‘खाणा-पीणा नंद लेणी ओ गंभरीए’ गीत की धुनों पर नृत्य व गायकी से दर्शकों को झुमाने वाली हिमाचल की प्रख्यात लोक गायिका गंभरी देवी को राष्ट्रीय अकादमी द्वारा वर्ष 2011-12 का टैगोर सम्मान प्रदान किया गया है। उन्हें यह सम्मान हिमाचल के लोक संगीत में दिए गए अतुल्य योगदान के लिए दिया गया है। राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी की ओर से रवींद्रनाथ ठाकुर की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर 50 टैगोर सम्मान घोषित किए गए । इनके लिए विभिन्न प्रदेशों से ऐसे कलाकारों के नाम कृतित्व विवरण सहित मंगवाए गए थे, जिनकी आयु 75 वर्ष से अधिक हो। 50 टैगोर सम्मानों में से लोक संगीत की विद्या में देश के 13 कलाकारों को यह पुरस्कार दिया गया है, जिनमें हिमाचल की कोकिला गंभरी देवी भी शामिल है। इस सम्मान में उन्हें एक लाख रुपए, ताम्रपत्र व अंग वस्त्र दिया गया है। लोक गायिका गंभरी देवी के गीत आज भी हिमाचलवासियों की जुबान पर गूंजते हैं। प्रदेश का हर संगीत प्रेमी उनकी मखमली आवाज का कायल है। 91 वर्षीय हिमाचली लोक गायिका का खुद ही गीत रचती है। खुद ही उसकी धुन बनाती हैं और उस पर नृत्य करती हैं। उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया है। हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के सचिव डा. तुलसी रमण ने कहा कि लोक गायिका गंभरी को यह पुरस्कार मिलना हिमाचल प्रदेश के लिए गौरव की बात है। टैगोर सम्मान पिछले दिनों कोलकाता तथा चेन्नई में आयोजित समारोह में दिए गए हैं, लेकिन किन्ही कारणों से गम्भरी देवी वहां नहीं पहुंच सकी थीं। इसी कारण संगीत नाटक अकादमी की ओर से जारी पत्र सहित यह पुरस्कार हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के पास दस्ती भेजा गया है, जो पुरस्कार जल्द ही लोक गायिका गम्भरी देवी को प्रदान किया जाएगा। हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी की ओर से भी उन्हें लोक संगीत के लिए वर्ष 2001 का ‘हिमाचल अकादमी कला सम्मान’ प्रदान किया गया था।
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