हिमालयी क्षेत्रों का दामन नागों से भरा पड़ा है। लेकिन इसमें कुल्लू का अहम भूमिका रही है। कुल्लू में इन नागों की पूजा की जाती है। कुल्लू से ही नागों की उत्पत्ति मानी गई है। पश्चिमी हिमालयी की नाग परंपरा शोध प्रबंध में तो हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली नदियों की उत्पत्ति नागों से ही मानी गई है। जम्मू कश्मीर व उत्तराखंड में तो नागों के नाम पर चश्में व झीलें भी है। नाग वन, नागा का सौर, नगवांई आदि मुख्य हैं। जड़ी-बूटि का नाम नागकेसर व बेल का नाम नागरबेल है। विद्वानों का वर्ग दक्षिण के नागपुर को भी नागों द्वारा बसाया हुआ मानते हैं। हिंदुओं में 360 देवता माने गए हैं। कुल्लू में भी देवी-देवताओं की संख्या 360 ही है। इनमें नागों की संख्या भी काफी है। नागों के राजा वासुकि नाग की उत्पत्ति नग्गर स्थित हलाण गांव से मानी जाती है। कुल्लू के अठारह नागों के भांदल आज भी गोशाल गांव में हैं। घाटी के देवता जब भी पवित्र स्नान के लिए वशिष्ठ जाते हैं तो भांदल को सम्मान देते हैं। नागों के राजा वासुकि के वंश को जन्म देने का सम्मान भी कुल्लू को ही है। कुल्लू में माहुटी नाग, मणिकर्ण में रूद्र नाग, औटर सराज में चंभू नाग, कतमोरी नाग, रामगढ़ कंढ़ी का नात्री नाग, रामपुर बुशहर में 9 नाग, मंडी का मांहुनाग, सिराज की बूढ़ी नागिन, नूरपुर की नागणी आदि प्रसिद्ध है। इनके मंदिर भी हैं और जहां हर साल मेले भी आयोजित होते हैं। जिले में अठारह नाग हैं। हैरिटेज विलेज नग्गर में तो नागों के नाम पर नग्गर नगेड़ का आयोजन होता है। जहां धान की पराली का लंबा नाग बनाया जाता है। उसके टुकड़े-टुकड़े करके हारियान उससे नाचते हैं। हरिवंश पुराण में हिमालय को पहाड़ों का राजा, पीपल को वृक्षों का राजा व वासुकि नाग को नागों का राजा माना गया है। लाल चंद प्रार्थी की बहुचर्चित पुस्तक ‘कुलूत देश की कहानी’ में नागा आदिवासी का संबंध भी नागों से ही माना गया है। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर में नाग ब्राmणों की एक ऊं ची जाति आज भी मौजूद हैं। कुल्लू से ही नाग परंपरा की उत्पत्ति हुई है। गोशाल गांव में आज भी अठारह नागों के वंश मौजूद हैं।
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3 Reviews:
बहुत अच्छी जानकारी दी नागों की उत्पति के बारे में, नागालैंड शायद नाग से सम्बंधित नहीं है वो लोग पहले वस्त्र नहीं पहनते थे इसलिए उन्हें नागा के नाम से जाना जाता है !!
लेख बहुत ज्ञानवर्धक है!
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बहुत अच्छी जानकारी है. पूरे भारत में ही नहीं बल्कि सुदूर पूर्व में कम्बोडिया, थाईलैंड आदि देशों में भी ऐसी परम्पराएँ हैं
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