google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : श्रीखंड यात्रा 2012

गुरुवार, जुलाई 12, 2012

श्रीखंड यात्रा 2012



श्रीखंड यात्रा इस बार 16 जुलाई से 23 जुलाई तक आयोजित होगी।  श्रीखंड जिला कुल्लू के दुर्गम क्षेत्र से लगभग 1800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
 इस स्थान पर पहुंचने के लिए शिमला से रामपुर, रामपुर से निरमंड व बागीपुल तक बस से पहुंचा जा सकता है।  निरमंड से 4 कि.मी. पीछे  उतर कर देवढांक में महादेव के दर्शन कर लिए जाएं तो श्रीखंड महादेव की यात्रा सफल हो जाती है। यहां से अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए। रात्रि विश्राम बागीपुल में किया जा सकता है। जांव गांव में महामाया का एक बहुत ही पुराना भव्य मंदिर है। जांव गांव में थोड़ा विश्राम करके सिंहगाड तक आराम से पगडंडी द्वारा रास्ता तय करके पहुंचा जा सकता है। बागीपुल से सिंहगाड का रास्ता 9 कि.मी. है। इसके बाद यात्री थाचडू के लिए प्रस्थान करते हैं और फिर बराहटीनाला में गिरचादेव के दर्शन करके आगे की यात्रा शुरू करते हैं और अगला पडाव भीमडुआरी है। यहां घने जंगल व बर्फ से लदे पहाड़ देख कर मन मोहित हो जाता है। थाचडू से भी सुबह-शाम अगर मौसम साफ हो तो श्रीखंड महादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। चढ़ाई चढ़ने के बाद महाकाली, जोगणीजोत, कालीघाटी का छोटा सा मंदिर आता है। यहां से भी श्रीखंड महादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। इसके आगे घाटी में ढांक दुआर, कुणासा घाटी, व काली घाटी देखने योग्य स्थल हैं।  कहते हैं कि भीमडुआरी में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पर ठहरे थे इसलिए इसका नाम भीमडुआरी पड़ा। यहां विश्राम करने के बाद यात्री श्रीखंड महादेव के दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं। यहां से कैलाश दर्शन की दूरी लगभग 7 कि.मी. है। आगे छोटे-छोटे कल-कल करते नाले व ऊंचे पहाड़ों से गिरती हुई शोर मचाती हुई पानी की धाराएं फूलों से लदी घाटियां व मां पार्वती के बाग यात्रियों को कठिन यात्रा का एहसास नहीं होने देते। चार घंटों का सफर तय करने के बाद नैनसर झील आ जाती है। कहते हैं कि माता पार्वती को जब भस्मासुर ने डराया था तब वे रो पड़ी थीं उनके आंसुओं  की धारा से ही इस आंख के आकार के सरोवर का निर्माण हुआ व इसलिए इसका नाम नैनसर पड़ा। नैनसर से आगे शुरू होती है और भी कठिन और दुर्गम यात्रा। भीमबही में बहुत बड़ी चट्टानें हैं जिन पर कुछ लिखा हुआ है। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान भीम ये चट्टानें यहां लाए थे। चढ़ाई चढ़ते समय कुछ ऐसी जगह भी आती है जहां पर एक नन्हें बालक की तरह रेंग कर चढ़ना पड़ता है। बर्फ के ग्लेशियर लांघ कर यात्री यहां पहुंचते हैं परंतु श्रीखंड कैलाश से थोड़ा पीछे काफी बड़ा ग्लेशियर लांघना पड़ता है। अब लगभग 60-70 फुट ऊंचे प्राकृतिक शिवलिंग व साथ में थोड़ा हट के भगवान गणपति व मां पार्वती के दर्शन शुरू हो जाते हैं व सामने श्री कार्तिकेय स्वामी के दर्शन किए जा सकते हैं। भारी ठंड व 1800 फीट की ऊंचाई पर श्रीखंड महादेव स्थित होने के कारण यहां पर ज्यादा देर ठहरना संभव नहीं होता। परंतु थोड़ी देर दर्शन करके ऐसा अनुभव होता है कि जैसे स्वर्ग की यात्रा की जा रही हो। यह यात्रा कठिन होने के साथ-साथ अति मनोहारी, सुखदायी व अध्यात्मिक शांति प्रदान करने वाली है।

1 Reviews:

कुमार राधारमण on 27 जुलाई 2012 को 2:45 pm बजे ने कहा…

पर्वतीय स्थलों की यात्रा एक स्वर्गिक अनुभव है। जारी रखें।

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