उस दिन बस में भीड़ थी। अपेक्षाकृत ज्यादा भीड़। घर पहुंचने के लिए उसी बस में यात्रा करना जरूरी भी था। बस के भीतर गाना गाते शोर मचाते कुछ उदण्ड छात्रों को देख कर मुझे गुस्सा तो आया परन्तु चुप्पी के सिवा और क्या किया जा सकता था।
कुछ दूर चलने के बाद बस के ब्रेक चरमराये तो शोर उठा चैकर आ गया चैकर आ गया। टिकट चैक हुए । उन छात्रों के पास टिकट थे ही नहीं। परिणमत: कुछ डाट के साथ उन्हे टिकट दिलाया गया और भविष्य के लिए चेतावनी भी दी गई।
बस पुन: चली। अब सब कुछ सामान्य था। न शोर और न ही गीत संगीत। अब वे छात्र बस में स्वयं को अलग थलग पा रहे थे। परन्तु शेष यात्रा शान्तिपूर्वक हुई।
मैं स्वयं को बेहद हल्का महसूस कर रहा था।
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