अमेरिका ने एक अंतरिक्ष कार्यक्रम तैयार किया है, जिसका ध्येय वाक्य है वापस चांद पर चलें। इसके जरिए सौर मंडल के इतिहास समेत अन्य गूढ़ प्रश्नों के जवाब तलाश किए जाएंगे। इस अभियान के तहत एलआरओ रॉकेट अगले कुछ दिनों में चंद्रमा की सतह से कुछ ऊंचाई पर स्थापित होकर अपना काम शुरू कर देगा, तो दूसरा कुछ दिन बाद चांद की सतह से टकरा कर रोचक खोजों को अंजाम देगा । सौर मंडल में इंसानों की गतिविधियां बढ़ाने के लिए अमेरिका ने एक कार्यक्रम तैयार किया है, जिसका ध्येय वाक्य है वापस चांद पर चलें। इस अभियान का मकसद पृथ्वी समेत सौर मंडल के इतिहास और अन्य गूढ़ प्रश्नों के अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों और निष्कर्षो द्वारा जवाब तलाश करना है। इस अभियान के तहत पहला कदम लुनर रिकॉनिसंस ऑर्बिटर (एलआरओ) के रूप में उठाया गया है, जो एटलस वी रॉकेट की मदद से चांद की तरफ उड़ चला है। इसके साथ ही एक और लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग स्पेसक्राफ्ट (एलसीआरओएसएस) भी गया है। ये दोनों अलग-अलग तरीके से अपने-अपने कामों को अंजाम देंगे। एलआरओ जहां चांद की सतह से 50 किमी की ऊंचाई पर पहुंचकर उसके धरातल और अन्य सतही
जानकारियों को एकत्र करेगा, वहीं एलसीआरओएसएस चांद की सतह से टकराकर संरचनात्मक आंकड़े एकत्र करेगा। एलआरओ का मुख्य उद्देश्य चांद से जुड़े भविष्य के अभियानों के लिए महत्वपूर्ण डाटा एकत्र करने का है। इसके लिए वह चांद से लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई पर गोलाकार कक्षा में स्थित रहकर उसकी सतह का अध्ययन करेगा। इसका एक प्रमुख काम अंतरिक्ष यान या रॉकेट के लिए चांद की सतह पर उतरने लायक सुरक्षित स्थान तलाश करना है। सामान्यत: चांद की सतह सूखे रेगिस्तान सरीखी मानी जाती है। ऐसे में एलआरओ पानी या बर्फ की खोज भी करेगा। इसके विपरीत एलसीआरओएसएस कुछ दिनों बाद चांद की सतह पर गोली की दोगुनी रफ्तार से एक सेंटूर रॉकेट फायर करेगा, यह टकराव चांद के ध्रुवों पर पानी की उपस्थिति को पता लगाने का काम करेगा। इस भिड़ंत से गैस, मिट्टी और वाष्पीकृत पानी का छह मील ऊंचा गुबार सा उठेगा, जिसका अध्ययन एलआरओ करेगा। अंतरिक्ष विज्ञानियों को उम्मीद है कि इस तरह 2 बिलियन वर्षो से छाए रहस्यों पर से परदा उठ सकेगा। अभियान का यह चरण चांद की संरचना के बारे में पता लगाने को समर्पित है। अलग-अलग परीक्षणों से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर अमेरिका वर्ष 2020 में मानव चंद्र अभियान की तैयारी शुरू करेगा।
कॉस्मिक रे टेलीस्कोप रेडियोएक्टिविटी के प्रभाव का पता लगाने में यह उपकरण मददगार होगा। इससे प्राप्त निष्कर्षो के बलबूते वैज्ञानिक संभावित जैविक प्रभाव का पता लगा सकेंगे। लिमैन अल्फा मैपिंग अल्ट्रावॉयलेट स्पैक्ट्रम के तहत चांद की विस्तृत सतह की गहराई से पड़ताल करने में मदद मिलेगी। ध्रुवीय क्षेत्रों और सितारों की रोशनी में चमकने वाले क्षेत्रों का अध्ययन इसका प्रमुख लक्ष्य है। लूनर रेडियोमीटर उपकरण को द डिवाइनर लूनर रेडियोमीटर एक्सपेरीमेंट नाम दिया गया है, जो सतह और उसके ऊपरी वायुमंडल के तापमान का अध्ययन करेगा। इसकी मदद से ठंडे क्षेत्रों और बर्फ का पता लगाया जा सकेगा। न्यूट्रॉन डिटेक्टर से चांद पर हाइड्रोजन के फैलाव की जानकारी ली जा सकेगी। प्राप्त निष्कर्षो से बर्फ की संभावनाओं और उनकी संभावित उपस्थिति का पता लगाया जा सकेगा। लूनर ऑर्बिटर लेजर एल्टीमीटर की मदद से चांद की सतह पर ढलान और अन्य संरचनात्मक जानकारी जुटाई जाएगी। ऑर्बिटर कैमरा से सुरक्षित लैंडिंग वाले क्षेत्र की पहचान की जा सकेगी। मिनी आरएफ अत्याधुनिक सिंथेटिक राडार रेडियो स्पैक्ट्रम के एक्स और एस बैंड पर काम करने में सक्षम है। इसकी मदद से पृथ्वी से भी संपर्क रखा जा सकेगा।
चांद की उत्पत्ति वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद की उत्पत्ति जाइंट इंपैक्ट या द बिग व्हैक से हुई। इस अवधारणा के तहत मंगल ग्रह के आकार की कोई वस्तु 4.6 बिलियन वर्ष पहले पृथ्वी से टकराई होगी। इस टक्कर से वाष्पीकृत चट्टानों का एक बादल पृथ्वी से उठकर अंतरिक्ष में चला गया होगा। ठंडा होने के बाद वह गोला छोटे किंतु ठोस पदार्थ में बदल गया होगा और बाद में इनके एक साथ आ जाने से चांद बना होगा। दूर जा रहा है चांद आप जिस वक्त इसे पढ़ रहे होंगे, उस वक्त भी चांद पृथ्वी से दूर जा रहा होगा। प्रत्येक वर्ष चंद्रमा पृथ्वी की घूर्णन प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का कुछ हिस्सा चुरा लेता है। इसकी मदद से वह स्वयं को अपनी कक्षा में प्रति वर्ष 4 सेंटीमीटर ऊपर धकेलता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अस्तित्व में आने के समय चांद की पृथ्वी से दूरी 22,530 किलोमीटर रही होगी, लेकिन अब यह दूरी 450,000 किलोमीटर है
6 Reviews:
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी. इसके लिए आभार. हमारे यह समझ में नहीं आया की एक ही प्रविष्टि को दो दो जगह क्यों डाली गयी है. कृपया मनन करें. इस से कोई अतिरिक्त लाभ हो तो जरूर बताएं. फिर हम देख रहें हैं की आप के ब्लॉग पर वर्ड वेरिफिकेशन भी लगा रखा है. यह वास्तव में अनुत्पादक है. लोग इस झंझट से बचना चाहेंगे और आपके आलेख पर टिप्पणियां भी कम आएँगी. इसे हटा ही दें.
Utsah janak samachar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत अच्छा समाचार है.
ऐसे ब्लोग जानकारी ही नही पढनेवाले के अन्दर आत्मविश्वास भी भरते है .......बहुत बहुत बधाई और शुक्रिया
बढिया जानकारी.
कमाल है रौशन भाई! मेरी नज़रों से आपका ब्लॉग न जाने कैसे छूट गया। आपका पुनः मिलना एक सुखद अनुभूति से अधिक और क्या हो सकता है। बहुत सी पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं ख़ैर अब तो मिलना रहेगा ही। आपकी ब्लॉग पर प्रस्तुत सामग्री पर अलग से टिप्पणी करूँगा। ये तो मात्र आपको हाज़िरी बजाने के लिए ही है। बहुत ख़ुशी हूई।
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