सोच अपनाने का है | अपने प्रिय कवि का सादर स्मरण कर रहा हूँ,  एक ऐसे समय में जब असहमतियों को दुश्मनियों में बदल दिया जा रहा है ; हर तरफ़ एक सच्ची , न्यायप्रिय और नैतिक आवाज़ का गला दबाया जा रहा है |

शनिवार, नवंबर 03, 2018

शब्द

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खो गए हैं
कुछ शब्द मेरे
जो है मेरे समीप
रहते थे आसपास मेरे ही,
मां के शब्द
भाई के शब्द
दोस्तों के शब्द
आत्मीय, प्रेम
और स्नेह के शब्द,
कहाँ होंगे
क्यों खो गए वे शब्द,
कहना चाहता हूँ
ढेरों कहानियां कविताएं
कुछ आपबीती
और कुछ जगबीती
परंतु वो शब्द खो गए हैं,
ढूंढता रहता हूं उन्हें
कहीं तो होंगे ही
मिलेंगे जरूर , है ये आस,
तब मैं शामिल हो जाऊंगा
तुम्हारी महफ़िल में
तुम्हारे कहकहों में
अभी मैं ढूंढ लूं उन्हें,
तुम भी देखना
तुम्हारे पास ही तो नहीं कहीं
वो शब्द
जो खो गए है
और ढूंढ रहा हूँ जिन्हें
मैं आसपास।

शुक्रवार, दिसंबर 29, 2017

इक दिन होना है

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ये तो इक न इक दिन होना है,
खेत नऐ रिश्‍तों का अब बोना है।

नियम कायदे सब, है मेरे लिए,
बाहरी आदमी हॅू मुझे बस कोना है।

देख के हाथों की आड़ी तिरछी लकीरे,
कहा उसने, इससे भी बूरा होना है।

आंखों के कोनों से बहता रहता है पानी,
यही सरमाया है, यही तो मेरा सोना है।

छल गया जो अपना बन कर, कह कर,
आज समझा कद में वह बहुत बौना है ।

विक्षिप्‍त को जि़ंदगी में देखना है क्‍या क्‍या,
संसार, गिरना गिराना पाना और खोना है।

बुधवार, जुलाई 06, 2016

मच्छर

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मच्छर
छोटे बड़े मंझलें 
करते हैं बहुत तंग
नहीं देते सोने
छोटे बड़े मंझलें
मच्छर।

सोमवार, जुलाई 04, 2016

सपने

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छोटे छोटे सपने
कुछ कुछ बेगाने
थोड़े थोड़े अपने।

रविवार, जून 26, 2016

ना कोई शिकायत

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ना कोई शिकायत ना कोई गिला,
एकाकी था, हूँ आज भी अकेला ।
होना,घटना, है सब प्रभु इच्‍छा,
आना जाना दुनिया इक मेला।

शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2015

अस्पताल

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अस्पताल
क्या अजब जगह है
बिखरी पड़ी है
वेदना दुःख दर्द 
जीवन मृत्यु के प्रश्न
इसी अस्पताल के 
किसी वार्ड के बिस्तर पर
तड़फती रहती है 
जिजीविषा
दवाइयों 
और सिरंज में 
ढूंढती रहती है जीवन
समीप के बिस्तर से 
गुम होती साँसों को देख
सोचती है 
जिजिबिषा 
कल का सूरज 
कैसा होगा .......

शनिवार, अप्रैल 05, 2014

ज़िल्लत की ज़िन्दगी

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ज़िल्लत की ज़िन्दगी जियो
अश्क अन्दर ही अन्दर पियो
देख ली तेरी खुदाई यारब
लानत है अब तो लब सियो

रविवार, मार्च 16, 2014

पाकदामन

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गुनाहगारों में शामिल है सब 
क्योंकर कहूँ पाकदामन हूँ मैं

सोमवार, फ़रवरी 03, 2014

मायने बदल गए

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संबधों के मायने बदल गए है
चेहरे वही आईने बदल गये हैं

दरो दीवार वही लोग है वही
परिवार के सयाने बदल गए है

सभी तोहमते है मेरे लिए 
खास तराने बदल गए है 

कोन करे भरोसा शमा  का 
अब तो परवाने बदल गए है

कैसे कहां करे बात दिल की
इश्‍क वही दीवाने बदल गए है

हस दिए आप भी विक्षिप्‍त पर
अजी दोस्‍त पुराने बदल गए है

गुरुवार, अक्तूबर 03, 2013

हिमाचल का पहला लघुकथाकार सम्मेलन

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हिम साहित्यकार सहकार सभा पंजीकृत  प्रदेश कार्यालय   मिश्रा भवन रौड़ा सेक्टर बिलासपुर 174001


हिम साहित्यकार सहकार सभा द्वारा आगामी 28 नवंबर 2013 को हिमाचल प्रदेश के दिल बिलासपुर के नगर परिषद सभागार में हिमाचल का पहला लघुकथाकार सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं लघुकथा के सशक्त हस्ताक्षर कमलेश भारतीय होंगे।इसके अलावा हरियाणा और उत्तराखंड से भी जाने माने लघुकथाकार विशिष्ट अतिथि के रूप में पधार रहे हैं। इस सम्मेलन में आजकल लिखी जा रही लघुकथा पर विशेष चर्चा होगी और लघुकथा पाठ भी करवाया जाएगा। सम्मेलन में एक अद्वितीय स्मारिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है
आपसे आग्रह है कि आप अपनी बेहतरीन पांच लघुकथाओं का सैट और अपने आने की पूर्व सूचना उपरोक्त पते पर दिनांक 15 अक्तूबर 2013 तक भिजवाएं ताकि उचित व्यवस्था की जा सके और चयनित लघुकथा को स्मारिका में प्रकाशित किया जा सके।

 
    अरूण डोगरा रीतू                      रतन चंद निर्झर
    प्रदेश महासचिव                प्रदेश अध्यक्ष
   98572 17200                                              94597 73121

रविवार, फ़रवरी 10, 2013

कैसा असर चढ़ा है जनाब

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कैसा असर चढ़ा है जनाब
सच बेजुवान पड़ा है जनाब

सम्‍बधों की परिभाषा क्‍या
काला चश्‍मा चढ़ा है जनाब


अच्‍छे बुरे की पहचान तो है
कुछ कानून हमने पढ़ा है जनाब


खुशबु फैलाओ तो बात बने
विष यहां भरा पड़ा है जनाब


समझाया आपने, समझा  कुछ नहीं
अपंगों ने युद्ध कहां लड़ा है जनाब


यही तो पता नहीं है क्‍यों है विक्षिप्‍त
बतायें किसका असर चढ़ा है जनाब

शनिवार, फ़रवरी 02, 2013

कुते भौंक रहे है

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गोरे गए अब काले लूट रहे है 
तिजोरियों के तालें टूट रहे है 

मुफलिसी का आलम है चहुं ओर 
हुक्‍मरानों के पटाखे फूट रहे है

आवाज उठाना तेरे मेरे बस में नहीं
सांस अन्‍दर ही अन्‍दर टूट रही है 

ख्‍वाब की बदल डालोगे जहां
ये कैसी इक हूक उठ रही है

मुन्सिब क्‍या पकड़ेगा जुर्म को
जनाब के पसीने छूट रहे है 

बस्‍ती में  घुस आए है गीदड़
सुनो ज़रा गोर से कुते भौंक रहे है 


रौशन जसवाल विक्षिप्‍त

बुधवार, जनवरी 23, 2013

उपाय

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उस दिन बस में भीड़ थी। अपेक्षाकृत ज्‍यादा भीड़। घर पहुंचने के लिए उसी बस में यात्रा करना जरूरी भी था। बस के भीतर गाना गाते शोर मचाते कुछ उदण्‍ड छात्रों को देख कर मुझे गुस्‍सा तो आया परन्‍तु चुप्‍पी के सिवा और क्‍या किया जा सकता था। 
कुछ दूर चलने के बाद बस के ब्रेक चरमराये तो शोर उठा चैकर आ गया चैकर आ गया। टिकट चैक हुए । उन छात्रों के पास टिकट थे ही नहीं। परिणमत: कुछ डाट के साथ उन्‍हे टिकट दिलाया गया और भविष्‍य के लिए चेतावनी भी दी ग‍ई।
बस पुन: चली। अब सब कुछ सामान्‍य था। न शोर और न ही गीत संगीत। अब वे छात्र बस में स्‍वयं को अलग थलग पा रहे थे। परन्‍तु शेष यात्रा शान्तिपूर्वक हुई। 
मैं स्‍वयं को बेहद हल्‍का महसूस कर रहा था। 

रविवार, अगस्त 19, 2012

जिजीविषा

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जिजीविषा
निरन्‍तर दौड़ती रहती है
कभी सीढि़यो पर
उतरते चढ़ते ,
वार्ड में प्रतीक्षा करते
स्‍ट्रेचर पर लेटे
व्‍हील चेयर पर
और
आप्रेशन थियेटर में,
जिजीविषा
 निरन्‍तर देखती रहती है
सिरंज में बूंद बूंद रक्‍त
और
सह लेती है
डायलसिस की वेदना,
 नर्सो की
अनावश्‍यक डांट,

जिजीविषा
महाप्रस्‍थान कभी नहीं चाहती
वो कहती है
यम से
तुम ज़रा
रूकों
अभी बहुत काम करने है मुझे ।





बुधवार, फ़रवरी 08, 2012

अश्विनी रमेश को हिमोत्‍कर्ष हिमाचलश्री पुरस्‍कार

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साहित्‍कार और प्रशासनिक अधिकारी अश्विनी रमेश को हिमोत्‍कर्ष साहित्‍य संस्‍कृति एवं जनकल्‍याण परिषद हिमाचल प्रदेश ने हिमोत्‍कर्ष हिमाचलश्री पुरस्‍कार 2011-12 से सम्‍मानित किया है। रमेश साहित्‍य में विशेष रूचि रखते है। अश्विनी रमेश का एक काव्‍य संग्रह ज़मीन से जुड़े आदमी का दर्द  भी प्रकाशित हो चु का है जिसे साहित्‍य जगत में बेहद सराहा गया है।  अश्विनी रमेश का जन्‍म 25 मई 1961 को जिला शिमला के ठियोग में गांव कुन्‍दली में हुआ। अश्विनी रमेश हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय से संस्‍कृत में एम0 फिल0 और अंग्रेजी में एम0ए0 की उपाधि प्राप्‍त है। अश्विनी रमेश की रचनायें विभिन्‍न पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ आकाशवाणी शिमला से प्रसारित भी हो  चुकी है। अश्विनी रमेश हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है और ठियोग की साहित्यिक संस्‍था सर्जक से भी जुड़े है। अन्‍तरजाल पर उनके महफिले शायरी  और Poetry--A Blend of Real, Natural and the Mystic   उपलब्‍ध है। अश्विनी रमेश को अनेकानेक बधाई। 


सोमवार, जनवरी 09, 2012

'तीसरी आँख' की पुरस्कार/सम्मान-श्रृंखला:

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जितेन्द्र 'जौहर' की त्रैमा. 'अभिनव प्रयास' (अलीगढ़, उप्र) के- बहुचर्चित साहित्यिक स्तम्भ 'तीसरी आँख' की पुरस्कार/सम्मान-श्रृंखला: के बारे में मेल मिली है साहित्यिक मित्रों के लिए विवरण दे रहा हूं 

त्रैमा. 'अभिनव प्रयास' (अलीगढ़, उप्र) के- बहुचर्चित साहित्यिक स्तम्भ 'तीसरी आँख' की पुरस्कार/सम्मान-श्रृंखला:

रविवार, दिसंबर 11, 2011

हिमाचल के लेखकों के लेखन की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

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 ठियोग के डिग्री कॉलेज में साहित्यिक संस्था 'सर्जक की ओर शनिवार को  रखी गई संगोष्ठी में हिमाचल के लेखकों के लेखन की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और उसके सरोकारों को लेकर विचार विमर्श हुआ। इसमें प्रदेश से बाहर से आए वरिष्ठ लेखक और आलोचक सत्यपाल सहगल ने कई टिप्स लेखकों को दिए। उन्होंने कहा कि हिमाचल में लिखा जा रहा साहित्य किसी तरह भी कमतर नहीं है। उन्होंने कविताओं में अध्यात्म की भी वकालत की। ठियोग में इतने सारे लेखकों के जुटने पर उनका कहना था कि ठियोग प्रदेश की साहित्यिक राजधानी बनता जा रहा है। पहले यह स्थान मंडी को हासिल था। हाल ही में बिहार की 'जनपथ और मध्यप्रदेश की 'आकंठा पत्रिकाओं की और से निकाले गए हिमाचल विशेषांकों के लिए संपादकों अनंत कुमार सिंह और हरिशंकर अग्रवाल का आभार जताया और हिमाचल के वर्तमान लेखन को समग्रता के साथ देश भर के पाठकों के सामने लाने के लिए उन्हें साधुवाद दिया। सर्जक के इस कार्यक्रम का दूसरा सत्र और भी सफल रहा जब हाल में प्रदेश के लगभग सभी वर्तमान हिन्दी कवियों ने अपनी बेहतरीन कविताएं सुनाईं। एक और जहां प्रदेश के स्थापित कवियों अवतार एनगिल, तेजराम शर्मा, रेखा, मधुकर भारती ने अपनी ताजा कविताएं सुनाईं, वहीं आजकल के चर्चित युवा कवियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। ऊना के कुलदीप शर्मा ने अपनी कविता 'सिक्योरिटी गार्ड के जरिए वर्तमान युवा पीढ़ी के असंतोष की ऐसी तस्वीर खींची कि हाल देर तक तालियों से गूंजता रहा। ऊना के ही युवा शायर शाहिद अंजुम ने अपनी गजलों के शेरों में परिवारों के टूटने, रिश्तों के बिखरने और महीन संवेदनाओं की परतें खोलते कई बिंब खींचे। उनकी एक बानगी देखिए-- अब तो मां बाप भी मुल्कों की तरह मिलते हैं-सरहदों की तरह औलाद भी बंट जाती है। केलंग से आए अजेय ने भी अर्थों की गहराई लिए कविता सुनाई। सुरेश सेन निशांत-सुंदरनगर, यादवेंद्र शर्मा, आत्माराम रंजन, ओम भारद्वाज, प्रकाश बादल, सुदर्शन वशिष्ठ, बद्री सिंह भाटिया, सत्यनारायण स्नेही, मोनिका, रत्न चन्द निर्झर, अरुण डोगरा, हरिदत्त वर्मा, देवेन्द्र शर्मा, वेद प्रकाश, सुनील ग्रोवर, मोहन आदि दो दर्जन कवियों ने कविता पाठ किया। पहले सत्र की अध्यक्षता डॉ. सत्यपाल सहगल और दूसरे सत्र की अध्यक्षता अवतार एन. गिल ने की। मंच संचालन सुदर्शन वशिष्ठ और आत्माराम रंजन ने किया।

शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

ग़ज़ल

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पत्ते जीवन के कब बिखर जाए क्‍या मालूम
शाम जीवन की कब हो जाए क्‍या मालूम

बन्‍द हो गए है रास्‍ते सभी गुफतगू के
अब वहां कौन कैसे जाए क्‍या मालूम

झूठ पर कर लेते है विश्‍वास सब
सच कैसे सामने आए क्‍या मालूम

दो मुहें सापों से भरा है आस पास
दोस्‍त बन कौन डस जाए क्‍या मालूम

विक्षिप्‍त की दुनिया है बेतरतीव बेरंग
कोई संगकार सजा जाए क्‍या मालूम
 
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