आप जहां रहते है वहां के लोगों से अपनत्व होना स्वाभाविक है आप चाहे किसी भी क्षेत्र से क्यों न हो। इसी अपनत्व में लोग आपसे बहुत कुछ चाहने लगते है। यदि आप नहीं दे पाए तो लोगों का मन कितना काला है ये सामने आ ही जाता है। क्या कोई ऐसा नहीं है जो ईमानदारी सरलता का सही मूल्यांकन कर सके या सभी वर्गभेद में डूबे हुए है । योग्यता का कोई सम्मान नहीं रहा है शायद। अन्तकरण भीतर तक छलनी हो जाता है यह भेद देख कर । क्या सभी कसाई है कि मौका मिला तो मुर्गा मरोड़ ही देगे। हम पीछे की ओर चल रहे या अग्रसर है क्या मालुम। फूल बोने पर क्या कांटे ही मिलते रहेगे। अब तो हद हो गई है यारब ..............
शुक्रवार, सितंबर 30, 2011
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