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शनिवार, जनवरी 12, 2019

कुमारसैन में ‘मंथन’ ने लिखी शब्द सृजन की ऐतिहासिक इबारत

 कुमारसैन में मंथनने लिखी शब्द सृजन की ऐतिहासिक इबारत*

एस आर हरनौट ने ज्योति जला किया आगाज

बाली ने किया बेहतरीन मंच संचालन

साहित्यिक रूप से लगभग शांत पड़ी कुमारसैन की फ़िजाओं ने उस वक्त नई हवाओं की खुशबू का एहसास किया जब दुनिया के शोर-शराबे से दूर आइ टी आई के भव्य भवन के सुंदर सभागार में साहित्य मंच मंथनने अपनी पहली साहित्य गोष्ठि का आयोजन कर क्षेत्र में शब्द सृजन की एक नई इबारत लिखी। 18 दिसंबर 2018 को 25 कवियों व 100 से अधिक सुधि ग्रामीण श्रोताओं की 250 से ज्यादा निगाहों ने मशहूर लेखक एस आर हरनौट व मंथनसदस्यों के हाथों मां सरस्वती के चरणों में साहित्य की लौ जला कर मंथनका शुभारम्भ किया। मालूम नहीं उन्हें बीज़ हैं लफ़्ज़ मेरे, नव सृजन का ऐलान करते हैं।मंच संचालक लेखक जगदीश बाली के इन्हीं शब्दों के साथ काव्य पाठ का आगाज़ हुआ। मशहूर लेखक हरनौट जी की टीम, जो "हिमालय साहित्य संस्कृति मंच" व 'हिमवाणी संस्था' के साहित्यकारों से लवरेज़ है, ने मंथनके साथ मिल कर अपनी 'आम जन तक साहित्य 2018 को यादगार विराम दिया और इस तरह मंथनका शानदार आगाज़ हुआ। कवियों की शालीनता और स्तर हर किसी के दिल में उतर गए जो एक साहित्यकार के आदर्श व्यक्तित्व की वानगी है।

सर्वप्रथम प्रतिभा मेहता ने अपनी गज़ल हंस के हर ज़ख्म पिए जाते हैंको तरन्नुम में प्रस्तुत कर एक बढ़िया शुरुआत की। युवा कवयित्री शिल्पा ने अपनी कविता बादल ने दी जीवन जीने कि प्रेरणाने सबको प्रभावित किया। कुलदीप गर्ग तरुण के शेरों ने भी अंतर्मन को छुआ। इसी बीच कवियों के बीच होती हल्की-फ़ुल्की टिका टीप्पणियों व नौक-झौंक से सभागार ठहाकों से भी गूंजता रहा। पूजा शर्मा की कविता वर्षों बाद मिल गया पुराना दोस्त था मेराव वंदना राणा की इधर भी हैं मज़बूरियां गीत क्या गाने लगा है शहरवर्तमान माहौल पर करारा कटाक्ष था। अपने चिर-परिचित हास्यपूर्ण आंदाज़ में नरेश देवग ने जहां नौजवानों को सुसंस्कृत व नशे से दूर रहने की सलाह दी, वहीं नव वर्ष पर उनकी कविता ने श्रोताओं को ठहाके लगाने पर मज़बूर कर दिया। उन्होंने तरन्नुम में नेताओं पर भी तंज़ कसे। मंथनमंच के संयोजक हतिंदर शर्मा ने मां जीना सिखा दियाऔर निरुत्साहित नहीं निष्फ़ल हूंजैसी छोटी छोटी रुहानी कविताओं से सबके दिलों को छुआ। मंच प्रचारक व स्थानीय युवा कवि दीपक भारद्वाज ने जाड़े की धूपकविता से काफ़ी असर छोड़ा। पत्थर तोड़ती औरतकविता संग्रह के लेखक मनोज चौहान ने अपनी कविता से सबको आकर्षित किया। प्रसिद्ध कवि आत्मा रंजन की यूं आए नया सालसबको भा गई। मोनिका छटू की कविता दुखमें चौसर का खेल काफ़ी गहराई लिए हुए लगा। मंथनके सलाहाकार अमृत कुमार शर्मा ने कविता मैं लिखूंगा किताब जब तब देखनाके माध्यम से राजनीतिज्ञ व अफ़सरशाही पर व्यंग्य साधा। मंथनके सचेतक रौशन जसवाल की कविता मैं बच्चा बनना चाहता हूंभी बहुत सराही गई। गुपतेश्वर उपाध्याय के संक्षिप्त काव्यपाठ ने सब के मन को छू लिया। उमा ठाकुर ने पहाड़ी भाषा में अपने कविता पाठ से स्थानीय उत्सवों, रीति-रिवाजों व पकवानों से अवगत करवाया। रीतिका और ज्ञानी शर्मा ने पहाड़ी झूरियों से गोष्ठि को नया आयाम दिया। मंथनके सदस्य ताजी राम वनों की हरयाली पर कविता से सबको प्रभावित किया। युवा कवयित्री कल्पना गांगटा की कविताओं ने युवाओं को समाज के लिए कुछ करने का संदेश दिया। डॉ. स्वाती शर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से नारी की व्यथा को दर्शाया तथा युवा कवि राहुल बाली ने अपनी कविता हम अकेले थेसे बहुत प्रभाव छोड़ा। लगभग साड़े चार घंटे तक चली इस गोष्ठि में मंच संचालन भी उत्कृष्ठ रहा। संचालक ने अपने शेर-गज़लों, क्षणिकाओं, हाज़िर जवाबी व ठिठोली से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। वास्तव में मंथनका ये पहला कार्यक्रम पहला होते हुए भी सबके दिल में उतर गया। इस बीच गिरिराज से आए विशाल हृदय कवि अश्वनी की कविता कहीं रह गई। परंतु मंथन के सदस्यों से गले मिल कर उन्होंने सबका दिल जीत लिया। भविष्य जब कुमरसैन के इतिहास के पन्नों को पलटेगा, इसके एक पन्ने पर ये भी लिखा होगा कि 18 दिसंबर 2018 को मंथनने हिमालय साहित्य संस्कृति मंचव हिमवाणि मंच के साथ मिलकर साहित्य की लौ जला कर एक शब्द सृजन की इबारत लिखी थी। इस इबारत लिखने में आई टी आई के प्रधानाचार्य हितेश शर्मा, उनके स्टाफ व छात्रों के योगदान को मंथनहमेशा याद रखेगा।

 

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