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शनिवार, अक्तूबर 21, 2023

देवता झूठ नहीं बोलता

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 देवता झूठ नहीं बोलता

- ------ ----- ---- ---    बात निकलेगी तो दूर तलक जाऐगी। अब शीर्षक ही लीक से हट कर हो तो चर्चा होना  

स्वाभाविक है। शीर्षक है देवता झूठ नहीं बोलता, मनोज चौहान का लघुकथा संग्रह। देवता झूठ नहीं बोलता मनोज चौहान की दूसरी पुस्तक है जो अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित हुई है। 
मनोज चौहान पहली पुस्तक काव्य संग्रह के रूप में 'पत्थर तोड़ती औरत' 2017 में अंतिका प्रकाशन के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंची थी। इस काव्य संग्रह ने साहित्य जगत, खास कर युवा रचनाकारों के मध्य सार्थक अस्थिति दर्ज करवाई थी।
फिलहाल हम बात कर रहे है लघुकथा संग्रह 'देवता झूठ नहीं बोलता 'की। मित्रवत सम्बंधों के चलते मनोज चौहान ने ये लघुकथा संग्रह डाक द्वारा मुझ तक पहुंचाया। पुस्तक का शीर्षक, और गेटअप देख कर मैं पुस्तक के प्रति आकर्षित तो हुआ साथ ही जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई। प्रारम्भ में कुछ लघुकथाओं पर नज़र डाली, अच्छी लगी तो सोचा कुछ चुनी हुई लघुकथाओं को अपने Youtube चैनल के लिए रिकार्ड कर पाठकों के लिए प्रस्तुत करूंगा।  परन्तु ज्यो ज्यो पुस्तक में आगे बढ़ता गया तो निर्णय में परिवर्तन हुआ और संग्रह की सभी लघुकथाओं को 40 ऐपिसोड में रिकार्ड कर लिया। सच मानिए लघुकथाओं को पढ़ते और रिकार्ड करते बेहद आनन्द आया।
देवता 'झूठ नहीं बोलता' की लघुकथाएं हमारी आस पास की घटनाओं का एक गंम्भीर दस्तावेज है । लघुकथाओं के पात्र और केन्द्रीय विषय लगता है जैसे वे हमारे बेहद समीप है और पात्र घटनाये जैसे हमारे सामने सजीव हो। 
संग्रह से गुजरते हुए पाया कि लघुकथाएं  सामाजिक असमानता, अंध विश्वास, जातिय वर्ग भेद, जीवन स्तर की असमानता, धार्मिक असमानता अवसरवादिता, राजनैतिक गतिरोध, ग्रामिण संकीर्णता जीवन परम्पराओं और संस्कृति को समेटे हुए है। देवता झूठ नहीं बोलता लघुकथा संग्रह में मुझे विविधता का आभास हुआ। कभी कभी कहीं कहीं केन्द्रीय विषय की पुनारावृति भी महसूस हुई।
इन्ही बिन्दुओं के आधार पर ही मैं संग्रह पर कुछ बोलने लिखने में सक्षम हो पाया।
देवता झूठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं प्रथम वर्ग यानी अँध विश्वास, जातिय भेदभाव, सामाजिक विभिन्न, असमानताओं पर आधारित है। व्यंग्य बाण, भीतर का डर, बहुत देर हो गई, वशीकरण, संकीर्ण सोच, आत्मबोध, लोकलाज और शीर्षक लघुकथा · देवता झूठ नहीं बोलता' इसी वर्ग में आती है शीर्षक लघुकथा 'देवता झूठ नहीं बोलता' हमारे ग्रामिण परिवेश की जातिय गूढ़ता का परिचय देती है। नाम के साथ सरनेम न होना ग्रामिण क्षेत्रों में बहुधा समस्या उत्पन्न  कर देता है।  शीर्षक लघुकथा में प्रयुक्त संवाद " म्हारा देवता नहीं मानता' ग्रामिण क्षेत्रों में धार्मिक और जातिय असमानता और भेदभाव को दर्शाता है। 'बकरा लघुकथा में लेखक मिस्त्री जमनू के माध्यम से इसी तरह के वर्गभेद का सुन्दरता और सरल शब्दों में उल्लेख करता है। दण्ड स्वरूप 'बकरा' देना ये प्रथा आज भी बहुधा देखने को मिल जाती है। मुझे लगता है सामाजिक संरचना की तरफ संकेत करती अन्य विभिन्न लघुकथाए पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करेंगी।
धार्मिक और जातिय भेदभाव, असमानता और सर्कार्ण सोच पर आधारित लघु‌कथाएं,  वो तो पेट में है, मौका परस्त, संकीर्ण सोच, डाका, आत्म बोध, कुछ ऐसी रचनाएं है जो पाठकों को  अवश्य उद्वेलित करेंगी।
द्वितीय श्रेणी में अवसरवादिता, राजनैतिक प्रभाव, और महत्वांकाक्षा जैसे विषयों को समेटे अनेक सारमार्गित और तार्किक तथा प्रभावशाली लघुकथाएं है। 'अपने लोग'
दोगलापन, सरकारी राशन, नवीनीकरण, संगत में रंगत, कीड़े मकोड़े, सहपाठी, और फोन कट गया, जुगाड,  पर्दे, साँठ गाँठ, नकली, नोटबंदी, बीच का रास्ता, असली चेहरे कुछ ऐसी  लघुकथाए हैं जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करेंगी, ऐसा मेरा मानना है।  पर्दा लघुकथा का विषय इसी ताने बाने में बुना है। इस श्रेणी में मुझे पांच सौ का नोट, औचक निरीक्षण, संघर्ष की राह,  सहपाठी लघुकथाए व्यक्तिरूप से प्रभावित करती है।
जीवन परम्पराओं जीवन संस्कृति और लिंग भेद जैसे विषयों पर आधारित लघुकथाओं में अहसास, मातृत्व, लिहाफ, गुड्डे को सॉरी बोलो, बदलाव, अपने हिस्से का संघर्ष, संवेदनशीलता, बायोडाटा, पापा आप कब आओगे, उधारी नहीं होगी, भोलापन आदि लघुकथाएं पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगी और पाठकीय रुचि में वृद्धि करेगी ऐसी आशा है।
लघु कथा संग्रह देवता झूठ नहीं बोलता' से गुजरते हुए मुझे कुछ लघुकथाये मान की लड़ाई, कोर्ट केस का उल्लेख करती मिली । इस प्रकार की लघुकथाए मुझे सत्यता के बहुत आस पास लगी जो क्षेत्र विशेष की राजनैतिक घटनाओं, सामाजिक असमानता तथा पूर्वाग्रहों को दर्शाती है। लेकिन विषय की पुनरावृति मुझे बार बार अखरती रही। बदलाव शीर्षक से दो लघुकथाएं संग्रह में है। शीर्षक में समानता पाठकों में असमंजस की स्तिथि उत्पन्न करता है। संभवत लेखक का ध्यान इस और नहीं गया।  संभवत इन्हे बदलाव एक और दो शीर्षक देते तो अच्छा रहता। 
लघुकथाओं को पढ़ते हुए लगता है ज्यों अनेक घटनाक्रम हमारे बेहद समीप है जिन्हें हमने भोगा है या अपने आस पास घटते देखा है। लेखकों सम्पादकों पर आधारित लघुकथाएं बड़ा लेखक और नवीनीकरण  भी  स्वागत योग्य है अन्यथा इस तरह के विषयों पर कम ही लेखक लिख पाते हैं।  लघुकथाओं के पात्र भी जिज्ञासा पैदा करते है। ग्रामिण परिवेश की लघुकथाओं में पात्र जमनू, रौलू, भागुमल, फुकरुदास, मकरुदास और रामदीन आदि है तो नगरीय परिवेश की लघुकथाओं में सतीश, विनय, निशांत, और शेखर जैसे आधुनिक नाम है जो लघुकथाओं के समय काल और परिवेश से न्याय करते दिखते है और लघुकथाओं के कलेवर को सुन्दरता भी प्रदान करते हैं। पात्रों में बसेडू और शिंगोटे मुझे सत्य पात्र लगते है जिनके माध्यम से लेखक सन्देश देने में सफल हो पाया है संग्रह की नऊआ और कऊआ तथा आत्म बोध लघुकथाएं प्रभावित हो करती है परन्तु ये लघुकथाएं मुझे बोध कथाओं की तरह लगती है। बदलाव लघुकथा आशावादी सन्देश देने वाली लघुकथा है जो उम्मीद जगाती है कि मार्ग से भटके युवाओं को सामूहिक प्रयासों से सही मार्ग पर लाया जा सकता है।
देवता झुठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं लेखक के अंतर्द्वंद्व और सामाजिक पूर्वाग्रहों को व्यक्त करती है। संग्रह में संकलित लघुकथाओं की भाषा सरल और साधारण है जिसे पाठक आसानी से आत्मसात करेगा। लघुकथाओ का केन्द्रीय विषयों का प्रायः मानव जीवन और समाज के नजदीक होना पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करता है। लघुकथाओं का विषय प्राय:  हमारे आसपास का होना संग्रह की सार्थकता में वृद्धि करता है। लेखक किसी दूसरे ग्रह या समाज की बात नहीं करता वो अपने समाज अपने लोगों और अपने जीवन के घटनाक्रम को विषय बनाता है जो लेखक की सामाजिक जुड़ाव और ईमानदारी को दर्शाता है।
संग्रह की लघुकथाएं लम्बे समय तक याद की जाती रहेगी और मील का पत्थर साबित होगी तथा लघुकथा लेखन में स्थान बनाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
'मेरी बात' में लेखक अपनी लघुकथा लेखन यात्रा के माध्यम से सहयात्रीयों, परिवारजनों और सम्पादकों को याद करते हुए कृतज्ञता व्यक्त करता है, जो संग्रह को सुन्दर और उपयोगी बनाता है। लेखक पाठकों  से स्वस्थ और स्वच्छ आलोचना का भी स्वागत करता है जो लेखक की शालीनता और ईमानदारी को दर्शाती है। इसके लिए लेखक साधुवाद का पात्र है।
देवता झूठ नहीं बोलता के लेखक इन लघुकथाओं के माध्यम से संवेदना , व्यवस्था पर आक्रोश, समाज के प्रति उत्तरदायित्व, घटनाओं पर सामायिक नज़र, विषय पूरक समझदारी और ईमानदारी का परिचय भी देते हैं। जिससे लघुकथाएं सुन्दर और प्रभावशाली बन पड़ी है। सभी लघुकथाएँ पठनीय है कुरीतियों पर करारी चोट करती है। हो सकता है सामाजिक पूर्वाग्रहों के चलते कुछ पाठक इन लघुकथाओं पर विपरीत दृष्टि- कोण भी अपनाएं परन्तु देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं चरित्र पतन सामाजिक मूल्यों, धार्मिक विश्वास, ग्रामिण और नगरीय जीवन और दायित्व बोध का प्रतिनिधित्व करती है।
Youtube के लिए 40 ऐपिसोड रिकार्ड करते हुए देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं अनेक विचारणीय प्रश्न  सामने लाती रही और  अनेक जिज्ञासा पैदा करती रही है।  यह प्रश्न और जिज्ञासाए तो ज्यों की त्यों बनी रहेगी। लेकिन यक्ष प्रश्न तो एक ही है जो जस का तस है, क्या 'देवता झूठ नहीं बोलता' ? 

                                                      * रौशन जसवाल
20 अक्तूबर 2023
11:33 रात्रि

(पाठक देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाओ  को मेरे यूट्यूब चैनल @RoshanJaswalVikshipt और Manoj Chauhan जी के फेसबुक वॉल पर सुन सकते है। )

HIMPRASTH  JANUARY 2024


बुधवार, अक्तूबर 04, 2023

सच्‍ची दूकान

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हर रोज़ ही उस दूकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। भीड़ हो भी क्यों न? जो सामान कहीं अन्य दूकान पर ना मिले तो उस दूकान पर सस्ता और हमेशा उपलब्ध हो जाता था। यही कारण था कि उस दूकान पर हमेशा भीड़ उमड़ी रहती थी। दूकान का नाम भी आकर्षित करता था सच्ची दूकान ।

हर वर्ष उस दूकान का मालिक सभी के लिए भंडारे का आयोजन भी करता और खूब दान आदि भी देता। लोग कहते थे कि ईश्वर की उस पर विशेष कृपा है। 

कृपा के साथ साथ उसकी समृद्धि की चर्चा अक्सर लोग करते रहते थे। गाहे बगाहे ये चर्चाएं मुझ तक भी पहुंचती रहती थी। इतनी चर्चा और प्रसिद्धि के बावज़ूद कभी उस दूकान से सामान लेने का अवसर नहीं मिला।

रविवार का दिन वैसे तो आराम का दिन होता है। रसोई का कुछ सामान समाप्त हो गया था। सूची लम्बी बन गई थी। सोचा उसी दूकान का लाभ उठाया जाए। परिचय भी हो जायेगा।

सामान की सूची दूकानदार को दी। सामान पैक हुआ और वापस हो लिया। घर आ कर सामान खोलने लगा तो एक पैकेट पर बेस्ट बिफोर डेट पर पढ़ी।  डेट खत्म हो चुकी थी। पूरा सामान चेक किया तो तीन सामान की डेट एकस्पायरी निकली। ऐसी षिकायत अन्य ग्राहकों से भी सुनने को मिली थी। लोग तो कहते थे कि पूरा साल एकस्पायरी बेचते रहो और साल में भण्डारा और दान दिया करो। पाप कट जाते है। उस दूकान के सस्ते सामान और ईश्वर कृपा का गणित धीरे धीरे मेरी समझ में आ रहा था।


मंगलवार, मार्च 30, 2021

हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं

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हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं। बत्तीस रचनाकारों की एक सौ चौव्वन लघुकथाएं। सुदर्शन वशिष्ठ जी का कुशल और अनुभवी सम्पादन पुस्तक की उपयोगिता को बढ़ा देता है। सभी लघुकथाएं एक से बढ़ कर एक है। इन लघुकथाओं से गुजरते हुए मुझे ममता, व्यवस्था के प्रति आक्रोश, सामाजिक असमानता के लिए चिंता, परिवार में मानवीय दृष्टिकोण , टूटती मान्यताएं दिखीं। सभी रचनाकारों की रचनाएं प्रभावित करती है। 


                               आशा शैली की स्वेटर प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी ममता की अदृश्य भावना को महत्वपूर्णता से दर्शाती है। रतन चंद रत्नेश की लघु कथा गोल्ड मेडल एक प्रश्न हमारे सामने रख देती है। डॉ प्रत्यूष गुलेरी की आँख व्यवस्था पर चोट करती है। रत्न चंद निर्झर पलटन असमान व्यवस्था को दर्शाती है।श्रीनिवास जोशी शेर का शिकार में जुगाड़ तंत्र का दर्शन करवाते है।

गंगा राम राजी पैग का इलाज के माध्यम से जीवन में अनुशासन के प्रति संकेत देते है।

                                           आचार्य भगवान देव चैतन्य दायित्व में अपने कर्तव्य के प्रति  ईमानदार रहने की सीख देते है।तारा नेगी मां के माध्यम से ममत्व का बोध करवाती है।कमल प्यासा कूड़े वाला के माध्यम से समाज में असमानता का दर्शन करवाते है। कृष्ण चंद महादेविया बस और नहीं के जरिए समाजिक असमानता के विरुद्ध खड़े होने का सन्देश देती है। कुलदीप चंदेल की रिपोर्ट आपातकालीन सेवाओं की पोल खोलती है।अदित कंसल इलाज के माध्यम से परिवार में बढ़े बूढ़ों के प्रति कर्तव्य का बोध करवाते है।

                प्रदीप गुप्ता की सोच व्याप्त भ्रष्टाचार की और इशारा करती है।अनिल कटोच की शिकार दोस्ती के फ़र्ज़ की ओर इशारा करती है।कुल राजीव पन्त बातें के माध्यम से समाप्त होते संस्कारों की तरफ चिंता  व्यक्त करती है। अरुण गौतम की ठगी खोखले आदर्शों को दर्शाती है सुदर्शन भाटिया की वक्त की नज़ाकत कथनी और करनी की तरफ इशारा करती है।जगदीश कपूर धर्म के माध्यम से धार्मिक कट्टरता की तरफ संकेत करते है साथ ही बेड़ियों के टूटने का भी सुखद एहसास करवाती है।

                देवराज डढवाल ने देश धर्म से आतंकवाद पर चिंता व्यक्त करते है।डॉ रजनी कांत अमरत्व के माध्यम से आदमी के शोहरत कमाने की लालसा पर प्रकाश डालते हैं। अशोक दर्द गुरु मंत्र से निरंतर टूटते आदर्शों की तरफ इशारा देते है। मृदुला श्रीवास्तव देवता का दोष के ज़रिए समाज मे गहरे से घर कर गई रूढ़िवादिता उजागर करती है। राजीव कुमार त्रिगर्ति मंत्री जी के पेन के माध्यम से राजनीतिक कार्य प्रणाली की जानकारी देती है। अर्चना नौटियाल मन बहुरंगी में पति पत्नी के झगड़ों में एक पत्नी की बच्चों के लिए ममता और पारिवारिक उत्तरदायित्व को दर्शाती है।

दीप्ति सारस्वत ज़हर में समाज में स्त्री शोषण को उजागर करती है।मीनाक्षी मीनू अस्तित्व की लड़ाई के माध्यम से प्रतिकूल परिस्तिथियों में स्त्री संघर्ष को बताती है।

             मनोज चौहान  लोक लाज में जाति व्यवस्था पर चोट करते है। अनिल शर्मा नील लड़ाई के माध्यम से वर्गों में अधिपत्य संघर्ष की कहानी कहते है। डॉ सीमा शर्मा तमाचा में एक पुत्र के अंतद्वद्व और कर्तव्य की रचना करती है। सौरभ ज्ञानी के माध्यम से अवसरवादिता का दर्शन करवातें है। सुदर्शन वशिष्ठ जी पिता का घर के माध्यम से खोखले होते जा रहे रिश्तों को बताते है। 

एक सौ साठ पृष्ठों का ये संकलन संग्रहणीय और पठनीय है। के एल पचौरी प्रकाशन गाज़ियाबाद से प्रकाशित हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है ।

गुरुवार, अप्रैल 02, 2020

गुलदस्ता

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कुछ  दिन पूर्व गमलों के लिए फूल के पौधें लाया था। मोल भाव करने के बाद पांच पौधें लिए। पौधे वाला कहने लगा, भाई साहब इन्हें इक्कठे एक ही गमले में लगाना। गुलदस्ता बनेगा तो अच्छा लगेगा। 
पौधे वाले कि बात मानते हुए सभी पौधे एक ही गमले में लगा दिए।
आज चेक किया तो एक पौधा सूख गया था। न चाहते हुए भी उसे उखाड़ना पड़ा। 
और फैंक दिया कूड़ेदान में ... ।

शुक्रवार, जनवरी 31, 2020

मुर्गा

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एक दड़वा। कुल चार मुर्गे। चार छोटे एक बड़ा। बड़ा मुर्गा इन चार छोटे मुर्गों की देखभाल करता, बाहरी मुश्किलों से सुरक्षा देता। 
समय बीतता गया। चारों छोटे मुर्गे बड़े हो गए। बड़ा मुर्गा अब बूढ़ा हो चला था। चार मुर्गे में एक ज्यादा जागरूक हो गया, बात बात पर हुकुम चलाने लगा था, बड़ा मुर्गा उसे समझता और सभी को मिल कर रहने की सलाह देता। 
उस बड़े होते मुर्गे को उसकी बातें अच्छी न लगती थी। उसने अन्य तीन मुर्गो को भड़काना शुरू कर दिया। उनको वो बड़े बड़े सपने दिखाने लगा। वो भी उसकी बातों में आ ही गए। अब वो मुखिया बन गया। 
अब उन चारों ने उस बड़े मुर्गे को धमकाना शुरू कर दिया। वो बड़ा मुर्गा अब अकेला सा हो गया।
अब वो उस दड़वे में अकेला हो गया। कोने में अकेला गुमसुम रहता है। चुपचाप सोचता है गलती कहाँ हो गई।

गुरुवार, फ़रवरी 02, 2017

सुंदरता

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उसकी बातें उसकी सुंदरता की तरह ही आकर्षक होती थी। कोई भी उससे मिलता तो उसका मुरीद हो जाता। मैं भी उसकी उसकी बातों से बेहद प्रभावित रहा।
कार्यालय में सभी स्टाफ सदस्य वार्षिक उत्सव पर विचार विमर्श कर रहे थे कि सेवादार ने सूचना दी कि गांव से उसके सास ससुर मिलने आये है। ।
मैंने उससे आग्रह किया कि आप सास ससुर से मिलने जा सकती हैं। उसने बड़े ही रूखे स्वर में तुरंत  इनकार कर दिया और कहने लगी उनका लड़का मिल लेगा । उनके शरीर से तो गांव वाली गंध आती है।
मैं हैरानी से उसका चेहरा ताकता रह गया। उसकी सुंदरता अब मुझे कुरूपता नज़र आ रही थी।

शनिवार, जनवरी 28, 2017

मित्रता

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यूँ तो उससे कोई पुराना परिचय नहीं था, मात्र इतना कि वो दूकानदार था और मैं उसका ग्राहक। रोज उससे दूध की थैली ले जाता और दुआ सलाम हो जाता। उसका हमेशा का आग्रह की कभी घर आइयेगा चाय पर, मैं कभी पूरा नहीं कर पाया।
उसकी मुस्कुराहट उसका व्यवहार उसकी घनिष्ठ मित्रता प्रदर्शित करती थी।
उस दिन छोटे रूपये न होने के कारण पांच सौ का नोट उससे देना चाहा । देखते ही बोला सर जी दूध तो ख़त्म हो गया। अब चालीस रूपये के चक्कर में पांच सौ का नोट कौन स्वीकारता। मेरे दुकान से बाहर निकलते ही उसने दूसरे ग्राहक को दूध की थैलियां दे दी। उस ग्राहक ने उससे पूछा ये तो आपके नियमित ग्राहक है फिर इस क्यों? उसने मुस्कुराते हुए उस ग्राहक को जवाब दिया जनाब पांच सौ से चार सौ साठ रूपये भी तो वापिस करने थे।
उसकी मुस्कुराहट और घनिष्टता का रहस्य मेरे सामने बिखरा पड़ा था।

रविवार, मार्च 27, 2016

समय

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गुरुवार, अक्तूबर 03, 2013

हिमाचल का पहला लघुकथाकार सम्मेलन

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हिम साहित्यकार सहकार सभा पंजीकृत  प्रदेश कार्यालय   मिश्रा भवन रौड़ा सेक्टर बिलासपुर 174001


हिम साहित्यकार सहकार सभा द्वारा आगामी 28 नवंबर 2013 को हिमाचल प्रदेश के दिल बिलासपुर के नगर परिषद सभागार में हिमाचल का पहला लघुकथाकार सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं लघुकथा के सशक्त हस्ताक्षर कमलेश भारतीय होंगे।इसके अलावा हरियाणा और उत्तराखंड से भी जाने माने लघुकथाकार विशिष्ट अतिथि के रूप में पधार रहे हैं। इस सम्मेलन में आजकल लिखी जा रही लघुकथा पर विशेष चर्चा होगी और लघुकथा पाठ भी करवाया जाएगा। सम्मेलन में एक अद्वितीय स्मारिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है
आपसे आग्रह है कि आप अपनी बेहतरीन पांच लघुकथाओं का सैट और अपने आने की पूर्व सूचना उपरोक्त पते पर दिनांक 15 अक्तूबर 2013 तक भिजवाएं ताकि उचित व्यवस्था की जा सके और चयनित लघुकथा को स्मारिका में प्रकाशित किया जा सके।

 
    अरूण डोगरा रीतू                      रतन चंद निर्झर
    प्रदेश महासचिव                प्रदेश अध्यक्ष
   98572 17200                                              94597 73121

रविवार, सितंबर 29, 2013

22वाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन

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   पंजाबी त्रैमासिक ‘मिन्नी’ तथा  श्री गुरू रामदास कॉलेज ऑफ नर्सिंग, पंधेर (अमृतसर) के संयुक्त तत्वावधान में दिनांकः 19 अक्तूबर, 2013 (शनिवार)  स्थानः श्री गुरू रामदास कॉलेज ऑफ नर्सिंग, पंधेर (अमृतसर)
22वाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन
                                      कार्यक्रम
प्रथम सत्र : 4.00 बजे बाद दोपहर:  विचार-चर्चा, पुस्तक विमोचन, सम्मान एवम् पुरस्कार
अध्यक्षता: सर्वश्री डॉ. जोगेंद्रजीत सिंह (उप-मंडल मैजिस्ट्रेट, बटाला) डॉ. सुखदेव सिंह खहिरा, भगीरथ,    रामेश्वर काम्बोज हिमाँशु, डॉ. बलराम अग्रवाल, सुरिंदर कैले

आलेख  : * मिन्नी कहाणी के चार दशक: रूपक पक्ष में हुआ विकास (पंजाबी में) :
डॉ. अनूप सिंह
 * मिन्नी कहाणी के चार दशक: विषयगत विस्तार एवं संभावनाएँ (पंजाबी में) :
डॉ. कुलदीप सिंह दीप
 * पंजाबी लघुकथा के विकास में पत्रिका ‘मिन्नी’ का योगदान (पंजाबी में) : 
जगदीश राय कुलरियाँ

 चर्चाकार : सुकेश साहनी, निरंजन बोहा, सुभाष नीरव, डॉ.रूप देवगुण, राम कुमार आत्रेय, डॉ. नायब सिंह मंडेर,

विमोचन : * मिन्नी कहानी दे चार दहाके : सं. दीप्ति, अग्रवाल, नूर       
            * रिश्तिआँ दी नींह : जगदीश राय कुलरियाँ
          * सन 47 तों बाद : बिक्रमजीत नूर 
         * मेरी सरघी : हरजिंदर कौर कंग                                                             * पत्रिका ‘मिन्नी’ का अंक-101 : सं. दीप्ति, अग्रवाल, नूर
          * पंजाबी मिन्नी कहाणी: विधागत सरूप ते शिल्प विधान : निरंजन बोहा
         
सम्मान :  * श्री गुरमीत हेयर स्मृति सम्मान : श्री हमदर्दवीर नौशहरवी
           * किरन अग्रवाल स्मृति सम्मान : डॉ. कर्मजीत सिंह नडाला                     * प्रिंसिपल भगत सिंह सेखों स्मृति सम्मान : श्री प्रीत नीतपुर
     * मिन्नी कहाणी लेखक मंच, अमृतसर की ओर से लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार
        
द्वितीय सत्र: रात्रि 8.30 बजे:  जुगनुआँ दे अंगसंग’ (‘मिन्नी’ का तिमाही आयोजन)
   उपस्थित हिंदी-पंजाबी लेखकों/लेखिकाओं द्वारा लघुकथा-पाठ एवं प्रत्येक रचना पर विचार-चर्चा
                     इस सुअवसर पर आप सादर आमंत्रित हैं।                            
                                       विनीतः


डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति               डॉ. अनूप सिंह              प्रिं. हरजिंदर कौर कंग  
(09815808506)                     हरभजन खेमकरनी               09501725553                                       
श्याम सुन्दर अग्रवाल                       डॉ. शील कौशिक                      अवतार सिंह
बिक्रमजीत नूर                            डॉ. सुखदेव सिंह सेखों                   हरपाल सिंह नागरा




आवश्यक सूचनाः आयोजन स्थल अमृतसर-फतेहगढ़ चूड़ियाँ रोड पर अमृतसर से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर है। बाहर से आने वाले लेखकों को आयोजन स्थल पर ले जाने हेतु कॉलेज की बस अमृतसर बस स्टैंड से 3.00 बजे रवाना होगी। शनिवार रात्रि को भोजन एवम् आवास की व्यवस्था आयोजन स्थल पर ही रहेगी। कभी भी आवश्यकता पड़ने पर सम्पर्क करें: डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति (मोब-09815808506), श्याम सुन्दर अग्रवाल (09888536437), प्रिं. हरजिंदर कौर कंग (09501725553)

बुधवार, जनवरी 23, 2013

उपाय

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उस दिन बस में भीड़ थी। अपेक्षाकृत ज्‍यादा भीड़। घर पहुंचने के लिए उसी बस में यात्रा करना जरूरी भी था। बस के भीतर गाना गाते शोर मचाते कुछ उदण्‍ड छात्रों को देख कर मुझे गुस्‍सा तो आया परन्‍तु चुप्‍पी के सिवा और क्‍या किया जा सकता था। 
कुछ दूर चलने के बाद बस के ब्रेक चरमराये तो शोर उठा चैकर आ गया चैकर आ गया। टिकट चैक हुए । उन छात्रों के पास टिकट थे ही नहीं। परिणमत: कुछ डाट के साथ उन्‍हे टिकट दिलाया गया और भविष्‍य के लिए चेतावनी भी दी ग‍ई।
बस पुन: चली। अब सब कुछ सामान्‍य था। न शोर और न ही गीत संगीत। अब वे छात्र बस में स्‍वयं को अलग थलग पा रहे थे। परन्‍तु शेष यात्रा शान्तिपूर्वक हुई। 
मैं स्‍वयं को बेहद हल्‍का महसूस कर रहा था। 

सोमवार, जनवरी 31, 2011

भारत की हिंदी लघुकथाएं

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पेशे से चिकित्सक डॉ. रामकुमार घोटड़ ने साहित्य के क्षेत्र में लघुकथा पर वृहद और कई महत्वपूर्ण कार्य किया है और अब तक उन्हें 22 पुस्तकों में समेटा है। इसी श्रृंखला में सद्य-प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय  हिन्दी लघुकथाएं’ इस मायने में ध्यान खींचती है कि इसमें देश  के लगभग हर प्रान्त के हिन्दी लघुकथाकारों की लघुकथाएं समाहित हैं और लघुकथा के सभी दिग्गज इसमें शामिल हैं। यह संकलन दो खंडों में है। ‘विरासत के धनी’ नामक पहले खंड में भारतेंदु हरिश्चंद्र , माधव राव सप्रे, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद , पदुमलाल पन्नालाल बक्षी, उपेन्द्रनाथ अश्करावी और विष्णु  प्रभाकर जैसे मूर्धन्य व अग्रज लेखकों की एक-एक लघुकथाएं संकलित हैं जबकि दूसरे खंड का नाम ‘विरासत के कर्णधार’ रखा गया है। इसमें लगभग वे सभी आधुनिक लेखक हैं जिन्होंने राष्ट्रीय  स्तर पर लघुकथा क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी है। इन लघुकथाकारों की तीन-तीन लघुकथाएं इसमें शामिल की गई हैं। डा. घोटड़ के अनुसार प्रथम व द्वितीय खंड में पुस्तक को विभक्त करने का उद्देष्य यह है कि पाठक पूर्ववर्ती ओर वर्तमान में लिखी जा रही लघुकथाओं से गुजरकर उनका पठनीय रसास्वादन और तात्विक मूल्यांकन कर सके।
यह कहना गलत नहीं होगा कि 1942 में बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ द्वारा नामांकित लघुकथा आज साहित्य की एक सशक्त और स्वीकृत विधा है तथा अन्य विधाओं की तरह देश -विदेश  में इस पर प्रयोग होते आ रहे हैं। फिर भी लघुकथा का मार्मिक प्रभाव इसके कम और उद्वेलित करने वाले शब्दों के कारण अधिक है। इसी से सार्थक लघुकथाएं हमेश  मानस-पटल पर लम्बे समय के लिए अंकित हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर इसी पुस्तक के प्रथम खंड में संकलित भारतेन्दु हरिश्चंद्र  (1850-1885) की लघुकथा ‘अंगहीन धनी’ को लिया जा सकता है।
‘‘एक  धनिष्ट के घर उसके बहुत से प्रतिष्ठित  व्यक्ति बैठे थे। नौकर बुलाने की घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा,  पर हंसता हुआ लौटा। दूसरे नौकरों ने पूछा, ‘क्यों हंस रहे हो?’ तो उसने जवाब दिया, ‘भाई सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उनसे एक बत्ती न बुझे, जब हम गए तो बुझे।’
मानव-मन के विभिन्न धरातलों पर रचे गए इस संकलन की लघुकथाओं को पढ़ते हुए ऐसे ही कई अनुभव, संप्रेषण और भाव जगते हैं। इनमें कहीं दुःख की नदी बहती है तो कहीं सुख का झरना। कहीं विसंगतियां हैं तो कहीं मुखौटा ओढ़े आदमी का चेहरा-दर-चेहरा। भूख की त्रासदी, गरीब-मजदूरों, किसानों की व्यथा, नेताओं का दोगलापन, राजनीति का भ्रष्ट आचरण, पुलिस के चेहरे, औरतों व बच्चों का शोषण -उत्पीड़न, व्यवस्था के डगमगाते रूप आदि जीवन के सभी पहलू यहां देखने को मिलते हैं तो साथ ही इनसे उभरती उम्मीद की किरणें। कथा-कहानियों  और यहां तक कि मीडिया में भी पुलिस का भ्रष्ट चेहरा ही दिखाया जाता है और उन पर लघुकथाएं भी खूब लिखी गई हैं, पर इस संकलन में पुलिस का सकारात्म पक्ष उनके अंदर के इंसानियत को दर्शाता है। अशोक भाटिया की लघुकथा ‘प्रतिक्रिया’, विजय रानी बंसल की ‘पुलिस’ और प्रताप सिंह सोढी की 'दुविधा' ऐसी  ही लघुकथाएं हैं। महेन्द्र सिंह महलान ने ‘झंडा’ में व्यवस्था का क्रूर उदाहरण प्रस्तुत किया है तो जयप्रकाश मानस  ने ‘वोट’ के अंतर्गत यह दर्शाया  है कि भूखे-मजदूरों को आर्थिक सहायता देने की बात हो तो वे भी यही समझते हैं कि चुनाव आने वाला है। लघुकथा क्षेत्र में नेताओं की छवि आजतक सुधर नहीं पायी जिसका मुख्य कारण हमारा भ्रष्टतंत्र ही है। ‘विजय-जुलूस‘(रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु'), ‘राजनीति’(सुरेन्द्र मंथन), ‘सियासत’(जसबीर चावला), ‘चुनाव’ ’(शंकर पुणतांबेकर), ‘चुनाव से पहले’ ’(महेश राजा), ‘लोकतंत्र‘ ’(अमरनाथ चौधरी अब्ज) आदि लघुकथाएं इसी ओर इशारा करती हैं। सुकेश साहनी, महेन्द्र सिंह महलान और धर्मपाल साहिल की लघुकथाएं बच्चों का मनोविज्ञान प्रस्तुत करने में सफल रही हैं तो सुदर्शन वशिष्ठ, डा. किशोर काबरा और युगल ने बुजुर्गों की व्यथा को उकेरा है। सफर में घटने वाली घटनाओं को माध्यम बनाकर कई उम्दा लघुकथाएं लिखी गई हैं जो इस संग्रह की पठनीयता को बरकरार रखती हैं। हीर के सुरीले बोल सुनते हुए एक पाकिस्तानी किसान कब देश  की सीमा पार कर गया, उसे पता ही नहीं चला। इसे श्याम सुन्दर दीप्ति ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से अपनी लघुकथा ‘हद’ में कलमवद्ध किया है। इसी तरह रोशन विक्षिप्त की चार वाक्यों की लघुकथा ‘निर्णय’ एक विसंगति की ओर इशारा करती है--- वह शक के आधार पर पकड़ा गया था। अपने पक्ष में गवाह प्रस्तुत न कर पाने के कारण उसे सात साल कैद का निर्णय दिया गया। जेल में अच्छे आचरण के कारण उसे अवधि से पहले रिहा करने का निर्णय लिया गया।
संकलन में इस तरह की कम शब्दों की लघुकथाएं बहुत मारक हैं। डा. राजेन्द्र सोनी की लघुकथा ‘गांधी के प्रतीक बंदर’ यों उभरा है ---इक्कीसवीं सदी प्रारम्भ हुई और गांधी जी के तीनों बंदरों ने अपने-अपने हाथ हटा लिए। आखिर ऐसा क्यों....?  पूछने पर समवेत स्वर सुनाई दिया, अब जीवन में ऐसी गलती नहीं करेंगे।
दफ्तरी व्यवस्था पर बलराम अग्रवाल (बिना नाल का घोड़ा), और डा0 सतीशराज पुश्करणा (बीती विभावरी) की लघुकथाएं अच्छी बन पड़ी हैं तो श्याम सुन्दर अग्रवाल (स्कूल), डा. रूप देवगुण (लक्ष्मी), डा. योगेन्द्रनाथ शुक्ल  (शिकार), मधुकांत (मेरा अध्यापक), शिक्षा-व्यवस्था की पड़ताल करते नजर आते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि संकलन में कई अच्छे लघुकथाकार छूट गए हैं और महिला लघुकथाकार भी गिनती के हैं। महिला लघुकथाकारों में डा. आभा झा, डा. आशा पुष्प, मालती वसंत, सुरभि रैना बाली, विजय रानी बंसल और पुष्पलता कश्यप ही हैं। चर्चित लघुकथाकारों में कमल चोपड़ा, कमलेश भारतीय, डा0 रामनिवास मानव, घनश्याम अग्रवाल, भगवान वैद्य प्रखर, भगीरथ, राजेन्द्र सोनी, विक्रम सोनी
रामयतन यादव, तारिक असलम ‘तस्नीम’ आदि भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। हालांकि पुस्तक संग्रहणीय है पर लघुकथाओं के चुनाव में भी डा. घोटड़ कहीं-कहीं चूकते नजर आते हैं।
पु स्तकः भारत की हिन्दी लघुकथाएंः डा.राम कुमार घोटड़
प्रकाशकः मंजुली प्रकाशन, पी-4, पिलंजी सरोजिनी नगर,
नई दिल्ली-110023
मूल्यः 400 रुपए


साभार :  रतन चन्‍द रत्‍नेश

मंगलवार, जुलाई 14, 2009

लघुकथा : कलयुग

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काफी दिनों बाद इंदर से मुलाकात हुई तो पुराने मित्रों के बारे में बातचीत होने लगी ! मित्रों की सफलता और असफलता के किस्सों के बाद बाज़ार की तरफ़ निकले तो आवारा घुमते पशुओं की दशा पर चिंता हुई और उन पर दया आने लगी ! पशुओं की इस दशा पर मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया 'जब तक पशु काम का था तो खूब काम लिया और जब नकारा हो गया तो घर से बाहर निकालदिया !'
एकाएक इंदर बोल पड़ा अब वो दिन दूर नहीं जब घर के बूढों की भी नकारा होने पर घर से बाहर धकेल दिया जाएगा और आवारा घुमते दिखने पर कहा जाएगा, 'अरे यह तो फलां का बाप है !'
मुझे इंदर के चेहरे पर क्रोध के भाव साफ दिख रहे थे ! एक कटु सत्य मेरे सामने चुपचाप मुस्कुरा रहा था !
(12 जुलाई 2009 को दिव्य हिमाचल हमसफर परिशिष्ट में प्रकशित)
 
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