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गुरुवार, अक्तूबर 18, 2012

ऐतिहासिक तारादेवी मन्दिर

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शिमला के निकट बना ऐतिहासिक तारादेवी मन्दिर देश के ऐसे स्थलों में शामिल है जिसे भारत के देवी स्थानों में अत्यन्त महत्व प्राप्त है। वस्तुतः भगवती तारा क्योंथल राज्य के सेन वंशीय राजाओं की कुलदेवी हैं। क्योंथल रियास
त की स्थापना राजा गिरिसेन ने की थी। इसलिए संक्षेप में सेन राजवंश का इतिहास जानना भी आवश्यक है। मध्यकालीन भारत में छोटे-छोटे राज्य हुआ करते थे। उत्तरी भारत में अनेक राजपूत रियासतें थीं जिनमें दिल्ली में तोमर, अजमेर में चौहान, कन्नौज में राठौर, बुन्देलखण्ड में चन्देल, मालवा में परमार, गुजरात में चालुक्य, मेवाड़ में सिसोदिया, बिहार में पाल तथा बंगाल में सेन राजवंश प्रमुख थे। महमूद गज़नवी के बाद शहबद्दीन मुहम्मद गौरी ने भारत पर बार-बार आक्रमण किए। वह कट्टर मुसलमान था और भारत में मूर्तिपूजा का नाश करना तथा मुस्लिम राज्य की स्थापना करना अपना सबसे बड़ा कर्त्तव्य समझता था। वह राजाओं की शक्ति को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहता था। उसके एक सेनानायक मुहम्मद-बिन-बख़तियार खिलजी ने जब बंगाल की राजधानी नदिया पर आक्रमण किया तो वहां के तत्कालीन सेन राजवंशीय राजा लक्ष्मणसेन को लाचार होकर अपना राज्य छोड़ना पड़ा और वे राजपरिवार सहित ढाका की ओर विक्रमपुर चले गए। कहा जाता है कि उन्हें उनेक राजज्योतिषी ने पहले ही यह बता दिया था कि वे किसी भी प्रकार से तुर्क आक्रमणकारियों का सामना नहीं कर पाएंगें। कालान्तर में उनके प्रपौत्र राजा रूपसेन को भी विक्रमपुर छोड़ना पड़ा और वे पंजाब प्रान्त के रोपड़ में आकर बस गए। मुसलमान आक्रमणकारियों से वहां भी उन्हें युद्ध लड़ने के लिए विवश होना पड़ा। अंत में उनके तीनों पुत्र पर्वतीय क्षेत्रों की ओर चल पड़े, जिनमें से वीरसेन ने सुकेत, गिरिसेन ने क्योंथल तथा हमीरसेन ने किश्तवाड़ की ओर प्रस्थान किया।
राजा गिरिसेन ने जुनगा को अपने राज्य की राजधानी बनाया। कुलदेवी होने के नाते वे भगवती तारा को भी (मूर्ति रूप में) अपने साथ ही लाए थे। सेनवंश के सभी राजाओं तथा राजपरिवार पर भगवती तारा की असीम कृपा रही है। संकट की घड़ी में भगवती तारा ने हर प्रकार से उनकी सहायता की है।

एक बार अपने राज्यकाल में तत्कालीन क्योंथल रियासत (जुनगा) के राजा भूपेन्द्र सेन जुग्गर के घने जंगल में शिकार खेलने पहुंचे। उन्हें वहां पहुंचे कुछ ही समय हुआ था कि सहसा उन्हें उस स्थान पर भगवती तारा की विद्यमानता का आभास हुआ। भगवती ने आवाज+ देकर कहा- ''हे राजन्‌! तुम्हारी वंश परम्परा बंगाल से चली आ रही है। मैं दश महाविद्याओं में से एक महाविद्या हूँ।'' इस आवाज़ को सुनकर राजा आश्यर्चचकित हो गए और हने लगे- ''हे माता! यदि यह आवाज़ वास्तव में आपकी ही है, तो साक्षात्‌ रूप में प्रकट होकर दर्शन देकर कृतार्थ करो।'' राजा के इस प्रकार कहने पर माता ने साक्षात्‌ दर्शन दिए और कहा- ''राजन्‌! तुम मेरे स्थान का निर्माण करो। मैं सदैव तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे वंश तथा राज्य की रक्षा करूंगी।'' ऐसा कहकर उसी क्षण भगवती अदृश्य हो गईं।

भगवती के इस प्रत्यक्ष चमत्कार से प्रभावान्वित होकर राजा भूपेन्द्र सेन ने भगवती के आदेशानुसार वहां एक मन्दिर का निर्माण करवाया तथा उस मन्दिर में भगवती तारा की मूर्ति को प्रतिष्ठापित करवाया। साथ ही एक बड़ा भूक्षेत्र भी मन्दिर के नाम दान कर दिया। यहां भगवती तारा प्रत्यक्ष रूप में स्वयं प्रकट हुई थीं। इस कारण यह प्रमुख स्थान माना जाता है। पूर्व काल में इस मन्दिर में विधिवत्‌ पूजा हुआ करती थी। इस कार्य के लिए एक पुजारी को यहां नियुक्त किया गया था। उसके बाद उसके वंशज पूजा-अर्चना का कार्य किया करते थे। परन्तु किसी कारणवश एक ऐसा समय आया कि धीरे-धीरे उक्त परिवार का प्रायः अन्त हो गया और यहां की सारी व्यवस्था में व्यवधान पड़ गया। मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गया।
परन्तु श्रद्धालुओं के लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि कुछ समय पूर्व ही श्री तारादेवी मन्दिर न्यास ने स्थानीय लोगों के प्रशंसनीय योगदान से इस स्थान पर एक नए मन्दिर का निर्माण करवाया है। मन्दिर की वास्‍तुशैली भी आकषर्क है। जुग्गर मन्दिर शिलगांव चक के अन्तर्गत आता है। इसलिए वहां के निवासी ही मुख्यरूप से वर्षों से इस मन्दिर की देख-रेख तथा कार्यभार के उत्तरदायित्व को निभाते चले आ रहे हैं। छठे महीने अर्थात्‌ वर्ष में दो बार ये सभी लोग मिलजुल कर इस मन्दिर में विशेष पूजा-अर्चना तथा कड़ाही-प्रसाद की व्यवस्था करते हैं। ये सभी लोग इस बात को भी मानते हैं कि भगवती कृपा सदैव इन पर बनी रहती है।

एक समय महात्मा ताराधिनाथ नामक एक सिद्ध योगी घूमते-घुमाते तारब के जंगल में पहुंच गए। उन्होंने सांसारिक बन्धनों का त्योग कर दिया था। अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति हेतु कठोर तपस्या तथा योगशक्ति के बल पर उन्होंने अलौकिक शक्तियों से सामंजस्य स्थापित कर लिया था। वे भगवती तारा के अनन्य उपासक थे। वे इस जंगल के उच्च शिखर पर अपने आगे धूनी लगाकर अपने आसन पर ध्यानमुद्रा में बैठे रहा करते थे। जब वर्षा होती थी तो एक बूँद भी उनकी धूनी तथा उनके आसन पर नहीं गिरती थी। वह स्थान को वर्षा से अप्रभावित रहा करता था। जो लोग भी वहां जाते थे, वे इस चमत्कार को देखकर अचम्भित होते थे।

श्री तारादेवी मन्दिर में 7 अगस्त, 1970 को एक बहुत ही निन्दनीय घटना घटित हुई। अर्धरात्रि के समय कुछ लुटेरों ने मन्दिर के द्वार को तोड़कर गर्भगृह में प्रवेश किया। भगवती तारा की मूर्ति को उठाकर वे भागने लगे। वे कुछ ही दूरी तक मूर्ति को ले जा सके थे कि उनका दम घुटने लगा। उनकी आंखों के आगे अन्धेरा छा गया। उन्हें आगे जाने का रास्ता नहीं सूझा। भगवती की अद्भुत शक्ति ने लुटेरों के इस नीचतापूर्ण दुष्कृत्य को विफल कर दिया। विवश होकर उन लुटेरों ने भगवती की मूर्ति को एक बड़ी झाड़ी के बीच फैंक कर छोड़ दिया और वे स्वयं रात्रि के अंधेरे का लाभ उठाकर भाग निकले।

क्योंथल राजवंश की अपनी कुलदेवी भगवती तारा के प्रति अटूट श्रद्धा है। वे समय-समय पर अपने कल्याणार्थ तथा सर्वजनहितार्थ श्री तारादेवी मन्दिर में अनुष्ठान करवाते रहते हैं।

श्री तारादेवी मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं में से अनेक ऐसे भी हैं, जो भगवती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अथवा मांगी गई मन्नत पूरी होने पर दूर-दूर से नंगे पावं पैदल चलकर यहां पहुंचते हैं।

वस्तुतः भगवती सम्पूर्ण जगत की अधीश्वरी हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा तथा कल्याण के लिए ही प्रकट रूप में इस मन्दिर में निवास करती हैं।

गुरुवार, जुलाई 12, 2012

श्रीखंड यात्रा 2012

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श्रीखंड यात्रा इस बार 16 जुलाई से 23 जुलाई तक आयोजित होगी।  श्रीखंड जिला कुल्लू के दुर्गम क्षेत्र से लगभग 1800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
 इस स्थान पर पहुंचने के लिए शिमला से रामपुर, रामपुर से निरमंड व बागीपुल तक बस से पहुंचा जा सकता है।  निरमंड से 4 कि.मी. पीछे  उतर कर देवढांक में महादेव के दर्शन कर लिए जाएं तो श्रीखंड महादेव की यात्रा सफल हो जाती है। यहां से अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए। रात्रि विश्राम बागीपुल में किया जा सकता है। जांव गांव में महामाया का एक बहुत ही पुराना भव्य मंदिर है। जांव गांव में थोड़ा विश्राम करके सिंहगाड तक आराम से पगडंडी द्वारा रास्ता तय करके पहुंचा जा सकता है। बागीपुल से सिंहगाड का रास्ता 9 कि.मी. है। इसके बाद यात्री थाचडू के लिए प्रस्थान करते हैं और फिर बराहटीनाला में गिरचादेव के दर्शन करके आगे की यात्रा शुरू करते हैं और अगला पडाव भीमडुआरी है। यहां घने जंगल व बर्फ से लदे पहाड़ देख कर मन मोहित हो जाता है। थाचडू से भी सुबह-शाम अगर मौसम साफ हो तो श्रीखंड महादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। चढ़ाई चढ़ने के बाद महाकाली, जोगणीजोत, कालीघाटी का छोटा सा मंदिर आता है। यहां से भी श्रीखंड महादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। इसके आगे घाटी में ढांक दुआर, कुणासा घाटी, व काली घाटी देखने योग्य स्थल हैं।  कहते हैं कि भीमडुआरी में अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पर ठहरे थे इसलिए इसका नाम भीमडुआरी पड़ा। यहां विश्राम करने के बाद यात्री श्रीखंड महादेव के दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं। यहां से कैलाश दर्शन की दूरी लगभग 7 कि.मी. है। आगे छोटे-छोटे कल-कल करते नाले व ऊंचे पहाड़ों से गिरती हुई शोर मचाती हुई पानी की धाराएं फूलों से लदी घाटियां व मां पार्वती के बाग यात्रियों को कठिन यात्रा का एहसास नहीं होने देते। चार घंटों का सफर तय करने के बाद नैनसर झील आ जाती है। कहते हैं कि माता पार्वती को जब भस्मासुर ने डराया था तब वे रो पड़ी थीं उनके आंसुओं  की धारा से ही इस आंख के आकार के सरोवर का निर्माण हुआ व इसलिए इसका नाम नैनसर पड़ा। नैनसर से आगे शुरू होती है और भी कठिन और दुर्गम यात्रा। भीमबही में बहुत बड़ी चट्टानें हैं जिन पर कुछ लिखा हुआ है। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान भीम ये चट्टानें यहां लाए थे। चढ़ाई चढ़ते समय कुछ ऐसी जगह भी आती है जहां पर एक नन्हें बालक की तरह रेंग कर चढ़ना पड़ता है। बर्फ के ग्लेशियर लांघ कर यात्री यहां पहुंचते हैं परंतु श्रीखंड कैलाश से थोड़ा पीछे काफी बड़ा ग्लेशियर लांघना पड़ता है। अब लगभग 60-70 फुट ऊंचे प्राकृतिक शिवलिंग व साथ में थोड़ा हट के भगवान गणपति व मां पार्वती के दर्शन शुरू हो जाते हैं व सामने श्री कार्तिकेय स्वामी के दर्शन किए जा सकते हैं। भारी ठंड व 1800 फीट की ऊंचाई पर श्रीखंड महादेव स्थित होने के कारण यहां पर ज्यादा देर ठहरना संभव नहीं होता। परंतु थोड़ी देर दर्शन करके ऐसा अनुभव होता है कि जैसे स्वर्ग की यात्रा की जा रही हो। यह यात्रा कठिन होने के साथ-साथ अति मनोहारी, सुखदायी व अध्यात्मिक शांति प्रदान करने वाली है।

रविवार, जून 10, 2012

श्रीखण्‍ड छड़ी यात्रा 2012

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हिमालय में बसे श्रीखण्‍ड महादेव की पवित्र श्रीखण्‍ड छड़ी यात्रा 30 जून 2012 को जिला कुल्‍लु के निरमण्‍ड से आरम्‍भ हो रही है। छड़ी यात्रा का नेतृत्‍व महंत अशोक गिरी फलाहारी बाबा करेंगे। इसमें दो छडि़या होंगी जिसमें एक माता अंबिका की और दूसरी दतात्रेय महाराज की होगी। श्रीखण्‍ड छड़ी यात्रा एवं ग्राम सुधार समिति के अध्‍यक्ष देवेन्‍द्र पाल शर्मा और सचित कुशल राम शर्मा ने बताया कि 30 जून को छड़ी का विधि विधान से पूजन किया जाऐगा । यात्रा निरमण्‍ड के दशनामी जूना अखाड़े से ब्राहटी नाला तक प्रस्‍थान करेगी 1 जुलाई 2012 को यात्रा ब्राहटी नाला से थाचड़ु से भीमडवार पहुंचेगी । 3 जुलाई को भीम डवारी से श्रीखण्‍ड दर्शन के लिए रवाना होगी। उन्‍होने बताया कि 8 जुलाई को निरमण्‍ड में भंडारे का आयोजन किया जाऐगा। 

शुक्रवार, जुलाई 22, 2011

श्री खण्‍ड यात्रा की तस्‍वीरें

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मेरे मित्र रमेश चौहान गत दिन श्रीखण्‍ड यात्रा पर गए और लौट कर उन्‍होने तस्‍वीरें दी मित्रों के लिए तस्‍वीरें यहां प्रस्‍तुत है
















शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

मां भगयाणी मन्दिर हरिपुर धार

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ज़िला सिरमौर के हरिपुरधार में स्थित मां भगयाणी मन्दिर समुद्रतल से आठ हज़ार की ऊंचाई पर बनाया गया है! यह मन्दिर उतरी भारत का प्रसिद्ध मन्दिर है! यह मन्दिर कई दशकों से श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुअ है! वैसे तो यहां वर्ष भर भक्तों का आगमन रहता है परन्तु नवरात्रों और संक्राति में भक्तों की ज्यादा श्रद्धा रहती है! इसका पौराणिक इतिहास श्रीगुल महादेव से की दिल्ली यात्रा से जुडा है जहां तत्कालीन शासक ने उन्हे उनकी दिव्यशक्तियों के कारण चमडे की बेडियों में बांध बन्दी बना लिया था और दर्वार में कार्यरत माता भगयाणी ने श्रीगुल को आज़ाद करने में सहायता की थी! इस कारण श्रीगुल ने माता भगयाणी को अपनी धरम बहन बनाया और हरिपुरधार मेंस्थान प्रदान कर सर्वशक्तिमान का वरदान दिया! आपार प्राकृतिक सुन्दरता के मध्य बना यह मन्दिर आस्था का प्रमुख स्थल है!  बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिये मन्दिर समिति ने ठहरने का प्रबन्ध किया हुआ है! हरिपुरधार  शिमला से वाया सोलन राजगढ एक सौ पचास किलोमीटर दूर है! जबकि चण्डीगढ से १७५ किलोमीटर है! हरिपुरधार के लिये देहरादून से भी यात्रा की जा सकती है!

रविवार, मई 29, 2011

तानु जुब्‍बड़ मेला 30 मई

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                                                                                                       शिमला जिला में नारकंडा ब्लाक के तहत ग्राम पंचायत जरोल में स्थित तानु जुब्बढ़ झील एक सुंदर पर्यटक स्थल है। यहाँ नाग देवता का प्राचीन मन्दिर हैं ! यह झील नारकंडा से 9 किलो मीटर दूर समुद्रतल से 2349 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ! इस झील का एक पुरातन इतिहास रहा है ! इतनी ऊंचाई पर समतल मैदान के बीचो बीच आधा किलोमीटर के दायरे लबालब पानी से भरी इस झीलं को देख कर हर कोई सोच में पड़ जाता है ! जुब्बढ़ का स्थानीय भाषा में अभिप्राय है घास का मैदान ! इस झील की खोज का श्रेय उन भेड़ बकरी पलकों को जाता है जो यहाँ भेड़ और बकरियों को यहाँ चराने आते थे ! समतल मैदान होने के कारण इन पशु पालकों ने यहाँ पर खेती करने की सोची ! खेती करते समय उन पशु पालकों को यहाँ ठंडे इलाके के बाबजूद सांप नज़र आते थे ! वे उन साँपों को मरने का प्रयास करते तो वो वही पर लुप्त हो जाते थे ! इतना होने पर भी वे पशु पालक वहां पर खेती करते रहे ! एक दिन खेती करते समय एकाएक 18 जोड़ी बैल मैदान के मध्य छिद्र हो जाने से वहा उत्पन हुई जलधारा में समां गए ! इस जलधारा से मैदान पानी से पूरा भर गया ! मान्यता है की इस दृश्य को देखने वाले अभी हैरान परेशां ही थे की वहा नाग देवता जी की प्रतिमा उभर आई ! लोगों ने इसे देव चमत्कार मानते हुए नाग देवता की स्थापना यहाँ कर दी ! आज भी नाग देवता का मंदिर यहाँ पर आलोकिक है और लोगो में बेहद मान्यता है !

उस समय उस चमत्कार में गायब हुए चरवाहे औए बैल सैंज के समीप केपु गाँव में निकले ! यह सब केसे हुआ इसे देव चमत्कार ही माना जाता है !इसके प्रमाण आज भी केपु के मंदिर में देखे जा सकते है !
हर वर्ष यहाँ पर मई मास में 31तारीख के आस पास मेले का आयोजन किया जाता है जो की लगभग तीन दिनों तक चलता है इस मेले में चतुर्मुखी देवता मेलन मेले की शोभा बढाते है ! इस मेले में दूर दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते है ! स्थानीय स्थाई निवासी इस मेले में ज़रूर शिरकत करते है। झील के चारो ओर देवदार के वृक्ष इस स्थल की सुन्दरता को और भी बढ़ा देते है ! ठंडी ठंडी हवा वातावरण को और भी सुहावना बना देती है ! इस मेले में खेल कूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है जिसमें वोल्ली बाल क्रिकेट इत्यादि प्रतियोगिता प्रमुख है !
कुछ भी कहा जाये परन्तु आज भी पुरातन काल में हुए इन चमत्कारों के प्रमाणों को देख कर लोग चकित रह जाते है ! इस क्षेत्र का प्राकृतिक सोंदर्य अद्भुत तो है ही और पर्यटकों को आकर्षित भी करता है ! आवश्यकता है इस क्षेत्र को और अधिक विकसित करने की क्योंकि यहाँ पर्यटन की आपार संभावनाएं है !

शुक्रवार, जून 25, 2010

श्रीखंड यात्रा

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हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के आनी उपमंडल में 18 हज़ार की ऊंचाई पर स्थित है श्रीखंड महादेव ! श्रीखंड की यात्रा की प्रतीक्षा हर वर्ष की तरह इस बार 16 जुलाई से आरम्भ हो रही है ! यह यात्रा 24 जुलाई तक चलेगी ! पिछले 15 वर्षो से इस यात्रा का सचालन श्री खंड सेवा दल द्वारा किया जा रहा है ! यात्रा जुलाई और अगस्त माह में ही होती है क्योंकि शेष दिनों यहाँ बर्फ पड़ी रहती है ! यात्री शिमला से रामपुर होते हुए यात्रा आरम्भ करते है ! शिमला से रामपुर 130 और रामपुर से बागीपुल 35 किलोमीटर है ! बागीपुल से जांव तक सात किलोमीटर तक वाहन का प्रयोग किया जाता है ! जावं से आगे पैदल यात्रा करनी पड़ती है ! यात्रा के तीन पड़ाव सिंहगाड, थाच्डू और भीमडवार की है जांव से आगे की यात्रा पैदल होती है ! जांव से सिंहगाड 3 किलोमीटर है ! सिंहगाड से 8 किलोमीटर और थाचरू तथा भीमडवार 9 किलोमीटर है ! यात्रा के तीनो पड़ाव में श्रीखंड सेवा दल की तरफ से यात्रियों के लिए दिन रात का लंगर चलाया जाता है ! भीमडवार से श्रीखंड की दुरी मात्र 7 किलोमीटर है ! जांव से श्रीखंड के लिए 18 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा है ! जिसे यात्री हर हर महादेव के नारों और भजनों के साथ पूरा करते है ! यात्रा के दोरान यात्री कई दर्शनीय स्थलों का दर्शन भी कतरे है जिनमें प्रमुख है प्राकृतिक शिव गुफा देव ढांक , पोराणिक परसु राम मंदिर , दक्षिणेश्वर महादेव व् अम्बिका माता मंदिर निरमंड , संकट मोचन हनुमान मंदिर आरसु, गौर मंदिर जांव, सिंह गाड , ब्राहती नाला , थाचरू जोगनी जोत्काली घाटी, ढँक द्वार , बकासुर वध, कुन्षा , अनेक स्थल है ! यात्रा के दौरान अद्भुत और दुर्लभ जडी बूटियों के दर्शन भी करते हैं ! रास्ता कठिन और संकरा है अक्सर यात्री रास्ता भी भूल जाते है ! यात्रिओं को ग्राम कम्बल टॉर्च लाठी और ग्राम जुराबों सहित टिकाऊ जूतों को लेन की सलाह दी जाती है और अस्वस्थ लोगो को इस यात्रा को नहीं करने दिया जाता क्योंकि रास्ता बेहद ही कठिन है !
बेशक पिछले 15 वर्षों से सेवा दल यात्रा आयोजित कर रहा है परन्तु श्रीखंड महादेव की कैलाश यात्रा अभी तक पर्यटन के मानचित्र पर नहीं आई है !

गुरुवार, अगस्त 13, 2009

मणि महेश यात्रा

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हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला में स्तिथ मणि महेश यात्रा 13 अगस्त 2009 से शुरू हो रही है ! पवित्र स्नान की तिथियाँ 14 और 27 अगस्त 2009 है ! शिव का निवास मणि महेश धाम अमरनाथ की यात्रा से भी कठिन मानी जाती है ! मणि महेश यात्रा चम्बा के लक्ष्मी नारायण मंदिर से शुरू होती है तथा खुबसूरत पहाडियों और वादिओं से गुजरते हुए मणि महेश के दर्शन होते है ! आस्था है की इस झील में स्नान करने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है !
मणिमहेश चम्बा जिला के भरमोर में 13500 फुट ऊंचाई पर स्तिथ है ! चम्बा से भरमोर 65 भरमोर से हडसर 14 और हडसर से मणिमहेश झील 13 किलोमीटर है ! रास्ता कठिन तो है मगर प्राकृतिक सौन्दर्य इस कठिनता का आभास नहीं होने देता साथ शिव के दर्शन की लगन इस कठिनाई को दूर कर देती है ! श्रद्धालु जय बम बम भोले का घोष करते हुए इस रस्ते को पूरा करते है तथा अपने जीवन को सफल बनाते है ! रास्ते में पड़ने वाले अन्य पवित्र स्थल गौरी कुण्ड है !


रविवार, जुलाई 26, 2009

कांगड़ा पठानकोट जोगिंद्रनगर रेल

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हिमाचल प्रादेश में कांगडा वैली पठानकोट-जोगिंद्रनगर (केवीआर) रेलवे को यूनेस्को की ओर से वर्ष 2011 में घोषित होने वाली विश्व धरोहर की अस्थायी सूची के लिए नामांकित किया गया है। अंतिम निर्णय स्पेन में होने वाली बैठक में लिया जाएगा। इसका निर्माण 2 मई 1926 को शुरू हुआ। पहली रेलगाड़ी 1 अप्रैल 1929 को पठानकोट रवाना हुई। 163 मील लंबी रेल लाइन 993 पुलों, दो सुरंगों और 484 मोड़ों से होकर गुजरती है। ब्रिटिशकाल में बस्सी परियोजना तक सामान पहुंचाने के लिए यह रेल लाइन बिछाई गई थी। इसके निर्माण पर 2 करोड़ 72 लाख 1300 रुपए खर्च किए गए थे।



मंगलवार, जुलाई 14, 2009

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क

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हिमाचल प्रदेश के बंजार घाटी में वर्ष 1984 में बने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को धरोहर बनाने की कवायद शुरू हो गई है। इसे लेकर पार्क प्रबंधन ने भारत सरकार को प्रस्ताव भी भेज दिया है। वहीं, केंद्र ने भी इसके लिए सकारात्मक संकेत दिए हैं। 1980 में हिमालय वन्य प्राणी प्रोजेक्ट के तहत व्यासर नदी क्षेत्र में इसका सर्वेक्षण हुआ और 1984 में कुल्लू जिला के बंजार उपमंडल में जीवानाला, सैंज वैली, तीर्थन घाटी के 765 वर्ग किमी क्षेत्र को मिलाकर घाटी के वन्य प्राणी संरक्षण के लिए इसकी स्थापना की गई। अभी पार्क क्षेत्र के 266 वर्ग किमी क्षेत्र में इसका वन्य प्राणी विहार फैला है। पार्क की न्यूनतम उंचाई १५क्क् मीटर

और अधिकतम 6140 मीटर है। यहां पर्वतारोहण के नए रूट खोजे जाने से देशी-विदेशी साहसिक पर्यटकों का आवागमन बढ़ा है। वन्य प्राणियों के संरक्षण, दुर्लभ वनस्पतियों, वन संपदा और पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी बढ़ावा दिया जा रहा है। पार्क क्षेत्र में बर्फानी तेंदुआ, हिमाचली थार, कस्तूरी मृग, ब्राउन बीयर, मोनाल, जाजुराणा समेत लगभग 9 हजार पशु पक्षी विचरण करते हैं। यहां प्राकृतिक व नैसर्गिक सौंदयं का बेजोड़ संगम है।

सोमवार, जुलाई 13, 2009

खूबसूरत नैनीताल

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नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद खूबसूरत है। इसे भारत कालेक डिस्ट्रिक्टकहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। इसकी भौगोलिक विशेषता निराली है। एक बार आने पर ही यह जगह अधिकांश लोगों को अपना दीवाना बना लेती है। 1847 के आसपास नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, अंग्रेज तो इसे समर कैपिटल भी कहते थे। यहां झील के आसपास बने शानदार बंगलों और होटलों में रुकने का अपना ही मजा है। अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेजों को यह जगह काफी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतजाम किए थे। नैनी लेक/स्नो व्यू पर्यटकों के लिए यह सबसे ज्यादा खूबसूरत साइट है। खासतौर से तब जब सूरज की किरणों पूरी झील को अपने आगोश में ले लेती हैं। यह चारों तरफ से सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां बोट राइड और पैडलिंग का भी आनंद उठाया जा सकता है। मुख्य शहर से तकरीबन ढाई किमी दूर बनी इस जगह तक पहुंचने के लिए केबल कार का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह सबसे ज्यादा देखे जाने वाले टूरिस्ट स्थलों में से एक है। एक बार घूमने में इसका जादू सिर चढ़कर बोलता है। नैना पीक/चाइना पीक 2611 मीटर की ऊंचाई पर बसी यह चोटी इस जगह का सबसे ज्यादा ऊंचा इलाका है। आपके पास अगर दूरबीन है तो नैना पीक के नजारे आप आसानी से देख सकते हैं। गर्नी हाउस यह अंग्रेज शासक जिम कॉर्बेट का पूर्व निवास स्थल है। नैनीताल चहुंओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है, ठीक उसी तरह गर्नी हाउस भी अयारपट्टा पहाड़ियों से घिरा है। यह घर अब एक म्यूजियम की शक्ल ले चुका है और जिम कॉर्बेट की कई यादगार वस्तुएं यहां मौजूद हैं। किलबरी/मुक्तेश्वर अगर आप शांत और सौम्य वातावरण में छुट्टियां गुजारना चाहते हैं तो इसके लिए यह जगह बिल्कुल उपयुक्त है। केबल कार के जरिए यहां पहुंचकर जंगल हाउस में रात गुजारने का अनुभव अलग ही आनंद देता है। यहां ऊपरी चोटी पर शिव मंदिर भी है यानी देशाटन और तीर्थाटन एक साथ।

गुरुवार, मई 14, 2009

तानु जुब्बढ़ झील

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शिमला जिला में नारकंडा ब्लाक के तहत ग्राम पंचायत जरोल में स्थित तानु जुब्बढ़ झील एक सुंदर पर्यटक स्थल है। यहाँ नाग देवता का प्राचीन मन्दिर हैं ! यह झील नारकंडा से 9 किलो मीटर दूर समुद्रतल से 2349 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ! इस झील का एक पुरातन इतिहास रहा है ! इतनी ऊंचाई पर समतल मैदान के बीचो बीच आधा किलोमीटर के दायरे लबालब पानी से भरी इस झीलं को देख कर हर कोई सोच में पड़ जाता है ! जुब्बढ़ का स्थानीय भाषा में अभिप्राय है घास का मैदान ! इस झील की खोज का श्रेय उन भेड़ बकरी पलकों को जाता है जो यहाँ भेड़ और बकरियों को यहाँ चराने आते थे ! समतल मैदान होने के कारण इन पशु पालकों ने यहाँ पर खेती करने की सोची ! खेती करते समय उन पशु पालकों को यहाँ ठंडे इलाके के बाबजूद सांप नज़र आते थे ! वे उन साँपों को मरने का प्रयास करते तो वो वही पर लुप्त हो जाते थे ! इतना होने पर भी वे पशु पालक वहां पर खेती करते रहे ! एक दिन खेती करते समय एकाएक 18 जोड़ी बैल मैदान के मध्य छिद्र हो जाने से वहा उत्पन हुई जलधारा में समां गए ! इस जलधारा से मैदान पानी से पूरा भर गया ! मान्यता है की इस दृश्य को देखने वाले अभी हैरान परेशां ही थे की वहा नाग देवता जी की प्रतिमा उभर आई ! लोगों ने इसे देव चमत्कार मानते हुए नाग देवता की स्थापना यहाँ कर दी ! आज भी नाग देवता का मंदिर यहाँ पर आलोकिक है और लोगो में बेहद मान्यता है !
उस समय उस चमत्कार में गायब हुए चरवाहे औए बैल सैंज के समीप केपु गाँव में निकले ! यह सब केसे हुआ इसे देव चमत्कार ही माना जाता है !इसके प्रमाण आज भी केपु के मंदिर में देखे जा सकते है !
हर वर्ष यहाँ पर मई मास में 31तारीख के आस पास मेले का आयोजन किया जाता है जो की लगभग तीन दिनों तक चलता है इस मेले में चतुर्मुखी देवता मेलन मेले की शोभा बढाते है ! इस मेले में दूर दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते है ! स्थानीय स्थाई निवासी इस मेले में ज़रूर शिरकत करते है। झील के चारो ओर देवदार के वृक्ष इस स्थल की सुन्दरता को और भी बढ़ा देते है ! ठंडी ठंडी हवा वातावरण को और भी सुहावना बना देती है ! इस मेले में खेल कूद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है जिसमें वोल्ली बाल क्रिकेट इत्यादि प्रतियोगिता प्रमुख है !
कुछ भी कहा जाये परन्तु आज भी पुरातन काल में हुए इन चमत्कारों के प्रमाणों को देख कर लोग चकित रह जाते है ! इस क्षेत्र का प्राकृतिक सोंदर्य अद्भुत तो है ही और पर्यटकों को आकर्षित भी करता है ! आवश्यकता है इस क्षेत्र को और अधिक विकसित करने की क्योंकि यहाँ पर्यटन की आपार संभावनाएं है !
 
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