google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : विविध

विविध लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
विविध लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, मई 17, 2023

अंतरराष्‍ट्रीय संग्रहालय दिवस

0 Reviews

 संग्रहालय  जगह होती है, जहां पर संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक महत्व रखने वाली अतीत की स्मृतियों के अवशेषों और कलाकृतियों को सु‍रक्षित रखा जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ी को पुरानी संस्‍कृति से जोड़ा जा सके. इसके लिए भारत समेत दुनियाभर में तमाम म्‍यूजियम बनाए गए हैं. इन संग्रहालय की महत्‍ता को समझाने के लिए हर साल 18 मई को अंतरराष्‍ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जाता है

देश का सबसे बड़ा म्‍यूजियम कोलकाता में है. इस संग्रहालय को भारतीय संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. भारतीय संग्रहालय का पुराना नाम इंपीरियल म्यूजियम था, बाद में बदलकर इंडियन म्यूजियम कर दिया गया. जवाहरलाल स्ट्रीट पर स्थित इस म्‍यूजियम को छह खंडों में बनाया गया है.

इस म्‍यूजियम की स्‍थापना अंग्रेजों के समय में सन 1814 ई. में की गई थी. भारत की विरासत की रक्षा के लिए इसकी  स्थापना एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल ने की थी और इसे नेथेलिन वैलीच की देख-रेख में बनाया गया था. विलियम जॉन्स ने इस संग्रहालय को बनवाने में अहम योगदान दिया था. इस म्‍यूजियम के बाद ही भारत में तमाम संग्रहालय बनने शुरू हुए.

इस संग्रहालय को छह खंडों आर्कियोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी, जियोलॉजी, जूलॉजी, इंडस्ट्री और आर्ट में बनाया गया है. एंथ्रोपोलॉजी सेक्‍शन में आप मोहनजोदड़ो और हड़प्पा काल की निशानियां देख सकते हैं. यहां चार हजार साल पुरानी मिस्र की ममी भी रखी है.

हिमाचल का राज्‍य संग्रहालय शिमला में एक पुरानी विक्टोरियन हेवली में बनाया गया है। यह हवेली कभी लॉर्ड विलियम बेरेस्फोर्ड का निवास स्थान हुआ करती थी, जो वायसराय लॉर्ड विलियम बेनटिक के सैन्य सचिव थे। ब्रिटिश साम्राज्य के चले जाने के बाद यह इमारत भारत के सरकारी अधिकारियों के निवास स्थान के रूप में इस्तेमाल की जाने लगी। 26 जनवरी 1974 को इस इमारत में शिमला स्टेट म्यूजिम का उद्घाटन हुआ। 

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की स्थापना 1977 में मॉस्को, रूस में ICOM महासभा के दौरान की गई थी। अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम दिवस18 मई को सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच आपसी समझ, सहयोग और शांति के विकास के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में मनाने के लिए किया गया।


विवरण सभार 

रविवार, मार्च 19, 2023

शिमला मैं तुम्हे याद करता हूँ।

0 Reviews

शिमला


मैं तुम्हे याद करता हूँ। बचपन यही तो बिता है। मटरगश्ती भी तो यही की है। ढली उस समय मिडल स्कूल होता था। मशोबरा से दसवीं पास करने के बाद संजौली कॉलेज में दाखिला लिया तो मानो आसमान मिल गया। कक्षाएं लगाने के बाद रिज पर जाना लोगो को देखना गप्पे लगाना हमेशा याद आता है। संजौली में कलकत्ता टी स्टॉल के परांठे हमेशा याद आते है। हाँ खाली समय मे सेंट बीड्स की तरफ चक्कर लगाना भी याद है।

स्नातक होने के बाद विश्वविद्यालय में प्रवेश ने नए आयाम दिए। कभी कभी ढली से समरहिल तक पैदल पहुंचना याद है। रिज पर लवीना में सॉफ्टी का आनंद मैं कभी नहीं भूल सकता और रिज पर पर बढ़े पेड़ के नीचे बैठे भाई से मूंगफली खाना मेरी स्मृतियों में है।

कभी सोचता था यहीं जीवन बीत जाएगा। गोष्ठियां होंगी कविताएं सुनाऊंगा कविताएं सुनूंगा।

ईश्वर आपके लिए क्या सोचता है कोई नहीं जानता।

ये फोर लेन कहां से आ गया विस्तफीत कर दिया ऐसा कभी सोचा नहीं था। फोरलेन तुम्हे मैं कभी माफ नहीं करूंगा । तुमने मेरे आत्मीयों को मुझ से छीना है और मुझे अकेला किया है।

मैं ये किस शहर में आ गया हूँ। यहां तो मैं अकेला हो गया हूँ ।

जब शिमला तुम मुझे बुलाते हो मैं अपने को रोक नहीं पता हूँ। गेयटी में हिमालयन मंच का आयोजन हो या कीकली या फिर भाषा विभाग का आयोजन। हिमालयन मंच तो काफी बाद में बना ये तरुण संगम होता था और ग्रेंड होटल के सभागार में आयोजन होते थे।

इसी समय कालीबाड़ी के रास्ते में गोलगप्पों का आनंद उठाते थे। वो जो काली बॉडी के पास गोलगप्पों वाला है उसका ज़ायका अलग था अगली बार समय मिला तो जरूर उससे मिलूंगा। अब वही है या नहीं मालूम नहीं ।

रेडियो और दूरदर्शन तक मुझे भूल गए है। उनसे कोई शिकायत नहीं। कुछ लोग समय के साथ बदल जाते है।

ये सब न लिखता अगर कीकली ने बच्चों के कार्यक्रम में न बुलाया होता।

मुझे हिमालयन मंच के आमन्त्रण का इंतज़ार रहता है। ये इसलिए की मेरे लेखन की शुरुआत में इसका बहुत बड़ा हाथ है। बाकी भाषा विभाग और अकादमी तो मुझे कभी याद करता ही नहीं। उनकी सूची में मैं हूँ ही नहीं।

कभी सोचा नहीं था जीवन के अंतिम पड़ाव मैं इस शहर सोलन आ जाऊंगा। लेकिन तुमसे शिकायत है तुम बहुधा पूर्वाग्रह में आ जाते हो। ये पूर्वाग्रह ये दल बंधी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। इस बारे कभी किसी दिन और बात करूँगा।

शिमला मैं कुछ नहीं भुला हूँ क्या तुम्हे कुछ याद है। शिमला मैं तुम्हे बहुत याद करता हूँ। परंतु तुम तो मुझे भूल गए हो....।


तस्‍वीर साभार नमन पांडेय

शनिवार, जनवरी 12, 2019

कुमारसैन में ‘मंथन’ ने लिखी शब्द सृजन की ऐतिहासिक इबारत

0 Reviews

 कुमारसैन में मंथनने लिखी शब्द सृजन की ऐतिहासिक इबारत*

एस आर हरनौट ने ज्योति जला किया आगाज

बाली ने किया बेहतरीन मंच संचालन

साहित्यिक रूप से लगभग शांत पड़ी कुमारसैन की फ़िजाओं ने उस वक्त नई हवाओं की खुशबू का एहसास किया जब दुनिया के शोर-शराबे से दूर आइ टी आई के भव्य भवन के सुंदर सभागार में साहित्य मंच मंथनने अपनी पहली साहित्य गोष्ठि का आयोजन कर क्षेत्र में शब्द सृजन की एक नई इबारत लिखी। 18 दिसंबर 2018 को 25 कवियों व 100 से अधिक सुधि ग्रामीण श्रोताओं की 250 से ज्यादा निगाहों ने मशहूर लेखक एस आर हरनौट व मंथनसदस्यों के हाथों मां सरस्वती के चरणों में साहित्य की लौ जला कर मंथनका शुभारम्भ किया। मालूम नहीं उन्हें बीज़ हैं लफ़्ज़ मेरे, नव सृजन का ऐलान करते हैं।मंच संचालक लेखक जगदीश बाली के इन्हीं शब्दों के साथ काव्य पाठ का आगाज़ हुआ। मशहूर लेखक हरनौट जी की टीम, जो "हिमालय साहित्य संस्कृति मंच" व 'हिमवाणी संस्था' के साहित्यकारों से लवरेज़ है, ने मंथनके साथ मिल कर अपनी 'आम जन तक साहित्य 2018 को यादगार विराम दिया और इस तरह मंथनका शानदार आगाज़ हुआ। कवियों की शालीनता और स्तर हर किसी के दिल में उतर गए जो एक साहित्यकार के आदर्श व्यक्तित्व की वानगी है।

सर्वप्रथम प्रतिभा मेहता ने अपनी गज़ल हंस के हर ज़ख्म पिए जाते हैंको तरन्नुम में प्रस्तुत कर एक बढ़िया शुरुआत की। युवा कवयित्री शिल्पा ने अपनी कविता बादल ने दी जीवन जीने कि प्रेरणाने सबको प्रभावित किया। कुलदीप गर्ग तरुण के शेरों ने भी अंतर्मन को छुआ। इसी बीच कवियों के बीच होती हल्की-फ़ुल्की टिका टीप्पणियों व नौक-झौंक से सभागार ठहाकों से भी गूंजता रहा। पूजा शर्मा की कविता वर्षों बाद मिल गया पुराना दोस्त था मेराव वंदना राणा की इधर भी हैं मज़बूरियां गीत क्या गाने लगा है शहरवर्तमान माहौल पर करारा कटाक्ष था। अपने चिर-परिचित हास्यपूर्ण आंदाज़ में नरेश देवग ने जहां नौजवानों को सुसंस्कृत व नशे से दूर रहने की सलाह दी, वहीं नव वर्ष पर उनकी कविता ने श्रोताओं को ठहाके लगाने पर मज़बूर कर दिया। उन्होंने तरन्नुम में नेताओं पर भी तंज़ कसे। मंथनमंच के संयोजक हतिंदर शर्मा ने मां जीना सिखा दियाऔर निरुत्साहित नहीं निष्फ़ल हूंजैसी छोटी छोटी रुहानी कविताओं से सबके दिलों को छुआ। मंच प्रचारक व स्थानीय युवा कवि दीपक भारद्वाज ने जाड़े की धूपकविता से काफ़ी असर छोड़ा। पत्थर तोड़ती औरतकविता संग्रह के लेखक मनोज चौहान ने अपनी कविता से सबको आकर्षित किया। प्रसिद्ध कवि आत्मा रंजन की यूं आए नया सालसबको भा गई। मोनिका छटू की कविता दुखमें चौसर का खेल काफ़ी गहराई लिए हुए लगा। मंथनके सलाहाकार अमृत कुमार शर्मा ने कविता मैं लिखूंगा किताब जब तब देखनाके माध्यम से राजनीतिज्ञ व अफ़सरशाही पर व्यंग्य साधा। मंथनके सचेतक रौशन जसवाल की कविता मैं बच्चा बनना चाहता हूंभी बहुत सराही गई। गुपतेश्वर उपाध्याय के संक्षिप्त काव्यपाठ ने सब के मन को छू लिया। उमा ठाकुर ने पहाड़ी भाषा में अपने कविता पाठ से स्थानीय उत्सवों, रीति-रिवाजों व पकवानों से अवगत करवाया। रीतिका और ज्ञानी शर्मा ने पहाड़ी झूरियों से गोष्ठि को नया आयाम दिया। मंथनके सदस्य ताजी राम वनों की हरयाली पर कविता से सबको प्रभावित किया। युवा कवयित्री कल्पना गांगटा की कविताओं ने युवाओं को समाज के लिए कुछ करने का संदेश दिया। डॉ. स्वाती शर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से नारी की व्यथा को दर्शाया तथा युवा कवि राहुल बाली ने अपनी कविता हम अकेले थेसे बहुत प्रभाव छोड़ा। लगभग साड़े चार घंटे तक चली इस गोष्ठि में मंच संचालन भी उत्कृष्ठ रहा। संचालक ने अपने शेर-गज़लों, क्षणिकाओं, हाज़िर जवाबी व ठिठोली से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। वास्तव में मंथनका ये पहला कार्यक्रम पहला होते हुए भी सबके दिल में उतर गया। इस बीच गिरिराज से आए विशाल हृदय कवि अश्वनी की कविता कहीं रह गई। परंतु मंथन के सदस्यों से गले मिल कर उन्होंने सबका दिल जीत लिया। भविष्य जब कुमरसैन के इतिहास के पन्नों को पलटेगा, इसके एक पन्ने पर ये भी लिखा होगा कि 18 दिसंबर 2018 को मंथनने हिमालय साहित्य संस्कृति मंचव हिमवाणि मंच के साथ मिलकर साहित्य की लौ जला कर एक शब्द सृजन की इबारत लिखी थी। इस इबारत लिखने में आई टी आई के प्रधानाचार्य हितेश शर्मा, उनके स्टाफ व छात्रों के योगदान को मंथनहमेशा याद रखेगा।

 

मंगलवार, नवंबर 13, 2018

हिन्दी कवि धूमिल

1 Reviews

09 नवंबर 1936 को ज़िला बनारस के गाँव खेवली में पैदा हुए धूमिल हिन्दी में साठोत्तरी पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि हैं | वे आज अगर हमारे बीच जीवित होते तो बयासी की उम्र के होते | वे मात्र कोई  38 साल की अल्पायु में ही सन्  1975 की 10 फरवरी को लखनऊ में ब्रेन ट्यूमर के चलते असमय ही चल बसे | धूमिल ने अपने समय की कविता के मुहावरे को बदलने का काम किया था | उनकी कविता में सपाटबयानी का शिल्प  उनकी अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी की नयी कविता में प्रतीकों और बिम्बों की जटिलता, दुरूहता एवं कृत्रिमता के विरूद्ध प्रतिक्रिया में सहज -स्वाभाविक तरीके से सामने आया था | उनकी कविता में समय के तीख़े स्वर को भारतीय स्तर पर सुना और जाना गया | उनकी कविताएँ जनतंत्र के ढोंग और छद्म को सामने लाती हैं | वे विषमता और अमानवीयता के ख़िलाफ सच्ची आवाज़ की तरह हैं | आज जबकि अपने समय की सच्चाइयों  को लेकर कई कवि अपनी नकली और कृत्रिम कविताओं की मार्केटिंग में  दिन-रात मुब्तिला हैं, धूमिल की कविताओं  की याद आना स्वाभाविक है | धूमिल की कविताएँ लोक से गहरे जुड़ी हैं | उनकी कविताओं में भाषा और उसके तल्ख़ तेवर में एक तरह का पूरबिया देशज ठाट देखा जा सकता है | धूमिल की कविताओं को पढ़ते हुए मुझे अक्सर महसूस होता है कि उनमें एक अभावग्रस्त किसान के संघर्षशील बेटे की बौखलाहट दिखती है | वे पूरी तरह से एक गँवई  और क़स्बाई संवेदना के कवि हैं | जीवन और कविता में साथ -साथ  प्रतिरोध की ज़मीन पर कैसे टिके रहा जा सकता है,  इसमें धूमिल अब भी हमें राह दिखाते हैं |  वे हमें चेतस और विवेकवान बनाते हैं | उनकी कविताएँ सड़क पर खड़े,गुस्से में अदहन की तरह खौलते आम आदमी की आवाज़ को संसद तक पहुँचाने का काम करती हैं | इधर धूमिल को स्त्री विरोधी और सामंती कहने का भी एक ट्रेन्ड चला है | यह समय धूमिल के काव्य के प्रति पॉजिटिव सोच अपनाने का है | अपने प्रिय कवि का सादर स्मरण कर रहा हूँ,  एक ऐसे समय में जब असहमतियों को दुश्मनियों में बदल दिया जा रहा है ; हर तरफ़ एक सच्ची , न्यायप्रिय और नैतिक आवाज़ का गला दबाया जा रहा है |

सोमवार, अप्रैल 07, 2014

ज़िल्लत

0 Reviews
जिल्लत से बेहतर है की मौत आ जाये

शनिवार, अप्रैल 05, 2014

ज़िल्लत की ज़िन्दगी

0 Reviews
ज़िल्लत की ज़िन्दगी जियो
अश्क अन्दर ही अन्दर पियो
देख ली तेरी खुदाई यारब
लानत है अब तो लब सियो

गुरुवार, अप्रैल 03, 2014

फासले

0 Reviews
लोगों ने बेवजह फासले बना लिए
परिंदों ने नए घोसले बना लिए

मंगलवार, मार्च 18, 2014

कैसी दिवाली कैसी होली

1 Reviews
कैसी दिवाली कैसी होली
धूमिल रौशनी फीकी रंगोली
कुछ पास कुछ बहुत दूर
दूषित है अपनों की बोली
कैसा प्रेम कहाँ का नाता
बहरूपियों ठगों की टोली
हवाओं में अजब सन्नाटा
ज़हर भरी कुटिल ठिठोली
कैसे खेलूं कंच्चे गिली डंडा
खो गए है प्रिय हमजोली
जड़े गहरी है वर्गभेद की 
कौन समझेगा मेरी बोली

रविवार, मार्च 16, 2014

पाकदामन

0 Reviews
गुनाहगारों में शामिल है सब 
क्योंकर कहूँ पाकदामन हूँ मैं

मंगलवार, जनवरी 08, 2013

गंभरी देवी की आवाज सदा के लिए खामोश हो गई

0 Reviews

gambhari
 हिमाचल कोकिला  गंभरी देवी की मनमोहक आवाज सदा के लिए खामोश हो गई खाणा पीणा नंद लैणी ओ गंभरिए, खट्टे नी खाणे मीठे नी खाणे, खाणे बागे रे केले ओ...।
जिंदगी को इसी खुशनुमा अंदाज में जीते हुए  गंभरी देवी की आज आवाज सदा के लिए खामोश हो गई। संस्कृति एवं कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए टेगोर अवार्ड से सम्‍मानित बिलासपुर की गंभरी देवी का निधन हो गया है। उनकी मृत्यु का संस्कृति
एवं लोक कला के क्षेत्र से जुडे़ लोगों के लिए यह बड़ी क्षति मानी जा रहा है। आज प्रात:  गंभरी ने अपने पैतृक गांव डमेहर में अंतिम सांस ली। आज ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनके बडे़ बेटे मेहर सिंह ने उन्हें आग लगाई।  गंभरी देवी हिमाचल ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में अपनी कला का लोहा मनवा चुकी है। अपने मशहूर गीतों को जहां उन्होंने सुरीली आवाज दी वहीं उनके नृत्य का अंदाज भी कम नहीं था। बिलासपुर जिले की बंदला धार पर स्थित गांव बंदला में करीब 90 वर्ष पूर्व गरदितु और संती देवी के घर जन्मी गंभरी किशोरावस्था से ही कला के बुलंदियों पर पहुंची। अनपढ़ होते हुए भी अपने गीत खुद बनाए। आवाज दी और नृत्य कर उसे और आकर्षक बनाया। गंभरी देवी को अखिल भरतीय साहित्य एवं कला अकादमी दिल्ली की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से वह वहां नहीं जा पाई थी लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इसी वर्ष 15 अगस्त को कुल्लू में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान दिया। उन्हें टेगोर अवार्ड से भी नवाजा गया। गंभरी देवी ने जालंधर दूरदर्शन में भी अनेक कार्यक्रम दिए। वहां सैनिकों के लिए भी उन्होंने कई कार्यक्रम पेश किए

शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

वर्गभेद

0 Reviews

आप जहां रहते है वहां के लोगों से अपनत्‍व होना स्‍वाभाविक है आप चाहे किसी भी क्षेत्र से क्‍यों न हो। इसी अपनत्‍व में लोग आपसे बहुत कुछ चाहने लगते है। यदि आप नहीं दे पाए तो लोगों का मन कितना काला है ये सामने आ ही जाता है। क्‍या कोई ऐसा नहीं है जो ईमानदारी सरलता का सही मूल्‍यांकन कर सके या सभी वर्गभेद में डूबे हुए है । योग्‍यता का कोई सम्‍मान नहीं रहा है शायद। अन्‍तकरण भीतर तक छलनी हो जाता है यह भेद देख कर । क्‍या सभी कसाई है कि मौका मिला तो मुर्गा मरोड़ ही देगे। हम पीछे की ओर चल रहे या अग्रसर है क्‍या मालुम। फूल बोने पर क्‍या कांटे ही मिलते रहेगे। अब तो हद हो गई है यारब ..............


शनिवार, सितंबर 24, 2011

लाटरीयां कैसी कैसी

1 Reviews
अकसर लोग कहा करते है कि अन्‍तरजाल पर आपको अच्‍छी और बुरी हर प्रकार की सामग्री मिल जाती है। यह व्‍यक्ति विशेष पर है कि वह किसका उपयोग कैसे करता है। अन्‍तरजाल पर ठग भी भरे पड़े है । जब भी अपना मेल बाक्‍स खोलता हूं तो विशेष छूट और लाटरी की मेल देखने को मिलती थी । आरम्‍भ में ये सभी मेल पत्र स्‍वरूप में होती थी। लेकिन अब ठगों ने प्रमाण पत्र भेजने शुरू कर दिये है । लेकिन मेल के मसौदे में अन्‍तर कुछ भी नहीं होता। मेल में रूपये भेजने की बात पहले भी होती थी अब भी होती है। फर्क मात्र इतना है कि लाटरी की सूचना प्रमाण पत्रों के साथ सूचित की जाती है साथ ही एक तस्‍वीर लगा राजनायिक परिचय पत्र । अगर आप मेल में बताई गई वेब साईट पर जाते है तो वह होती ही नहीं है। अब इन ठगों ने भारतीय कम्‍पनीयों के नामों का सहारा लेना भी आरम्‍भ कर दिया है। या हो सकता है कि वे भारतीय ठग हो। खैर मेल तो आती रहेगी। भारी भरकम राशि का लालच भी होगा और साथ ही प्रमाण पत्र भी। चलो इस बहाने  इन प्रमाण पत्रों को देख कर खुश हो जाया करेंगे। अपने मित्रों के लिए इन सभी के वेब शाटस दे रहा हूं । रूपया तो मिलने से रहा। आप बधाई तो देगे ही। 

 
ब्लोगवाणी ! INDIBLOGGER ! BLOGCATALOG ! हिंदी लोक ! NetworkedBlogs ! हिमधारा ! ऐसी वाणी बोलिए ! ब्लोगर्स ट्रिक्स !

© : आधारशिला ! THEME: Revolution Two Church theme BY : Brian Gardner Blog Skins ! POWERED BY : blogger