देवता झूठ नहीं बोलता
- ------ ----- ---- --- बात निकलेगी तो दूर तलक जाऐगी। अब शीर्षक ही लीक से हट कर हो तो चर्चा होना
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देवता झूठ नहीं बोलता
- ------ ----- ---- --- बात निकलेगी तो दूर तलक जाऐगी। अब शीर्षक ही लीक से हट कर हो तो चर्चा होना
हर रोज़ ही
उस दूकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। भीड़ हो भी क्यों न?
जो सामान कहीं अन्य दूकान पर ना मिले तो उस दूकान पर सस्ता और हमेशा
उपलब्ध हो जाता था। यही कारण था कि उस दूकान पर हमेशा भीड़ उमड़ी रहती थी। दूकान का
नाम भी आकर्षित करता था सच्ची दूकान ।
हर वर्ष उस
दूकान का मालिक सभी के लिए भंडारे का आयोजन भी करता और खूब दान आदि भी देता। लोग
कहते थे कि ईश्वर की उस पर विशेष कृपा है।
कृपा के
साथ साथ उसकी समृद्धि की चर्चा अक्सर लोग करते रहते थे। गाहे बगाहे ये चर्चाएं मुझ
तक भी पहुंचती रहती थी। इतनी चर्चा और प्रसिद्धि के बावज़ूद कभी उस दूकान से सामान
लेने का अवसर नहीं मिला।
रविवार का
दिन वैसे तो आराम का दिन होता है। रसोई का कुछ सामान समाप्त हो गया था। सूची लम्बी
बन गई थी। सोचा उसी दूकान का लाभ उठाया जाए। परिचय भी हो जायेगा।
सामान की
सूची दूकानदार को दी। सामान पैक हुआ और वापस हो लिया। घर आ कर सामान खोलने लगा तो
एक पैकेट पर बेस्ट बिफोर डेट पर पढ़ी। डेट
खत्म हो चुकी थी। पूरा सामान चेक किया तो तीन सामान की डेट एकस्पायरी निकली। ऐसी
षिकायत अन्य ग्राहकों से भी सुनने को मिली थी। लोग तो कहते थे कि पूरा साल
एकस्पायरी बेचते रहो और साल में भण्डारा और दान दिया करो। पाप कट जाते है। उस
दूकान के सस्ते सामान और ईश्वर कृपा का गणित धीरे धीरे मेरी समझ में आ रहा था।
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एक सौ साठ पृष्ठों का ये संकलन संग्रहणीय और पठनीय है। के एल पचौरी प्रकाशन गाज़ियाबाद से प्रकाशित हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है ।
उसकी बातें उसकी सुंदरता की तरह ही आकर्षक होती थी। कोई भी उससे मिलता तो उसका मुरीद हो जाता। मैं भी उसकी उसकी बातों से बेहद प्रभावित रहा।
कार्यालय में सभी स्टाफ सदस्य वार्षिक उत्सव पर विचार विमर्श कर रहे थे कि सेवादार ने सूचना दी कि गांव से उसके सास ससुर मिलने आये है। ।
मैंने उससे आग्रह किया कि आप सास ससुर से मिलने जा सकती हैं। उसने बड़े ही रूखे स्वर में तुरंत इनकार कर दिया और कहने लगी उनका लड़का मिल लेगा । उनके शरीर से तो गांव वाली गंध आती है।
मैं हैरानी से उसका चेहरा ताकता रह गया। उसकी सुंदरता अब मुझे कुरूपता नज़र आ रही थी।
यूँ तो उससे कोई पुराना परिचय नहीं था, मात्र इतना कि वो दूकानदार था और मैं उसका ग्राहक। रोज उससे दूध की थैली ले जाता और दुआ सलाम हो जाता। उसका हमेशा का आग्रह की कभी घर आइयेगा चाय पर, मैं कभी पूरा नहीं कर पाया।
उसकी मुस्कुराहट उसका व्यवहार उसकी घनिष्ठ मित्रता प्रदर्शित करती थी।
उस दिन छोटे रूपये न होने के कारण पांच सौ का नोट उससे देना चाहा । देखते ही बोला सर जी दूध तो ख़त्म हो गया। अब चालीस रूपये के चक्कर में पांच सौ का नोट कौन स्वीकारता। मेरे दुकान से बाहर निकलते ही उसने दूसरे ग्राहक को दूध की थैलियां दे दी। उस ग्राहक ने उससे पूछा ये तो आपके नियमित ग्राहक है फिर इस क्यों? उसने मुस्कुराते हुए उस ग्राहक को जवाब दिया जनाब पांच सौ से चार सौ साठ रूपये भी तो वापिस करने थे।
उसकी मुस्कुराहट और घनिष्टता का रहस्य मेरे सामने बिखरा पड़ा था।
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