google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : अंधश्रद्धा

बुधवार, जुलाई 22, 2009

अंधश्रद्धा


राजा वसुसेन को ज्योतिष पर अंधश्रद्धा थी और वे अपने ज्योतिषी से मुहूर्त जाने बिना कोई काम नहीं करते थे। जब यह बात राजा के शत्रुओं तक जा पहुंची तो वे ऐसे वक्त हमले की योजना बनाने लगे, जिसमें प्रतिकार का मुहूर्त न बने। एक बार राजा देशाटन पर निकले। साथ में हमेशा की तरह राज ज्योतिषी भी थे। मार्ग में एक किसान मिला जो हल-बैल लेकर खेत जोतने जा रहा था। राज ज्योतिषी ने उसे रोककर कहा - मूर्ख! जानता नहीं, आज उस दिशा में दिशाशूल है और तू उसी ओर चला जा रहा है। ऐसा करने से तुझे भयंकर हानि उठानी पड़ेगी। यह सुनकर किसान बोला - मैं तो प्रतिदिन इसी दिशा में जाता हूं। उसमें दिशाशूल वाले दिन भी होते होंगे। यदि आपकी बात सच होती तो मेरा अब तक सर्वनाश हो चुका होता। राज ज्योतिषी सकपकाकर बोले - तेरी कोई हस्तरेखा प्रबल होगी। दिखा अपना हाथ। किसान ने हाथ तो बढ़ाया किंतु हथेली नीचे की ओर रखी। राज ज्योतिषी चिढ़कर बोले - हस्तरेखा दिखाने के लिए हथेली ऊपर की ओर रखी जाती है। किसान ने कहा - हथेली वह फैलाए, जिसे कुछ मांगना हो। मैं जिन हाथों की कमाई से अपना गुजारा करता हूं, उन्हें क्यों किसी के आगे फैलाऊं? मुहूर्त वह देखे जो कर्महीन व निठल्ला हो। यहां तो 365 दिन ही पवित्र हैं। किसान का उत्तर सुनकर राजा की आंखें खुल गईं और उन्होंने भी परिस्थिति के अनुसार काम करना शुरू कर दिया। वस्तुत: कर्म भाग्य से अधिक फलदायक होता है। जो कर्म करेगा, वह फल भी पाएगा। अकर्मण्यता से कुछ हासिल नहीं होता।

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