google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : कुते भौंक रहे है

शनिवार, फ़रवरी 02, 2013

कुते भौंक रहे है


गोरे गए अब काले लूट रहे है 
तिजोरियों के तालें टूट रहे है 

मुफलिसी का आलम है चहुं ओर 
हुक्‍मरानों के पटाखे फूट रहे है

आवाज उठाना तेरे मेरे बस में नहीं
सांस अन्‍दर ही अन्‍दर टूट रही है 

ख्‍वाब की बदल डालोगे जहां
ये कैसी इक हूक उठ रही है

मुन्सिब क्‍या पकड़ेगा जुर्म को
जनाब के पसीने छूट रहे है 

बस्‍ती में  घुस आए है गीदड़
सुनो ज़रा गोर से कुते भौंक रहे है 


रौशन जसवाल विक्षिप्‍त

3 Reviews:

कविता रावत on 6 अक्तूबर 2015 को 4:55 pm बजे ने कहा…

सटीक सामयिक...
हर तरह उनका राज
कौन सुनेगा आवाज ....

रौशन जसवाल विक्षिप्त on 6 अक्तूबर 2015 को 6:13 pm बजे ने कहा…

@kuldeep thakurआभार्

रौशन जसवाल विक्षिप्त on 6 अक्तूबर 2015 को 7:52 pm बजे ने कहा…

@Kavita Rawatआभार्

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