बुधवार, अगस्त 22, 2012
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रौशन जसवाल विक्षिप्त
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काव्य
जिजीविषा
हार गई
वो सह नहीं पाई
निरन्तर दौड़ना
प्रतीक्षा करना
डायलसिस की वेदना
अनावश्यक डांट
जिजीविषा
सह गई
अमानवीय व्यवहार
और
यम
जीत गया,
जिजीविषा
हार गई
और सो गई
सदा के लिए।
जब तक साँस तब तक आस !इस कविता के पात्र का देहांत हो गया ,ऐसा लगता है !
S.N SHUKLA on 27 अगस्त 2012 को 9:28 am बजे
ने कहा…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सादर.
मेरे ब्लॉग की नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है .
संध्या शर्मा on 9 जनवरी 2013 को 1:28 pm बजे
ने कहा…
बहुत तकलीफदायक होती है डायलिसिस की वेदना, शायद उसे इस चिरनिद्रा से ही आराम मिलता... अपनी माँ को देखा है बहुत करीब से इस वेदना से जूझते और हार कर सोते...मार्मिक प्रस्तुति... आभार
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" आधारशिला " के पाठक और टिप्पणीकार के रूप में आपका स्वागत है ! आपके सुझाव और स्नेहाशिर्वाद से मुझे प्रोत्साहन मिलता है ! एक बार पुन: आपका आभार !
3 Reviews:
जब तक साँस तब तक आस !इस कविता के पात्र का देहांत हो गया ,ऐसा लगता है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सादर.
मेरे ब्लॉग की नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है .
बहुत तकलीफदायक होती है डायलिसिस की वेदना, शायद उसे इस चिरनिद्रा से ही आराम मिलता... अपनी माँ को देखा है बहुत करीब से इस वेदना से जूझते और हार कर सोते...मार्मिक प्रस्तुति... आभार
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