google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : जिजीविषा

रविवार, अगस्त 19, 2012

जिजीविषा

जिजीविषा
निरन्‍तर दौड़ती रहती है
कभी सीढि़यो पर
उतरते चढ़ते ,
वार्ड में प्रतीक्षा करते
स्‍ट्रेचर पर लेटे
व्‍हील चेयर पर
और
आप्रेशन थियेटर में,
जिजीविषा
 निरन्‍तर देखती रहती है
सिरंज में बूंद बूंद रक्‍त
और
सह लेती है
डायलसिस की वेदना,
 नर्सो की
अनावश्‍यक डांट,

जिजीविषा
महाप्रस्‍थान कभी नहीं चाहती
वो कहती है
यम से
तुम ज़रा
रूकों
अभी बहुत काम करने है मुझे ।





2 Reviews:

Ashwini Ramesh on 19 अगस्त 2012 को 9:00 pm बजे ने कहा…

रोशन विक्षिप्त जी ,
अच्छी यथार्थवादी रचना !

Ashwini Ramesh on 19 अगस्त 2012 को 9:50 pm बजे ने कहा…

रोशनविक्षिप्त जी ,

अच्छी यथार्थवादी रचना !

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