google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : समीक्षा

समीक्षा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
समीक्षा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, दिसंबर 10, 2023

जीवन के उच्च मूल्यों को दर्शाती 'खाली भरे हाथ'

0 Reviews

समीक्षा खाली भरे हाथ। मूल लेखक : आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र I

अनुवाद राम लाल वर्मा राही I समीक्षक : रौशन जसवाल

 --------------------------------------  

खाली भरे हाथ आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र की हिन्दी बोध कथाओं का पहाड़ी (क्योंथली) अनुवाद है। अनुवाद रामलाल वर्मा राही ने किया है। आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र का साहित्य जगत में महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर है। उनका साहित्य जगत में अविस्मरणीय योगदान रहा है।

 खाली मरे हाथ साठ पृष्ठों की पुस्तक है जिसमें 76 बोध कथाएं संकलित की गई है। पुस्तक का प्राकथन डॉ. प्रेमलाल गौतम जी ने लिखा है। पुस्तक शीर्षक 'खाली भरे हाथ को लेकर वे पाठको की जिज्ञासा को पूर्ण करते हुए संस्कृत का श्लोक का उदाहरण देते है :-

 नमन्ति फलिनों वृक्षाः नमन्ति सज्जनाजनाः ।

शुष्कवृक्षाश्च मुर्खाश्च न नमन्ति कदाचन ।।

 अर्थात ज्ञानवान व्यक्ति फलों से लदे झुके वृक्षों की भांति विनम्र और सहृदय होते है और ज्ञानशून्य शुष्क नम्रता रहित खाली होते है।

 जिऊवे री गल में लेखक अपने पुस्तक खाली भरे हाथ। बोध कथायें। हृदय उद्‌गार व्यक्त करते हुए इस अनुवाद की आवश्यकता पर पर लिखते है कि हिन्दी में इन बोध कथाओं को पढ़ने के बाद उन्होंने महसूस किया कि इन्हें अपनी बोली में अनुदित करने से बच्चों को संदेश और प्रेरणा मिलेगा। इसके माध्यम से वे अभिप्रेरित भी होंगे। जिऊवे री गल में सभी सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त करते है खाली मरे हाथ की में बोध कथाओं की शुरुआत दुनिया री सैल बोध कथा से होती है जिसमें बचपन और जवानी का मार्मिक वार्तालाप है। इस बोध कथा का मूल सन्देश है कि जीवन यात्रा में अनेक पड़ाव आते है। रास्ते में आने वाली कठिनाईयों का सामना करते हुए समाज के प्रति ईमानदारी का भाव रहना आवश्यक है।

रुकावट बोध कथा भी जीवन यात्रा को सम्बोधित करती है । इस कथा में जीवन में करुणा, दया के एक दूसरे की मदद करने को विषय बना सारगर्भित सन्देश दिया गया कर। इस विषय को ठींड और जवाणस बोधकथा में भी लिया गया जो वास्तव में प्रेरक और प्रभावशाली है स्त्री पुरुषों जीवन सम्बंधों पर खाली भरे हाथ पुस्तक में जवाणसो री तमन्ना, जवाणसा रा जीऊ, जवाणसा री चुनरी, एस्स जमाने री प्रेमिका, जवाणसो रा प्यार, बोध कथाएं है। ये बोध सम्बंधों में ईमानदारी समाज, परिवार और प्रत्येक कार्य के प्रति स्नेह, आत्मीय सम्बंधों और कार्यशील रहने का सन्देश देती है। माछो री माटी, माछो रा आपणा, माछो री कमजोरी, ठींडो री मजबूरी कुछ ऐसी बोध कथाएं है जो मनुष्य मात्र को कर्तव्य बोध का अहसास के पात्र है। हमारे खान पान में मांसाहार और शाकाहार में से श्रेष्ठ आधार को व्यक्त करती बोध कथाएं मांसाहारी रा कारण और 'शाखाहारी रा जोर प्रेरक बोध बोधकथाए  है तो आहार के चयन उपयोगिता पर प्रकाश डालती है। पापी सरीर बोध कथा में दशहरा के माध्यम बुराई के समूल नाश औ स्वस्थ जीवन यापन पर जोर दिया। गया है।

शर्मी रा पर्दा बोध कथा में प्रातःकाल और रात के वार्तालाप के माध्यम से सुबह जल्दी जागने के महत्त्व को दर्शाया गया जो वास्तव में तार्कित और युक्ति संगत है। कामणा बोधकथा में भी दीपक के दूसरे को प्रकाश देने के माध्यम से जीवन में लोक कल्याण और जन सेवा में लगाने का सन्देश दिया गया है।

 शीर्षक बोधकथा खाली भरे हाथ में छोटे बच्चे और उम्र दराज दादा का फल युक्त और फल रहित वृक्षों के बारे जिज्ञासा पूर्ण वार्तालाप है। फलयुक्त वृक्ष सदा ही झुके रहते है जबकि फल रहित वृक्ष तनकर कर सीधे खड़े होते है। वैसे ही विनम्र व्यक्ति फलयुक्त वृक्षों की भांति होता है। इसी तरह काग सनैहा में बच्चा माँ से पूछता है कि कोऊआ हर रोज सभी घरों में उड़ता हुआ कांव कांव क्यों करता रहता है। माँ बच्चे को कौए की कांव कांव को आहार खान पान से जोड़ते हुए आहार चयन के महत्त्व के बारे में समझाती है कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं चाहिये। खाली भरे हाथ में आम्मा रा सनेहा बोधकथा माँ की पूजनीयता के बारे में सन्देश देती है। माँ की महत्त्वपूर्णता ओर उसके होने का अहसास जीवन में प्रसन्नताओं का संचार करता है। शिक्षा देने वाला त्याग, पढ़ा लिखा मूर्ख, सुअरों री आदत, बियूंत, नजरा री कमी, रोटी अरो जुद्ध और कमजोरी ई मौत इस पुस्तक की प्रेरक और अभिप्रेरित करने वाले बोध कथाओं में प्रमुख है। रोटी रो जुद्ध बोधकथा हर समय में प्रासंगिक और समसामयिक बोध

 कथा है। मींस (प्रतिस्पर्धा) बोध कथा में पतंगों के माध्यम से बेहद ही मार्मिक और सार्थक सन्देश दिया है कि जीवन का मूल सन्देश एक दूसरे से ईर्षया करना नहीं अपितु सहयोग, समरसता और मदद करना है। खाली भरे हाथ में अनुदित सभी बोध कथाए जीवन दर्शन का परिचायक है। 

पुस्तक की विशेषता है कि कठिन पहाड़ी शब्दों के पाद टिप्पणी में अर्थ दिए गए है जो पाठकों को
कठिन पहाड़ी शब्दों को समझने में सहायता करते है। पहाड़ी में अनुवाद बेहद कम हो रहा है लेकिन राम लाल वर्मा राही का ये प्रयास श्लाघनीय है। पुस्तक पठनीय
, संग्रहणीय तो है ही साथ ही बच्चों के चरित्र निर्माण और दृष्टिकोण विकास में सहायक है।

पुस्तक की महता देखखते ही हिमाचल के राज्यपाल महामहिम शिव प्रताप शुक्ल जी ने राजभवन में विमोचन किया था। बेशक पुस्तक 60 पृष्ठों की छोटी आकार में है परन्तु सभी बोध कथाएं अभिप्रेरित और जीवन को स्वच्छ उच्च मूल्य देने वाली बोध कथाएँ है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि आचार्य जगदीश चंद्र मित्र की हिन्दी बोध कथाओं को पहाड़ी (क्योंथली) में अनुदित करने में राम लाल बर्मा राही ने ईमानदारी से मेहनत की है जिसके लिए वे बधाई के पात्र है।


GIRIRAJ  15-21 NOV. 2023


शनिवार, अक्तूबर 21, 2023

देवता झूठ नहीं बोलता

0 Reviews

 देवता झूठ नहीं बोलता

- ------ ----- ---- ---    बात निकलेगी तो दूर तलक जाऐगी। अब शीर्षक ही लीक से हट कर हो तो चर्चा होना  

स्वाभाविक है। शीर्षक है देवता झूठ नहीं बोलता, मनोज चौहान का लघुकथा संग्रह। देवता झूठ नहीं बोलता मनोज चौहान की दूसरी पुस्तक है जो अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित हुई है। 
मनोज चौहान पहली पुस्तक काव्य संग्रह के रूप में 'पत्थर तोड़ती औरत' 2017 में अंतिका प्रकाशन के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंची थी। इस काव्य संग्रह ने साहित्य जगत, खास कर युवा रचनाकारों के मध्य सार्थक अस्थिति दर्ज करवाई थी।
फिलहाल हम बात कर रहे है लघुकथा संग्रह 'देवता झूठ नहीं बोलता 'की। मित्रवत सम्बंधों के चलते मनोज चौहान ने ये लघुकथा संग्रह डाक द्वारा मुझ तक पहुंचाया। पुस्तक का शीर्षक, और गेटअप देख कर मैं पुस्तक के प्रति आकर्षित तो हुआ साथ ही जिज्ञासा भी उत्पन्न हुई। प्रारम्भ में कुछ लघुकथाओं पर नज़र डाली, अच्छी लगी तो सोचा कुछ चुनी हुई लघुकथाओं को अपने Youtube चैनल के लिए रिकार्ड कर पाठकों के लिए प्रस्तुत करूंगा।  परन्तु ज्यो ज्यो पुस्तक में आगे बढ़ता गया तो निर्णय में परिवर्तन हुआ और संग्रह की सभी लघुकथाओं को 40 ऐपिसोड में रिकार्ड कर लिया। सच मानिए लघुकथाओं को पढ़ते और रिकार्ड करते बेहद आनन्द आया।
देवता 'झूठ नहीं बोलता' की लघुकथाएं हमारी आस पास की घटनाओं का एक गंम्भीर दस्तावेज है । लघुकथाओं के पात्र और केन्द्रीय विषय लगता है जैसे वे हमारे बेहद समीप है और पात्र घटनाये जैसे हमारे सामने सजीव हो। 
संग्रह से गुजरते हुए पाया कि लघुकथाएं  सामाजिक असमानता, अंध विश्वास, जातिय वर्ग भेद, जीवन स्तर की असमानता, धार्मिक असमानता अवसरवादिता, राजनैतिक गतिरोध, ग्रामिण संकीर्णता जीवन परम्पराओं और संस्कृति को समेटे हुए है। देवता झूठ नहीं बोलता लघुकथा संग्रह में मुझे विविधता का आभास हुआ। कभी कभी कहीं कहीं केन्द्रीय विषय की पुनारावृति भी महसूस हुई।
इन्ही बिन्दुओं के आधार पर ही मैं संग्रह पर कुछ बोलने लिखने में सक्षम हो पाया।
देवता झूठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं प्रथम वर्ग यानी अँध विश्वास, जातिय भेदभाव, सामाजिक विभिन्न, असमानताओं पर आधारित है। व्यंग्य बाण, भीतर का डर, बहुत देर हो गई, वशीकरण, संकीर्ण सोच, आत्मबोध, लोकलाज और शीर्षक लघुकथा · देवता झूठ नहीं बोलता' इसी वर्ग में आती है शीर्षक लघुकथा 'देवता झूठ नहीं बोलता' हमारे ग्रामिण परिवेश की जातिय गूढ़ता का परिचय देती है। नाम के साथ सरनेम न होना ग्रामिण क्षेत्रों में बहुधा समस्या उत्पन्न  कर देता है।  शीर्षक लघुकथा में प्रयुक्त संवाद " म्हारा देवता नहीं मानता' ग्रामिण क्षेत्रों में धार्मिक और जातिय असमानता और भेदभाव को दर्शाता है। 'बकरा लघुकथा में लेखक मिस्त्री जमनू के माध्यम से इसी तरह के वर्गभेद का सुन्दरता और सरल शब्दों में उल्लेख करता है। दण्ड स्वरूप 'बकरा' देना ये प्रथा आज भी बहुधा देखने को मिल जाती है। मुझे लगता है सामाजिक संरचना की तरफ संकेत करती अन्य विभिन्न लघुकथाए पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करेंगी।
धार्मिक और जातिय भेदभाव, असमानता और सर्कार्ण सोच पर आधारित लघु‌कथाएं,  वो तो पेट में है, मौका परस्त, संकीर्ण सोच, डाका, आत्म बोध, कुछ ऐसी रचनाएं है जो पाठकों को  अवश्य उद्वेलित करेंगी।
द्वितीय श्रेणी में अवसरवादिता, राजनैतिक प्रभाव, और महत्वांकाक्षा जैसे विषयों को समेटे अनेक सारमार्गित और तार्किक तथा प्रभावशाली लघुकथाएं है। 'अपने लोग'
दोगलापन, सरकारी राशन, नवीनीकरण, संगत में रंगत, कीड़े मकोड़े, सहपाठी, और फोन कट गया, जुगाड,  पर्दे, साँठ गाँठ, नकली, नोटबंदी, बीच का रास्ता, असली चेहरे कुछ ऐसी  लघुकथाए हैं जो पाठकों को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करेंगी, ऐसा मेरा मानना है।  पर्दा लघुकथा का विषय इसी ताने बाने में बुना है। इस श्रेणी में मुझे पांच सौ का नोट, औचक निरीक्षण, संघर्ष की राह,  सहपाठी लघुकथाए व्यक्तिरूप से प्रभावित करती है।
जीवन परम्पराओं जीवन संस्कृति और लिंग भेद जैसे विषयों पर आधारित लघुकथाओं में अहसास, मातृत्व, लिहाफ, गुड्डे को सॉरी बोलो, बदलाव, अपने हिस्से का संघर्ष, संवेदनशीलता, बायोडाटा, पापा आप कब आओगे, उधारी नहीं होगी, भोलापन आदि लघुकथाएं पाठकों को अवश्य ही प्रभावित करेगी और पाठकीय रुचि में वृद्धि करेगी ऐसी आशा है।
लघु कथा संग्रह देवता झूठ नहीं बोलता' से गुजरते हुए मुझे कुछ लघुकथाये मान की लड़ाई, कोर्ट केस का उल्लेख करती मिली । इस प्रकार की लघुकथाए मुझे सत्यता के बहुत आस पास लगी जो क्षेत्र विशेष की राजनैतिक घटनाओं, सामाजिक असमानता तथा पूर्वाग्रहों को दर्शाती है। लेकिन विषय की पुनरावृति मुझे बार बार अखरती रही। बदलाव शीर्षक से दो लघुकथाएं संग्रह में है। शीर्षक में समानता पाठकों में असमंजस की स्तिथि उत्पन्न करता है। संभवत लेखक का ध्यान इस और नहीं गया।  संभवत इन्हे बदलाव एक और दो शीर्षक देते तो अच्छा रहता। 
लघुकथाओं को पढ़ते हुए लगता है ज्यों अनेक घटनाक्रम हमारे बेहद समीप है जिन्हें हमने भोगा है या अपने आस पास घटते देखा है। लेखकों सम्पादकों पर आधारित लघुकथाएं बड़ा लेखक और नवीनीकरण  भी  स्वागत योग्य है अन्यथा इस तरह के विषयों पर कम ही लेखक लिख पाते हैं।  लघुकथाओं के पात्र भी जिज्ञासा पैदा करते है। ग्रामिण परिवेश की लघुकथाओं में पात्र जमनू, रौलू, भागुमल, फुकरुदास, मकरुदास और रामदीन आदि है तो नगरीय परिवेश की लघुकथाओं में सतीश, विनय, निशांत, और शेखर जैसे आधुनिक नाम है जो लघुकथाओं के समय काल और परिवेश से न्याय करते दिखते है और लघुकथाओं के कलेवर को सुन्दरता भी प्रदान करते हैं। पात्रों में बसेडू और शिंगोटे मुझे सत्य पात्र लगते है जिनके माध्यम से लेखक सन्देश देने में सफल हो पाया है संग्रह की नऊआ और कऊआ तथा आत्म बोध लघुकथाएं प्रभावित हो करती है परन्तु ये लघुकथाएं मुझे बोध कथाओं की तरह लगती है। बदलाव लघुकथा आशावादी सन्देश देने वाली लघुकथा है जो उम्मीद जगाती है कि मार्ग से भटके युवाओं को सामूहिक प्रयासों से सही मार्ग पर लाया जा सकता है।
देवता झुठ नहीं बोलता की अधिकतर लघुकथाएं लेखक के अंतर्द्वंद्व और सामाजिक पूर्वाग्रहों को व्यक्त करती है। संग्रह में संकलित लघुकथाओं की भाषा सरल और साधारण है जिसे पाठक आसानी से आत्मसात करेगा। लघुकथाओ का केन्द्रीय विषयों का प्रायः मानव जीवन और समाज के नजदीक होना पाठकों को मंथन के लिए प्रेरित करता है। लघुकथाओं का विषय प्राय:  हमारे आसपास का होना संग्रह की सार्थकता में वृद्धि करता है। लेखक किसी दूसरे ग्रह या समाज की बात नहीं करता वो अपने समाज अपने लोगों और अपने जीवन के घटनाक्रम को विषय बनाता है जो लेखक की सामाजिक जुड़ाव और ईमानदारी को दर्शाता है।
संग्रह की लघुकथाएं लम्बे समय तक याद की जाती रहेगी और मील का पत्थर साबित होगी तथा लघुकथा लेखन में स्थान बनाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
'मेरी बात' में लेखक अपनी लघुकथा लेखन यात्रा के माध्यम से सहयात्रीयों, परिवारजनों और सम्पादकों को याद करते हुए कृतज्ञता व्यक्त करता है, जो संग्रह को सुन्दर और उपयोगी बनाता है। लेखक पाठकों  से स्वस्थ और स्वच्छ आलोचना का भी स्वागत करता है जो लेखक की शालीनता और ईमानदारी को दर्शाती है। इसके लिए लेखक साधुवाद का पात्र है।
देवता झूठ नहीं बोलता के लेखक इन लघुकथाओं के माध्यम से संवेदना , व्यवस्था पर आक्रोश, समाज के प्रति उत्तरदायित्व, घटनाओं पर सामायिक नज़र, विषय पूरक समझदारी और ईमानदारी का परिचय भी देते हैं। जिससे लघुकथाएं सुन्दर और प्रभावशाली बन पड़ी है। सभी लघुकथाएँ पठनीय है कुरीतियों पर करारी चोट करती है। हो सकता है सामाजिक पूर्वाग्रहों के चलते कुछ पाठक इन लघुकथाओं पर विपरीत दृष्टि- कोण भी अपनाएं परन्तु देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं चरित्र पतन सामाजिक मूल्यों, धार्मिक विश्वास, ग्रामिण और नगरीय जीवन और दायित्व बोध का प्रतिनिधित्व करती है।
Youtube के लिए 40 ऐपिसोड रिकार्ड करते हुए देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाएं अनेक विचारणीय प्रश्न  सामने लाती रही और  अनेक जिज्ञासा पैदा करती रही है।  यह प्रश्न और जिज्ञासाए तो ज्यों की त्यों बनी रहेगी। लेकिन यक्ष प्रश्न तो एक ही है जो जस का तस है, क्या 'देवता झूठ नहीं बोलता' ? 

                                                      * रौशन जसवाल
20 अक्तूबर 2023
11:33 रात्रि

(पाठक देवता झूठ नहीं बोलता की लघुकथाओ  को मेरे यूट्यूब चैनल @RoshanJaswalVikshipt और Manoj Chauhan जी के फेसबुक वॉल पर सुन सकते है। )

HIMPRASTH  JANUARY 2024


मंगलवार, मार्च 30, 2021

हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं

0 Reviews

 


हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं। बत्तीस रचनाकारों की एक सौ चौव्वन लघुकथाएं। सुदर्शन वशिष्ठ जी का कुशल और अनुभवी सम्पादन पुस्तक की उपयोगिता को बढ़ा देता है। सभी लघुकथाएं एक से बढ़ कर एक है। इन लघुकथाओं से गुजरते हुए मुझे ममता, व्यवस्था के प्रति आक्रोश, सामाजिक असमानता के लिए चिंता, परिवार में मानवीय दृष्टिकोण , टूटती मान्यताएं दिखीं। सभी रचनाकारों की रचनाएं प्रभावित करती है। 


                               आशा शैली की स्वेटर प्रतिकूल परिस्तिथियों में भी ममता की अदृश्य भावना को महत्वपूर्णता से दर्शाती है। रतन चंद रत्नेश की लघु कथा गोल्ड मेडल एक प्रश्न हमारे सामने रख देती है। डॉ प्रत्यूष गुलेरी की आँख व्यवस्था पर चोट करती है। रत्न चंद निर्झर पलटन असमान व्यवस्था को दर्शाती है।श्रीनिवास जोशी शेर का शिकार में जुगाड़ तंत्र का दर्शन करवाते है।

गंगा राम राजी पैग का इलाज के माध्यम से जीवन में अनुशासन के प्रति संकेत देते है।

                                           आचार्य भगवान देव चैतन्य दायित्व में अपने कर्तव्य के प्रति  ईमानदार रहने की सीख देते है।तारा नेगी मां के माध्यम से ममत्व का बोध करवाती है।कमल प्यासा कूड़े वाला के माध्यम से समाज में असमानता का दर्शन करवाते है। कृष्ण चंद महादेविया बस और नहीं के जरिए समाजिक असमानता के विरुद्ध खड़े होने का सन्देश देती है। कुलदीप चंदेल की रिपोर्ट आपातकालीन सेवाओं की पोल खोलती है।अदित कंसल इलाज के माध्यम से परिवार में बढ़े बूढ़ों के प्रति कर्तव्य का बोध करवाते है।

                प्रदीप गुप्ता की सोच व्याप्त भ्रष्टाचार की और इशारा करती है।अनिल कटोच की शिकार दोस्ती के फ़र्ज़ की ओर इशारा करती है।कुल राजीव पन्त बातें के माध्यम से समाप्त होते संस्कारों की तरफ चिंता  व्यक्त करती है। अरुण गौतम की ठगी खोखले आदर्शों को दर्शाती है सुदर्शन भाटिया की वक्त की नज़ाकत कथनी और करनी की तरफ इशारा करती है।जगदीश कपूर धर्म के माध्यम से धार्मिक कट्टरता की तरफ संकेत करते है साथ ही बेड़ियों के टूटने का भी सुखद एहसास करवाती है।

                देवराज डढवाल ने देश धर्म से आतंकवाद पर चिंता व्यक्त करते है।डॉ रजनी कांत अमरत्व के माध्यम से आदमी के शोहरत कमाने की लालसा पर प्रकाश डालते हैं। अशोक दर्द गुरु मंत्र से निरंतर टूटते आदर्शों की तरफ इशारा देते है। मृदुला श्रीवास्तव देवता का दोष के ज़रिए समाज मे गहरे से घर कर गई रूढ़िवादिता उजागर करती है। राजीव कुमार त्रिगर्ति मंत्री जी के पेन के माध्यम से राजनीतिक कार्य प्रणाली की जानकारी देती है। अर्चना नौटियाल मन बहुरंगी में पति पत्नी के झगड़ों में एक पत्नी की बच्चों के लिए ममता और पारिवारिक उत्तरदायित्व को दर्शाती है।

दीप्ति सारस्वत ज़हर में समाज में स्त्री शोषण को उजागर करती है।मीनाक्षी मीनू अस्तित्व की लड़ाई के माध्यम से प्रतिकूल परिस्तिथियों में स्त्री संघर्ष को बताती है।

             मनोज चौहान  लोक लाज में जाति व्यवस्था पर चोट करते है। अनिल शर्मा नील लड़ाई के माध्यम से वर्गों में अधिपत्य संघर्ष की कहानी कहते है। डॉ सीमा शर्मा तमाचा में एक पुत्र के अंतद्वद्व और कर्तव्य की रचना करती है। सौरभ ज्ञानी के माध्यम से अवसरवादिता का दर्शन करवातें है। सुदर्शन वशिष्ठ जी पिता का घर के माध्यम से खोखले होते जा रहे रिश्तों को बताते है। 

एक सौ साठ पृष्ठों का ये संकलन संग्रहणीय और पठनीय है। के एल पचौरी प्रकाशन गाज़ियाबाद से प्रकाशित हिमाचल प्रदेश की प्रतिनिधि लघुकथाएं फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है ।

शुक्रवार, मई 01, 2020

संवेदनाओं की बयार है काव्य संग्रह ‘ननु ताकती है दरवाजा' --- मनोज चौहान

2 Reviews
'ननु ताकती है दरवाजा’ वरिष्ठ साहित्यकार रौशन जसवाल ‘विक्षिप्त’ जी का हाल ही में प्रकाशित प्रथम काव्य संग्रह है । उनकी वर्षों की साहित्य साधना का परिणाम है यह कविता संग्रह l अपने आस-पास के परिवेश को गहनता से महसूस कर और जीवन के संजीदा अनुभवों को कलमबद्ध करके उन्होंने पाठकों को यह सौगात दी है, जिसे पढ़कर पाठक बहुत गहरे तक डूबता चला जाता है और कई कविताओं में खुद को ढूंढने की कोशिश करता है  l किसी भी संग्रह या कृति की महता तभी है जब एक साधारण पाठक या आम जनमानस उससे जुड़ाव महसूस करे और इस कसौटी पर यह संग्रह खरा उतरता है l

 प्रस्तुत संग्रह में छोटी - बड़ी 64 कविताएँ संकलित हैं, जो कि अलग- अलग कालखंड में रची गई हैं l वर्तमान में हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में उप- निदेशक के पद पर कार्यरत जसवाल जी 1983 -84 से साहित्य कर्म से जुड़े हैं और लघुकथा लेखन में भी उनका विशेष दखल रहा है, जिसके परिणामस्वरुप उन्हें कई संस्थाओं द्वारा कई सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है l

संग्रह की पहली ही कविता 'वो क्षण' में कवि ने स्पष्ट किया है कि सर्वप्रथम जिस समय में उनके भीतर सृजन का बीज अंकुरित हुआ था,उस समय को उनके लिए बताना कितना कठिन है । कविता की पंक्तियां देखें :

बताना कठिन है
वो क्षण कौन से थे
जब सहसा अनुभव किया मैंने
हिलोरे ले रहा है विचारों का समुद्र
मेरे भीतर
और करनी है
अभिव्यक्ति जिसकी मुझे शब्दों में l

यह सच है कि एक आदमी के भीतर एक नहीं बल्कि अनेक चेहरे होते हैं, जिसे कोई और नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष स्वयं ही महसूस कर सकता है l कवि की दृष्टि बहुत ही सूक्ष्म है, जिसे वो अपनी ‘चेहरा’ नामक कविता में स्पष्टतया उकेरते नज़र आते हैं  । कविता की बानगी देखें :

आज देखिएगा टकटकी बांधकर
चेहरे के भीतर
एक और चेहरा नजर आएगा तुम्हें
छल और कपट से भरा हुआ
जरुर देखिएगा l

गरीबी और अभावग्रस्त जीवन हालातों को बदतर कर देते  है और  मजबूर भी l हमारे समाज की असम्बेदनशीलता की पोल खोलते हुए कवि ‘उसका मासूम चेहरा’ नामक कविता में कहते हैं कि :

आज फिर देखा है उसे
मिट्टी से सने पाँव
चीथड़ों को लिए हुए
आराम सुखों का छोड़ कर
चल दिया काम की तलाश में
ढूंढने लगा जीवन
उस कूड़े के ढेर में
गिराता था सारा मोहल्ला
गंदगी जिसमें l

‘मैं की व्यथा’ नामक कविता सोचने पर विवश करती है, जिसे पढ़ते हुए पाठक वर्तमान, भूत और भविष्य के भंवर में डूबता चला जाता है । कविता की पंक्तियों पर जरा गौर करें :

नदियों के छलछल बहते जल में
रेत की तपिश में
और सरिता के किनारे
जहाँ कभी खेलते थे बच्चे मेरे गाँव के
और उन्ही में मैं था
परन्तु अब अपना ही
झुर्रियों वाला चेहरा देखता हूँ l

घर एक ऐसा स्थान होता है जिससे हर इंसान की बचपन से लेकर बड़े होने की स्मृतियाँ जुड़ी होती है और यह हमारे पूर्वजों की अमूल्य धरोहर होता है l  अपने घर से जुड़ी इन्हीं समृतियों को कवि ने ‘घर’ नामक कविता में उद्घाटित किया है l समाज में अपराधिक प्रवृति जब बढ़ जाती है तो एक माँ के लिए अपने बेटे की चिंता जायज है, जिसे कवि ने ‘अँधेरा’ नामक  कविता में निम्न पंक्तियों के माध्यम से उजागर किया है :

सुबह जब मैं घर से निकलता हूँ  तो
माँ कहती है, बेटा जल्दी आ जाना
अँधेरा होने से पहले
क्योंकि मेरे शहर में
जवान लड़के -लड़कियां गुम होने लगे हैं
मेरे शहर में अब
इंसानी भेड़ियों ने घर बना लिए हैं
और ढूंढने लगते हैं खुराक
अँधेरा घिरते ही l

सत्य वास्तव में ही कड़वा होता है और कई बार पीड़ादायक भी । ‘तुम्ही कोई शीर्षक दो’ नामक कविता में कवि एक प्रश्न खड़ा करते  हैं, जिसे कविता की निम्न पंक्तियों से साफ समझा जा सकता है :

उस महल की नीवं का दर्द
कोई नहीं समझ सकता
जिसके आधार में हों करोड़ों चीखें
इतनी कराहें कि कल्पना मात्र से सिहर उठे हम
उन लोगों की सुबह कैसी होती होगी
जिन्हें चखना पड़ता है स्वाद
सिर्फ कराहों और चीखों का ?

कई बार जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं जब  गिले – शिकवे, शिकायतें और गलतफहमियाँ हावी हो जाती हैं l  इन सबके  बाबजूद भी कवि का संवेदी मन कराह उठता है l मानव हृदय की विशालता को प्रकट करती कविता ‘उसका सच’ की ये पंक्तियाँ भीतर तक स्पर्श करती हैं :

बहुत दिनों तक
जब देख नहीं पाता हूँ उस शख्स को
जिससे मुझे बेहद नफरत है
तब सालने लगती है मुझे एक चिंता
और मैं पूछ बैठता हूँ उदासी से
वो ठीक तो होगा न ?

पारिवारिक जरूरतें जब गाँव में पूरी नहीं हो पाती तो व्यक्ति शहर या महानगर का रुख करता है, मगर शहर की भीड़ और तेज रफ़्तार जिंदगी में कहीं खो सा जाता है l  और कभी -कभार हादसों का भी शिकार हो जाता है l  ‘महानगर’ नामक कविता में कवि ने इसी पीड़ा को उजागर किया है l कुछ इस तरह से कि :

महानगर क्या तुम थोडा रुकोगे
गाँव तुमसे बतियाना चाहता है
गाँव पूछना चाहता है
ढेरों प्रश्न तुमसे
पिछले वर्ष
रामू की बेटी तुमसे मिलकर
कहाँ खो गई ?

शब्दों की सही ताकत को परिभाषित करती और सामाजिक बदलाव और क्रांति का आवाहन करती लघु मगर मारक कविता ‘शब्द’ में वे लिखते हैं: 

क्रांति आती नहीं
उदास और मुरझाए चेहरों से
क्रांति लाते नहीं
प्रेयसी के आगोश में छुपे युवक
क्रांति के लिए शब्दों में रमना पड़ता है
और लिखना होता है लहू से क्रांति
सिर्फ क्रांति !

संग्रह की शीर्षक कविता ‘ननु ताकती है दरवाजा’ एक भावना प्रधान कविता है, जो बाल मन की निश्चलता और भोलेपन को खुबसुरती से उकेरती है l कई बार बच्चे अपने इसी नैसर्गिक गुण के कारण बड़ों को भी बहुत कुछ सीखा जाते हैं  और सोचने पर मजबूर कर देते हैं l कविता की पंक्तियाँ देखें :

कैसे सीख लिया है ननु ने इन्तजार करना
अब मैं झूठा बनता जा रहा हूँ
जब भी छोड़ना होता है ननु को
कह डालता हूँ एक भारी झूठ
ननु करती रहती है प्रतीक्षा
दोपहर बाद तक l

रोग ग्रस्त व्यक्ति जब अस्पताल में  दाखिल होता है तो उसके दिमाग में अनेक तरह के झंझावात चलते रहते हैं l इसी मनोस्थिति को कवि ने बहुत गहरे से महसूस किया है l भीतर तक छूने वाली ‘जिजीविषा’ नामक कविता की पंक्तियों पर गौर करें   :

जिजीविषा निरंतर देखती रहती है
सिरिंज में बूंद- बूंद रक्त
और सह लेती है
डायलिसिस की वेदना
नर्सों की अनावश्यक डांट l

गाँव से दूर जब वहां बिताएं बक्त की स्मृतियाँ दस्तक देती हैं तो मन में एक टीस सी उठती है और मन करता है की फिर से वहीं उस खुशनुमा बक्त में लौट आएं l कवि के गाँव, खेत, खलिहानों और माँ  के प्रति गहरे जुड़ाव को दर्शाती कविता ‘वादे’ भाव-विभोर कर जाती है l कविता की निम्न पंक्तियां देखें :

बहुत दिनों से देख नहीं पाया हूँ
गोबर से लिपीपुती दीवार
और देखी नहीं किसी आँगन में तुलसी
बहुत दिनों से भेड़ों के साथ
जंगल नहीं गया हूँ
भूल गया हूँ
मक्की की रोटियाँ और लस्सी का स्वाद
गाँव से शहर आकर
दूर हो गया हूँ मैं ‘माँ’ से l

इसके अलावा संग्रह में  ‘सवाल’,‘औरत’ , ‘चुप ही रहना’, आदि कविताएं नारी विमर्श पर लिखी गई हैं जो कई सवाल खड़े करती हुई भीतर तक उद्देलित कर जाती हैं । ‘अपनी जमीन अपने लोग', ‘मैं डर गया हूँ’, ‘कथानक’, ‘नेपथ्य से’, ‘माठू’, ‘पराजय’, ‘इबारतें’, ‘दिनचर्या, ‘गिद्ध’, ‘पहाड़’, ‘अस्पताल’, ‘योग्यता’, विद्यार्थी  नामक कविताएं भी बहुत ही सशक्त बन पड़ी हैं ।

रौशन जसवाल 'विक्षिप्त' जी के लेखन का फलक असीम है । कविता का मूल तत्व संवेदना उनकी कविताओं की विशेषता कही जा सकती है l उनकी कविताओं में जहां एक ओर दार्शनिकता एवं मानवीय मनोविज्ञान का ताना- बाना है तो वही दूसरी ओर आम जनमानस और समाज की चिंताएं भी उद्घाटित होती हैं । पर्यावरण के प्रति भी वे अपनी कविताओं में मुखर हैं l

प्रस्तुत संग्रह पेपर बैक में है, जिसकी छपाई उम्दा दर्जे की है । 88 पृष्ठीय इस पुस्तक की कीमत मात्र 100 रुपए है । यह संग्रह बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान) से प्रकाशित हुआ है । यह पुस्तक अमेज़न से भी ऑनलाइन मंगवाई जा सकती है । आशा है कि यह काव्य संग्रह सुधी पाठकों के मध्य अवश्य सराहा जाएगा । इस संग्रह के प्रकाशन हेतु कवि रौशन जसवाल 'विक्षिप्त' जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
*****************************************
मनोज चौहान, एसजेवीएन कॉलोनी दत्तनगर, रामपुर बुशहर, शिमला (हिमाचल प्रदेश) -172001
 
ब्लोगवाणी ! INDIBLOGGER ! BLOGCATALOG ! हिंदी लोक ! NetworkedBlogs ! हिमधारा ! ऐसी वाणी बोलिए ! ब्लोगर्स ट्रिक्स !

© : आधारशिला ! THEME: Revolution Two Church theme BY : Brian Gardner Blog Skins ! POWERED BY : blogger