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रविवार, सितंबर 04, 2022

उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत। --- स्वामी विवेकानन्द

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भारतीय इतिहास में स्वामी विवेकानन्द को एक युगपुरूष के रूप में स्मरण किया जाता है। शिक्षा और धर्म पर स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएं हमेशा समाज को प्रेरित और प्रोत्साहित करती रही है। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान हैं। शिक्षा का उद्देश्य तथ्यों को सीखना नहीं होता है बल्कि शिक्षा का मुख्य दिमाग को प्रशिक्षित करना होता है। हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र बने, मानसिक विकास हो, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

स्वामी विवेकानन्द विद्यार्थियों को हमेशा चरित्र निर्माण के लिए प्रेरित करते ही थे साथ ही उसमें नवीन विचारों और जानकारियों को जानने की जिज्ञासा भी हो । वे कहा करते थे कि एक छात्र का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि वह हमेशा अपने अध्यापक से सवाल पूछे। वे कहते थे कि प्रेरणा वह शक्ति है जो बच्चों को बाधाओं या चुनौतियों का सामना करने पर भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। यह उन्हें उनकी क्षमता को पूरा करने के लिए आवश्यक ऊर्जा के साथ चार्ज करता है। एक बच्चा जो प्रेरित होता है वह प्रतिबद्ध, ऊर्जावान और अभिनव होता हैः वे जो सीख रहे हैं उसमें मूल्य देखते हैं, और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्पित होते हैं।

पुस्तकों और मित्रों की महता पर वे कहा करते थे कि एक बेहतरीन किताब सौ अच्छे दोस्तों के बराबर है, लेकिन एक सर्वश्रेष्ठ दोस्त पुस्तकालय के बराबर है।

अक्सर कमजोर विद्यार्थियों से वे कहा करते थे कि सीखने से दिमाग कभी खत्म नहीं होता। जिन चीजों को करने से पहले हमें सीखना होता है, हम उन्हें करके सीखते हैं। सीखना संयोग से प्राप्त नहीं होता है, इसे लगन के साथ खोजा जाना चाहिए और परिश्रम के साथ इसमें भाग लेना चाहिए। सीखने की खूबसूरत बात यह है कि कोई भी इसे आपसे दूर नहीं ले जा सकता है। जिस अभ्यास से मनुष्य की इच्छाशक्ति, और प्रकाश संयमित होकर फलदाई बने उसी का नाम है शिक्षा।

पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान, ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है

उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तमु अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते

स्वामी जी अपने शिष्यों से अक्सर कहा करते थे कि शिक्षा के माध्यम से मानव धर्म के मूल तत्व को समझ पाता हैं।  शैक्षिक धर्म का मूल उद्देश्य है मनुष्य को सुखी करना, किंतु परजन्म में सुखी होने के लिए इस जन्म में दुःख भोग करना कोई बुद्धिमानी का काम नहीं है। इस जन्म में ही, इसी समुचित शिक्षा प्राप्त करने से ही सुख मिलेगा। जिस धर्म के द्वारा ये संपन्न होगा, वहीं मनुष्य के लिए उपयुक्त धर्म है।



मंगलवार, फ़रवरी 14, 2012

कुमारसैन की पल्‍लवी जाऐगी जापान

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राजकीय वरिष्‍ठ माध्‍यमिक पाठशाला कुमारसैन शिमला की छात्रा पल्‍लवी वर्मा का चयन जापान यात्रा के लिए हुआ है। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय The Japan East Asia Network of Exchange for Students and Youths (JENESYS) के तहत यह चयन हुआ  है । इस योजना के तहत पुरे देश से लगभग पौन तीन सो छात्र छात्राओं का चयन हुआ है। शिमला जिला से इस यात्रा के लिए 14 छात्रों का चयन हुआ है। पाठशाला के प्राचार्य कमलजीत सिंह ठाकुर ने पल्‍लवी को इस चयन के लिए बधाई देते हुए इसे  स्‍कूल और क्षेत्र के लिए गर्व की बात बताया है। जमा एक कक्षा में विज्ञान संकाय की छात्रा पल्‍लवी कुमारसेन के साथ लगते गांव बई से बलबीर सिंह वर्मा  की पुत्री है।  पल्‍लवी ने इस सफलता का श्रेय अपने माता पिता और अध्‍यापकों को दिया है। पल्‍लवी आरम्‍भ से ही होनहार छात्रा रही है। दसवीं की हिमाचल प्रदेश स्‍कूल शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में भी पल्‍लवी ने नब्‍बे प्रतिशत से उपर अंक प्राप्‍त किये है। 

सोमवार, जनवरी 30, 2012

गांधी जी

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गांधी जी श्रीमद्भागवत गीता को अपना मार्गदर्शक धर्मग्रंथ मानते थे। एक बार किसी ने उनसे पूछा, 'गीता की किस बात ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया है?' गांधी जी ने जवाब दिया, ' वैसे तो गीता के कई उपदेश उल्लेखनीय हैं, पर निष्काम कर्म करते रहने और सत्य-न्याय पर अटल रहने के उपदेश को वह सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। इसके साथ ही आवश्यकता से अधिक संपत्ति संचय करना भी अधर्म है।'  एक बार गांधी जी का एक परिचित धनाढ्य उनसे मिलने पहुंचा। उसने कहा, 'जमाना बेईमानों का है। आप तो जानते ही हैं कि मैंने अमुक नगर में लाखों रुपये खर्च कर धर्मशाला का निर्माण कराया था। अब गुटबाजों ने मुझे ही प्रबंध समिति से हटा दिया है। क्या न्यायालय में मामला दर्ज कराना उचित होगा?' गांधी जी ने कहा, 'तुमने धर्मशाला धर्मार्थ बनवाई थी या उसे व्यक्तिगत संपत्ति बनाए रखने के लोभ में?   असली धर्म तो वह होता है, जो बिना लाभ की इच्छा के किया जाता है। तुम अभी तक नाम व प्रसिद्धि का लालच नहीं त्याग पाए हो। इसलिए तुम पद से हटाए जाने से दुखी हो।' यह सुनकर उस व्यक्ति ने संकल्प लिया कि वह आगे किसी भी पद अथवा नाम के विवाद में नहीं पड़ेगा।  गांधी जी लोगों से स्वाधीनता आंदोलन व हरिजन कल्याण के कार्यों के लिए चंदा लिया करते थे। वह उसका एक पैसा भी अपने ऊपर खर्च नहीं करते थे। उनका मानना था कि दूसरों के खून-पसीने के पैसे का अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करना अधर्म है।

साभार अमर उजाला 

शनिवार, नवंबर 19, 2011

रानी लक्ष्मीबाई

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 रानी लक्ष्मीबाई ( 19 नवंबर 1828  17 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। इनका जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी ब्राह्मण थे और मराठा पेशवा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृतबुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की म्रत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली।  सन 1842 लक्ष्मीबाई रखा गया। सन 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन 1853 में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु 21नवंबर 1853 में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थेको झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दियातथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झाँसी के किले को छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था। झाँसी 1857के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। 1857 के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथादतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानीदामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई.

इंदिरा गांधी

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इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी :  (19 नवंबर 1917 -31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्यातक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।

इन्दिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इन्दिरा को उनका गांधी उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के पश्चात मिला था। इनका मोहनदास करमचंद गाँधी से न तो खून का और न ही शादी के द्वारा कोई रिश्ता था। इनके पितामह मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे। इनके पिता जवाहरलाल नेहरूभारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे।
1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे विफल रहीं, और ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद इन्होने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इस समय के दौरान इनकी अक्सर फिरोज़ गाँधी से मुलाकात होती थी, जिन्हे यह इलाहाबाद से जानती थीं, और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। अंततः 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्मब्रह्म-वैदिक समारोह में इनका विवाह फिरोज़ से हुआ।
ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं।
1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।

श्री लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिती में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं कॉंग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमे आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई।

शनिवार, सितंबर 24, 2011

लाटरीयां कैसी कैसी

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अकसर लोग कहा करते है कि अन्‍तरजाल पर आपको अच्‍छी और बुरी हर प्रकार की सामग्री मिल जाती है। यह व्‍यक्ति विशेष पर है कि वह किसका उपयोग कैसे करता है। अन्‍तरजाल पर ठग भी भरे पड़े है । जब भी अपना मेल बाक्‍स खोलता हूं तो विशेष छूट और लाटरी की मेल देखने को मिलती थी । आरम्‍भ में ये सभी मेल पत्र स्‍वरूप में होती थी। लेकिन अब ठगों ने प्रमाण पत्र भेजने शुरू कर दिये है । लेकिन मेल के मसौदे में अन्‍तर कुछ भी नहीं होता। मेल में रूपये भेजने की बात पहले भी होती थी अब भी होती है। फर्क मात्र इतना है कि लाटरी की सूचना प्रमाण पत्रों के साथ सूचित की जाती है साथ ही एक तस्‍वीर लगा राजनायिक परिचय पत्र । अगर आप मेल में बताई गई वेब साईट पर जाते है तो वह होती ही नहीं है। अब इन ठगों ने भारतीय कम्‍पनीयों के नामों का सहारा लेना भी आरम्‍भ कर दिया है। या हो सकता है कि वे भारतीय ठग हो। खैर मेल तो आती रहेगी। भारी भरकम राशि का लालच भी होगा और साथ ही प्रमाण पत्र भी। चलो इस बहाने  इन प्रमाण पत्रों को देख कर खुश हो जाया करेंगे। अपने मित्रों के लिए इन सभी के वेब शाटस दे रहा हूं । रूपया तो मिलने से रहा। आप बधाई तो देगे ही। 

सोमवार, दिसंबर 13, 2010

यह क्‍या हो रहा ?

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यह क्‍या हो रहा है आज सामान लेने बाजार गया तो दुकानदार ने दस का यह नोट दिखाया जिसके दोनो तरफ पूरे इत्‍मीनान के साथ चित्रकारी कर रखी थी । आप इस नोट की दुर्दशा देख कर अन्‍दाजा लगा सकते है इस चित्रकारी करने में व्‍यक्ति को कितना समय लगा होगा। अब प्रश्‍न यह है कि करंसी को खराब करने वालों पर क्‍या कार्रवाही होनी चाहिए। राष्‍ट्रीय प्रतीक चिन्‍हों को सहेजना हमारा कर्तव्‍य है तो आदमी करंसी को खराब क्‍यों करते है । नोटों पर चित्रकारी करना अपना फोन नम्‍बर या नाम लिखना क्‍या अपराध की श्रेणी में नहीं आता । शायद हम ईमानदार नहीं है तभी तो अपने राष्‍ट्रीय प्रतीकों को खराब करने में हमें आनन्‍द आता है । क्‍या हम कभी सुधरेगें भी या नहीं शायद हम नहीं सुधरेगे।

गुरुवार, मार्च 04, 2010

मोहित चौहान को फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार

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मोहित चौहान को मसाकली गाने के लिये (देहली६) फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार दिया गया है! इससे हिमाचल  प्रदेश भी गोरन्वित हुआ है! मोहित गायन में अलग गायन विधि के लिये जाने जाते है! मोहित ने अपना गायन केरियर सिल्क रुट बेन्ड से शुरु किया! २००९ में उनका फ़ितूर एलबम जारी हुआ! मसाकली से पहले वे ए आर रहमान के साथ रंग दे बसंती में भी गायन कर चुके है! मोहित से फ़िल्म जगत और हिमाचल को बेहद आशाये है उनको बधाई औए शुभकामनायें!

मंगलवार, फ़रवरी 02, 2010

आश्चर्य किन्तु सत्य

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आज विश्व में जावन प्रजाति के गैंडों की संख्या मात्र 100 रह गई है !

न्यू गिनी द्वीप पर पक्षियों की कई ऐसी प्रजातियाँ पाई जाती है जिनके पंखों में ज़हर होता है !

कई बार व्यक्ति कलाकार न होते हुए भी कई महत्त्व पूर्ण कम कर जाता है जिससे वह इतिहास में जगह बना लेते है ! चीन के शैनड़ोंग आर्ट्स महाविधालय के एक अध्यापक ने 2007 में शैनड़ोंग म्यूजियम में फ़ॉसिल नामक अपनी कलाकृति का प्रदर्शन किया था जो पुराने कम्पूटर के पुर्जों की मदद से बनाई गई थी ! इसे अब aap क्या कहेगे !




बुधवार, जनवरी 20, 2010

अजब गजब

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कई बार मनुष्य अपने शरीर की किसी विकृति या विशेषता का प्रयोग कुछ अद्भुत कर दिखाने के लिए कर लेता है १ इस प्रकार के प्रयोगों से लोगों कुछ ऐसा देखने को मिलाता हा जो उन्होंने पहले कभियो नहीं देखा होता ! चीन के जियान शहर के झांग योंग्यंग को जब पता चला की वह अपनी झीभ से अपनी नाक को छू सकते है तो वह अपनी इस विशिष्ठ शारीरिक योगता का प्रयोग अपनी झीभ से सुन्दर लेखन ( केलिग्राफी ) करने के लिए करने लगा !  अब वह झीभ को स्याही में डुबो कर सुन्दर सुन्दर चीनी शब्द लिखते है ! भारत में भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो इससे भ बाद कर करतब दिखाते है ! पिछले  दिनों  एक टी वी चेनल पर भी अजब गजब करतबों पर आधारित एक कार्यक्रम चला था जिसमें भारतीय करतब बाजों ने लोगो को उनकी तारीफ करने पर मजबूर किया ! अजब गजब कारनामों से संसार से नाम कमाने वालों की कमीं नहीं है !

रविवार, जनवरी 10, 2010

आओ ऐसे झूला झूले

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झूला झूलने का अपना एक रोमांच होता है ! हर कोई इसे अनुभव करना चाहता है! लेकिन 2007 में न्यूयार्क अमेरिका के रिचर्ड रोद्रिगुएज ने जिस तरह इस रोमांच को अनुभव किया उसे कोई और अनुभव नहीं करना चाहेगा ! इस 48 वर्षीय रोलर कोस्टर ने 17 दिनों तक एक बड़े झूले पर बिताएं ! उन्होंने यह कारनामा उत्तरी इंग्लेंड के ब्लेकपुल पलैजर बीच पर कर दिखाया था ! वह प्रत्येक एक घंट बाद 5 मिनट का विराम लेता था ! रोलर कोस्टर पर ही खाते पिटे और सोते थे ! इस तरह रिचर्ड ने 8 हज़ार चकर पुरे किये जो 10 हज़ार 1 सौ 40 किलोमीटर बनता था ! ये दुरी ब्लेकपुल से उसके गृह नगर की दुरी के बराबर थी !

शनिवार, जनवरी 09, 2010

नृत्य शेलियाँ

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नृत्य के क्षेत्र में विभिन्न देशों में अलग अलग नृत्य शेलियाँ और नृत्य रूपक प्रसिद्ध है ! इनमें से कुछ तो बहुत ही अद्भुत है जिनमें चीन और जापान के ड्रेगन नृत्य है १ इसी प्रकार की एक अद्भुत शेली का नृत्य रोमानिया के सर्कस में शारीरिक कलाबाजियां दिखाने वाले लोआन बेनिआमिन ओप्रिया भी करते है ! वे एक प्लास्टिक की ट्यूब  में छुप कर विभिन्न  तरह की आकृतियों आयर नृत्य   का प्रदर्शन करते है ! अपनी एक सहयिका की मदद से वे ओक्तोपस नृत्य भी दिखाते है इन्हें अपनी इस विशेष प्रकार की कलाबाज़ी में निपुणता हासिल है !

रविवार, नवंबर 08, 2009

भ्रतरी हरी शतक

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यदि करील के वृक्ष में पता नहीं लगता तो इसमें बसंत का क्या दोष ? यदि उल्लू दिन में देख नहीं पता तो इसमें सूर्य का क्या दोष ? इसी प्रकार यदि पपीहे के मुख में वर्षा कि जलधारा नहीं गिरती तो इसमें बादल का क्या दोष ? ब्रह्मा ने जन्म के समय जिसके ललाट में जो लिख दिया उसे मिटने में कौन समर्थ है ?

शुक्रवार, जुलाई 17, 2009

आओं चांद पर चलें

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अमेरिका ने एक अंतरिक्ष कार्यक्रम तैयार किया है, जिसका ध्येय वाक्य है वापस चांद पर चलें। इसके जरिए सौर मंडल के इतिहास समेत अन्य गूढ़ प्रश्नों के जवाब तलाश किए जाएंगे। इस अभियान के तहत एलआरओ रॉकेट अगले कुछ दिनों में चंद्रमा की सतह से कुछ ऊंचाई पर स्थापित होकर अपना काम शुरू कर देगा, तो दूसरा कुछ दिन बाद चांद की सतह से टकरा कर रोचक खोजों को अंजाम देगा । सौर मंडल में इंसानों की गतिविधियां बढ़ाने के लिए अमेरिका ने एक कार्यक्रम तैयार किया है, जिसका ध्येय वाक्य है वापस चांद पर चलें। इस अभियान का मकसद पृथ्वी समेत सौर मंडल के इतिहास और अन्य गूढ़ प्रश्नों के अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों और निष्कर्षो द्वारा जवाब तलाश करना है। इस अभियान के तहत पहला कदम लुनर रिकॉनिसंस ऑर्बिटर (एलआरओ) के रूप में उठाया गया है, जो एटलस वी रॉकेट की मदद से चांद की तरफ उड़ चला है। इसके साथ ही एक और लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग स्पेसक्राफ्ट (एलसीआरओएसएस) भी गया है। ये दोनों अलग-अलग तरीके से अपने-अपने कामों को अंजाम देंगे। एलआरओ जहां चांद की सतह से 50 किमी की ऊंचाई पर पहुंचकर उसके धरातल और अन्य सतही

जानकारियों को एकत्र करेगा, वहीं एलसीआरओएसएस चांद की सतह से टकराकर संरचनात्मक आंकड़े एकत्र करेगा। एलआरओ का मुख्य उद्देश्य चांद से जुड़े भविष्य के अभियानों के लिए महत्वपूर्ण डाटा एकत्र करने का है। इसके लिए वह चांद से लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई पर गोलाकार कक्षा में स्थित रहकर उसकी सतह का अध्ययन करेगा। इसका एक प्रमुख काम अंतरिक्ष यान या रॉकेट के लिए चांद की सतह पर उतरने लायक सुरक्षित स्थान तलाश करना है। सामान्यत: चांद की सतह सूखे रेगिस्तान सरीखी मानी जाती है। ऐसे में एलआरओ पानी या बर्फ की खोज भी करेगा। इसके विपरीत एलसीआरओएसएस कुछ दिनों बाद चांद की सतह पर गोली की दोगुनी रफ्तार से एक सेंटूर रॉकेट फायर करेगा, यह टकराव चांद के ध्रुवों पर पानी की उपस्थिति को पता लगाने का काम करेगा। इस भिड़ंत से गैस, मिट्टी और वाष्पीकृत पानी का छह मील ऊंचा गुबार सा उठेगा, जिसका अध्ययन एलआरओ करेगा। अंतरिक्ष विज्ञानियों को उम्मीद है कि इस तरह 2 बिलियन वर्षो से छाए रहस्यों पर से परदा उठ सकेगा। अभियान का यह चरण चांद की संरचना के बारे में पता लगाने को समर्पित है। अलग-अलग परीक्षणों से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर अमेरिका वर्ष 2020 में मानव चंद्र अभियान की तैयारी शुरू करेगा।

कॉस्मिक रे टेलीस्कोप रेडियोएक्टिविटी के प्रभाव का पता लगाने में यह उपकरण मददगार होगा। इससे प्राप्त निष्कर्षो के बलबूते वैज्ञानिक संभावित जैविक प्रभाव का पता लगा सकेंगे। लिमैन अल्फा मैपिंग अल्ट्रावॉयलेट स्पैक्ट्रम के तहत चांद की विस्तृत सतह की गहराई से पड़ताल करने में मदद मिलेगी। ध्रुवीय क्षेत्रों और सितारों की रोशनी में चमकने वाले क्षेत्रों का अध्ययन इसका प्रमुख लक्ष्य है। लूनर रेडियोमीटर उपकरण को द डिवाइनर लूनर रेडियोमीटर एक्सपेरीमेंट नाम दिया गया है, जो सतह और उसके ऊपरी वायुमंडल के तापमान का अध्ययन करेगा। इसकी मदद से ठंडे क्षेत्रों और बर्फ का पता लगाया जा सकेगा। न्यूट्रॉन डिटेक्टर से चांद पर हाइड्रोजन के फैलाव की जानकारी ली जा सकेगी। प्राप्त निष्कर्षो से बर्फ की संभावनाओं और उनकी संभावित उपस्थिति का पता लगाया जा सकेगा। लूनर ऑर्बिटर लेजर एल्टीमीटर की मदद से चांद की सतह पर ढलान और अन्य संरचनात्मक जानकारी जुटाई जाएगी। ऑर्बिटर कैमरा से सुरक्षित लैंडिंग वाले क्षेत्र की पहचान की जा सकेगी। मिनी आरएफ अत्याधुनिक सिंथेटिक राडार रेडियो स्पैक्ट्रम के एक्स और एस बैंड पर काम करने में सक्षम है। इसकी मदद से पृथ्वी से भी संपर्क रखा जा सकेगा।

चांद की उत्पत्ति वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद की उत्पत्ति जाइंट इंपैक्ट या द बिग व्हैक से हुई। इस अवधारणा के तहत मंगल ग्रह के आकार की कोई वस्तु 4.6 बिलियन वर्ष पहले पृथ्वी से टकराई होगी। इस टक्कर से वाष्पीकृत चट्टानों का एक बादल पृथ्वी से उठकर अंतरिक्ष में चला गया होगा। ठंडा होने के बाद वह गोला छोटे किंतु ठोस पदार्थ में बदल गया होगा और बाद में इनके एक साथ आ जाने से चांद बना होगा। दूर जा रहा है चांद आप जिस वक्त इसे पढ़ रहे होंगे, उस वक्त भी चांद पृथ्वी से दूर जा रहा होगा। प्रत्येक वर्ष चंद्रमा पृथ्वी की घूर्णन प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का कुछ हिस्सा चुरा लेता है। इसकी मदद से वह स्वयं को अपनी कक्षा में प्रति वर्ष 4 सेंटीमीटर ऊपर धकेलता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अस्तित्व में आने के समय चांद की पृथ्वी से दूरी 22,530 किलोमीटर रही होगी, लेकिन अब यह दूरी 450,000 किलोमीटर है

रविवार, जुलाई 12, 2009

हवा और गैस से चलेगा इंजन

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हिमाचल प्रदेश के बल्द्वाड़ा गांव के मदन ने एक ऐसा इंजन बनाने का दावा किया है जो हवा और गैस से चलेगा। राज्यपाल ने सांइस एंड टेक्नोलॉजी विभाग को डिजाइन की समीक्षा के निर्देश दिए हैं। शोध को आगे बढ़ाने और सुविधाएं देने के लिए मदन ने अब राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा है। उनका दावा है कि उनके द्वारा तैयार डिजाइन देश का पहला ऐसा डिजाइन है, जो पूरी तरह हवा और गैस पर आधारित होगा। इससे गाड़ियों में एसी भी चलाया जा सकेगा। ऐसा अभी तक किसी भी वाहन में नहीं है। वह अपने फामरूले को पेटेंट कराने के लिए भी प्रयासरत हैं। मदन का कहना है कि अगर उनके डिजाइन को मान्यता मिल जाए, तो वाहनों को चलाने में पेट्रो पद्धार्थो की जरूरत नहीं रहेगी। इसके अलावा प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी। इस इंजन को किसान खेती और अन्य व्यावसायिक कार्यो के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। मदन लाल पेशे से इंजीनियर मैकेनिक हैं। वे इस समय रीजनल अस्पताल के तकनीकी विंग में कार्यरत हैं।


मंगलवार, जुलाई 07, 2009

आत्मविश्वास

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साइकोलोजिकल साइंसके अनुसार आत्मविश्वास बढाने वाले कभी कभी विपरीत प्रभाव भी डालते हैं ! वास्तव में में जिन व्यक्तियों में आत्मविश्वास कम होता है वे बार बार स्वयं के बारे में अच्छी बातें करके सचाई से मुंह फेरते है ! इस्ससे उनके व्यक्तित्वों में विरोधाभास उत्पन हो जाता है जो उन्ही को नुकसान पहुंचता है !

शनिवार, जुलाई 04, 2009

हिमाचल के स्कूलों में

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हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड जर्मन सरकार के मैक्समूलर भवन और गैर सरकारी संस्था गोथे इंस्टीटयूट के सहयोग से प्रदेश के चुनिंदा स्कूलों में जर्मन भाषा का वैकल्पिक कोर्स शुरू करेगा। 20 से 27 जून तक जर्मन यात्रा से लौटे प्रदेश शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. सीएल गुप्त ने बताया कि जर्मन की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विस्तारीकरण के मद्देनजर जर्मन भाषा के ज्ञाताओं की कमी को दूर करने के लिए जर्मन सरकार ने विश्व भर में एक हजार पार्टनर स्कूल खोलने का निर्णय लिया है। जर्मन सरकार के इस निर्णय के तहत संचालित किए जाने वाले पार्टनर स्कूलों में जहां अध्यापकों का प्रशिक्षण और सिलेबस जर्मन सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाएगा, वहीं आधारभूत ढांचा मुहैया कराने की जिम्मेदारी संबंधित शिक्षा बोर्डो की होगी। देश में दिल्ली, बेंगलुरु और गुजरात के शिक्षा बोर्डो ने कोर्स शुरू कर दिए हैं। प्रदेश विश्विद्यालय में जर्मन भाषा के कोर्स चल रहे हैं।
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हिमाचल के स्कूलों में विद्यार्थियों की स्कूल छोड़ने की दर अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे कम है। राज्यों में ऐलीमेंटरी एजूकेशन की समीक्षा के लिए गठित टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है। कम ड्राप आउट की दर में प्रदेश को पहला स्थान मिला है। साक्षरता दर के मामले में पहले स्थान पर रहने वाले केरल राज्य को भी ड्राप आउट रेट के मामले में दूसरा स्थान मिला है। उत्तराखंड की इस मामले स्थिति बेहतर हुई है और वह तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। यूनाइटेड नेशन डवलपमेंट प्रोगाम और प्लानिंग कमीशन के लगभग एक दर्जन विशेषज्ञों के माध्यम से यह रिपोर्ट तैयार की है। ड्राप आउट रेट की दर देखी जाए तो हिमाचल में प्राइमरी स्तर पर यह 2.05 फीसदी है। शिक्षा विभाग के ताजा सर्वे के अनुसार राज्य के चार जिलों ने ड्राप आउट रेट को शून्य फीसदी लाने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इन जिलों में लाहौल स्पीति, हमीरपुर, बिलासपुर और सोलन जिला शामिल हैं। इन सभी जिलों में पहली से पांचवी कक्षा तक कोई भी छात्र पढ़ाई छोड़ कर नहीं गया है। पूरे प्रदेश के स्कूलों पर कराए गए सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के स्कूलों में पहली कक्षा में कुल 92,025 बच्चों ने प्रवेश लिया था। इनमें 90,133 ने पांचवी कक्षा तक पढ़ाई पूरी की । इन बच्चों में से केवल 1892 छात्र ही पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए।

सोमवार, जून 29, 2009

इन्फ्लुएंजा

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इन्फ्लुएंजा शब्द इतालबी शब्द इन्फ्लुएंसा से आया है ! जिसका अर्थ है प्रभाव ! प्रारंभ में इसे सितारों के प्रभाव से होने वाली बीमारी के रूप में देखा जाता था ! बाद में मेडिकल विज्ञान के विस्तार के साथ ही इसका नाम बदल कर इन्फ्लुएंसा द फ्रेदो कर दिया गया जिसका अर्थ था ठंड से होने वाली बीमारी ! 1743 में जब यूरोप में पहली बार फ्लू का प्रकोप हुआ तो अंग्रेजी में यह शब्द शामिल किया गया ! इंसानों में होने वाले फ्लू के लक्षणों के बारे में आज से 2400 वर्ष पूर्व सबसे पहले लिखा गया था ! फ्लू सबसे पहले कब और कहाँ फेला इसका अनुमान लगाना कठिन है ! क्योंकि डिप्थीरिया टायफाइड और प्लेग जेसी बिमारिओं के लक्षण भी फ्लू के सामान होते थे ! 1580 में पहली बार फ्लू का प्रपोक रूस में हुआ और वहां से यूरोप तथा अफ्रीका के तमाम देशों में फेला ! रोम में 8 हज़ार लोग मारे गए और स्पेन के कई देश तबाह हो गए ! अब तक के इतिहास में १९१८ में यूरोप में फेला फ्लू सबसे खतरनाक था ! जिसमें लगभग 2 से 10 करोड़ लोगो के मारे जाने का अनुमान था ! इतिहास में 1918 के फ्लू की तुलना ब्लेक डेथ की त्रासदी से की जाती है ! उस फ्लू के लक्षण इतने विचित्र थे की पहले तो डॉक्टर डेंगू समझ कर उसका इलाज करते रहे ! 1918 के फ्लू में शुरूआती 25 सप्ताहों में 2.5करोड़ लोग मृत्यु का ग्रास बन गए जबकि एड्स ने 25 सालों में 2.5 करोड़ लोगो को मौत का शिकार बनाया है ! अब तक फ़ले फ्लू, एशियन फ्लू, हांगकांग फ्लू और अब स्वाइन फ्लू प्रमुख है ! 1944 में पहली बार डॉक्टर फ्रांसिस ने फ्लू के टीकें का निर्माण किया ! आज यूरोप और दुनिया के समृद्ध देशों में फ्लू का टीका लगाया जाता है ! इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों में बुखार ठण्ड कंपकपी और मापेसिओं में दर्द होता है ! आधुनिक विज्ञान ने कभी हद तक इसका इलाज खोज लिया है लेकिन अभी भी फ्लू से बचाने के लिए प्रभावी और सस्ते टीकें इजाद करने की दिशा में विज्ञान प्रयास कर रहा है !

गुरुवार, जून 18, 2009

वैज्ञानिकों ने खोजा एलिमेंट 112

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रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी में एलिमेंट 112 के अस्थाई नाम से एक नया तत्व जुड़ गया है ! वैज्ञानिकों के अनुसार यह हाईड्रोजन से 277 गुना भरी है ! मानवीकृत रसायनों का नामाकन करने वाले गैर शासकीय अंतर्राष्ट्रीय संगठन आईयुपीऐसी ने इस नए तत्व को आधिकारिक मान्यता दे दी है ! जर्मनी में ड्रम स्टेट स्थित जी एस आई सेंटर फॉर हैवी आयन रिसर्च ने इस तत्व की खोज की है ! यह खोज सेंटर के प्रोफेसर सिगर्ड हाफमैन के नेतृत्व में जर्मनी फिनलेंड रूस और स्लोवाकिया के 21 वैज्ञानिकों के शोध का परिणाम है ! इसके साथ ही आवर्त सारणी में अब कुल 117 तत्व हो गए है ! वैज्ञानिकों ने पहली बार 1996 में एलिमेंट 112 के परमाणु का पता लगाया था ! उन्होंने पाया की लेड के परमाणु पर उच्चगति वाले आवेशित जिंक परमाणुओं की टक्कर से दोनों तत्वों के नाभिक मिल कर एक तीसरे तत्व यानि एलिमेंट 112 का निर्माण करते है !
आईयूपेऐसी ने इस तत्व को एलिमेंट 112 का अस्थाई नाम दिया है जो जिंक (परमाणु संख्या 30) व् लेड (परमाणु संख्या 82) की परमाणु की संयुक्त अंक 112 से बना है ! अगले कुछ सप्ताह में वैज्ञानिक संगठन को इस तत्व का नया नाम सौंप देगे ! फिर भी इसमे लगभग 6 महीने लग सकते है !

मंगलवार, जून 09, 2009

हबीब तनवीर का जाना

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हबीब तनवीर का जाना एक युग का जाना है ! हबीब हर रोज़ पैदा नहीं होते ! हबीब शताब्दियों में एक बार पैदा होते है ! तनवीर साहाब का शिमला से भी प्रगाढ़ प्रेम था !शिमला. नाटक के जनक हबीब तनवीर की कला का शिमला गेयटी थियेतर भी गवाह रहा है। छत्तीसगढ़ से पूरी टीम को साथ लेकर आए हबीब ने 1987 में मशहूर नाटक ‘चरण दास चोर’ का गेयटी थियेटर में मंचन किया था। रंगमंच के अर्श पर हमेशा चमकते रहे इस क़लाकार ने पहाड़ में भी अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी। नाटक ‘चरण दास चोर’ की टीम एक बार अपने लीडर के बिना भी शिमला आई थी। शिमला के रंगकर्मी कहते हैं कि हबीब तनवीर हिल्स क्वीन में एक बार तो नाटक के मंचन के लिए आए थे, इसके बाद राष्ट्रीय नाटक अकादमी के अध्यक्ष देवराज अंकुर के बुलावे पर भी शिमला आए थे।उस समय हबीब के नाटक ‘आगरा बाजार’ का कालीबाड़ी हाल में मंचन किया गया था। उन्होंने बताया कि वह शिमला की खूबसूरती के कायल थे और यहां आने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। उस जमाने में कला के क्षेत्र में कदम रखने वाले रंगकर्मी बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि ‘वो भारी भरकम आवाज मंच के हर पल को जीवंत करती थी’।


शिमला की नाट्य संस्था कला किरण ने तनवीर साहब को श्रधान्जली देने के लिए प्रेम चंद की कहानी बढे भाई साहब का मंचन किया यह मंचन शिमला स्तिथ केन्द्रीय आलू अनुसन्धान बेम्लोई में किया गया !
 
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