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मंगलवार, जुलाई 14, 2009

लघुकथा : कलयुग

काफी दिनों बाद इंदर से मुलाकात हुई तो पुराने मित्रों के बारे में बातचीत होने लगी ! मित्रों की सफलता और असफलता के किस्सों के बाद बाज़ार की तरफ़ निकले तो आवारा घुमते पशुओं की दशा पर चिंता हुई और उन पर दया आने लगी ! पशुओं की इस दशा पर मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया 'जब तक पशु काम का था तो खूब काम लिया और जब नकारा हो गया तो घर से बाहर निकालदिया !'
एकाएक इंदर बोल पड़ा अब वो दिन दूर नहीं जब घर के बूढों की भी नकारा होने पर घर से बाहर धकेल दिया जाएगा और आवारा घुमते दिखने पर कहा जाएगा, 'अरे यह तो फलां का बाप है !'
मुझे इंदर के चेहरे पर क्रोध के भाव साफ दिख रहे थे ! एक कटु सत्य मेरे सामने चुपचाप मुस्कुरा रहा था !
(12 जुलाई 2009 को दिव्य हिमाचल हमसफर परिशिष्ट में प्रकशित)

5 Reviews:

Razi Shahab on 14 जुलाई 2009 को 12:44 pm बजे ने कहा…

aaj ke haalaat ki behtareen akkasi ki hai aapne , vaqai duniya mein ye halat hoti jaa rahi hai... vo aulaad jis ke liye budhe baap ne din raat aik kar ke kamayi ki aaj vahi use thukra rahi hai...

Yogendramani on 14 जुलाई 2009 को 5:57 pm बजे ने कहा…

वास्तव में आज स्थिति ऐसी ही होने वाली है।माँ- बाप कई -कई बच्चों को पाल लेते हैं लेकिन जब माँ -बाप बुढापे में वही औलाद सब मिल्कर भी एक माँ बाप को पालने में बहाने बनाते नजर आते हैं।

Science Bloggers Association on 14 जुलाई 2009 को 6:20 pm बजे ने कहा…

यथार्थ को बयां करती रचना।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

रतन चंद 'रत्नेश' on 15 जुलाई 2009 को 7:18 am बजे ने कहा…

achha hai.

Murari Pareek on 15 जुलाई 2009 को 11:17 am बजे ने कहा…

ऐसा तो हो ही रहा है ! बुढे माँ बापों को लोग वृधास्रम भेजते ही हैं ! पर एक समय आयेगा जब ये रित ही बन जायेगी!!

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