हर रोज़ ही
उस दूकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। भीड़ हो भी क्यों न?
जो सामान कहीं अन्य दूकान पर ना मिले तो उस दूकान पर सस्ता और हमेशा
उपलब्ध हो जाता था। यही कारण था कि उस दूकान पर हमेशा भीड़ उमड़ी रहती थी। दूकान का
नाम भी आकर्षित करता था सच्ची दूकान ।
हर वर्ष उस
दूकान का मालिक सभी के लिए भंडारे का आयोजन भी करता और खूब दान आदि भी देता। लोग
कहते थे कि ईश्वर की उस पर विशेष कृपा है।
कृपा के
साथ साथ उसकी समृद्धि की चर्चा अक्सर लोग करते रहते थे। गाहे बगाहे ये चर्चाएं मुझ
तक भी पहुंचती रहती थी। इतनी चर्चा और प्रसिद्धि के बावज़ूद कभी उस दूकान से सामान
लेने का अवसर नहीं मिला।
रविवार का
दिन वैसे तो आराम का दिन होता है। रसोई का कुछ सामान समाप्त हो गया था। सूची लम्बी
बन गई थी। सोचा उसी दूकान का लाभ उठाया जाए। परिचय भी हो जायेगा।
सामान की
सूची दूकानदार को दी। सामान पैक हुआ और वापस हो लिया। घर आ कर सामान खोलने लगा तो
एक पैकेट पर बेस्ट बिफोर डेट पर पढ़ी। डेट
खत्म हो चुकी थी। पूरा सामान चेक किया तो तीन सामान की डेट एकस्पायरी निकली। ऐसी
षिकायत अन्य ग्राहकों से भी सुनने को मिली थी। लोग तो कहते थे कि पूरा साल
एकस्पायरी बेचते रहो और साल में भण्डारा और दान दिया करो। पाप कट जाते है। उस
दूकान के सस्ते सामान और ईश्वर कृपा का गणित धीरे धीरे मेरी समझ में आ रहा था।
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