google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : कविता

कविता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कविता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, अक्तूबर 12, 2023

वक्त

0 Reviews

 ये वक्त है

गुजर ही जायेगा

अभी बुरा है

तो 

अच्छा भी आयेगा, 

वक्त है

गुजरना जिसकी फितरत है

गुजर ही जायेगा।

बुधवार, मई 17, 2023

तस्वीर

0 Reviews

 ज़िन्दगी

तुम खीचना तस्वीरें

अपने कैमरे से ऐसी,

ना दिखे

दर्द वेदना विरह जिसमें।

शनिवार, मई 13, 2023

शहर

0 Reviews

 शहर 

तुम 

कितना बदल गए हो

तुम 

अक्सर 

मुझे पहचानते ही नहीं

और 

निकल जाते जो 

बेपरवाह

एक

 अजनबी की तरह

शुक्रवार, मई 12, 2023

अम्मा

0 Reviews

 

अम्मा

बुनती है रंग बिरंगी गेंदें ,

वो जानती है

पहाड़ की तलहटी में

सर्दियों के मौसम में

खेल होगा

और

जुटेंगे अनगिनत लोग,

अम्मा ने देखा नहीं है

सर्दियों के मौसम का ये खेल

उसकी आँखों ने देखे है

अपनों के साथ

अपनों का ही खेल,

वो बुनती है गेंदें चुपचाप

गेंदें रंग बिरंगी

तलहटी में उस खेल के लिए ।

गुरुवार, मई 11, 2023

कान

0 Reviews

 

दिवारों के कान होते हैं।

हमेशा सुना है।

लेकिन ये कान बहरे होते हैं।

ये सच और सही सुन नहीं पाते

यही बहरे कान अक्सर अफवाह फैलाते है

रविवार, नवंबर 06, 2022

मत आना मेरे नगर

2 Reviews

 मत आना

तुम मेरे नगर

मैं बहुत तंग हो जाता हूँ 

और उससे भी ज्यादा

तंग करते हैं सुरक्षा कर्मी,

मैं नहीं खरीद पाता हूँ सब्जियां,

मुझे नहीं मिलती है

दवाइया तुम्हारे आने पर, 

तरेरता है आँखें सुरक्षा कर्मी

जैसे मैं  कोई अपराधी हूँ,

मुझे नहीं मिलता है 

थ्री वीलर,

मैं अब पैदल नहीं चल पाता

ढूंढना पड़ती है 

मुझे कोई सवारी

वो भी तुम्हारे  

आने पर अपना रेट

एकाएक बढा देते है

जैसे कल तो आना ही नहीं है

आज ही जी लो जीवन, 

और सुनो

बड़े चौक पर 

बढ़ी मुछो वाला 

तुम्हारे आने पर

और ज्यादा  डरावना लगता है

तुम्हारे आने पर 

वो क्यों घूरता रहता है हमेशा,

स्वागत किया है मैंने 

तुम जब भी आए हो मेरे नगर

मैंने सुन ली है

तुम्हारी बहुत सी बातें

नहीं है मुझे तुम पर विश्वाश

तुम्हारी भाषा 

अब मुझे समझ नही  आती

मत आना तुम मेरे 

नगर दुबारा।

बुधवार, सितंबर 14, 2022

बदल गया मौसम

0 Reviews

 बदल गया मौसम बदल गए हम*,

ये कहां से कहां निकल गए हम।


जमाने का क्या कहता है बहुत कुछ,

आपकी सोहबत में सम्भल गए है हम।


वही है हम और वहीं हैं ठहरे हुए,

अफवाह है कि फिसल गए है हम।


दावा की बेहतर हम हमी से है दुनिया,

और कुछ नहीं बस मर गए है हम। 


मज़हब है हौड़ है या कुछ और विक्षिप्त,

इतना आगे पहुँच कर  पिछड़ गए है हम। 


------------ 


*Vidya Chhabra  जी की पुस्तक का शीर्षक । प्रयोग की अनुमति दी आभार।

कुछ हुआ होगा

0 Reviews

कुछ ना कुछ तो हुआ होगा कुछ  जो  छुपा रहे हो

जानता समझता हूँ सच झठ, तुम क्या बता रहे हो।

 

आसां नहीं होता खुद को यूं ग़म में डुबो देना,

आज तुम रिश्ते नातों अपनों को गंवा रहे हो।

 या ख़ुदा कभी तो मिलोगेढूंढ ही लूंगा तुम्हे,

मत बताना मत कहना, रास्ता लम्बा बता रहे हो।

 

अच्छा है भ्रम है, ये  वफादारी और ये इश्क,

एक तुम क्या हो कि सपनें झूठे दिखा रहे हो।

 

विक्षिप्त है क्या हुआ, क्या यही है इश्क तुम्हारा,

जानता हूँ  झूठ है, दूसरों के  किस्से  सुना रहे हो।


सच कह ही दूं

0 Reviews

 सच कह ही  दूं तो राज खुल जायेगा

तू  बता रुसवा हो कर कहां जायेगा।

 

ये दुनिया है बेदर्द बेरंग, अहसान फरामोश

दावा है मेरा धोखे खा के तू सम्भल जाएगा। 

 

मत मटक इतना मत इतरा मत गरूर कर,

मर जायेगा मिट जाएगा फिर  किधर जाएगा।

 

उसने कहा तेरे बिना जीना है नामुमकिन,

सच सच बता ये झूठ कितनों को सुनाएगा। 

 

मत  बता गणित तू मुझे सम्बन्धों का,

कौन सगा कौन पराया मुझे समझायेगा। 

 

आग का दरिया है ना कर इश्क नादां,

विक्षिप्त ही तो है कहीं भी फिसल जाएगा।

 


आदमी भोंकता है

0 Reviews

 ये रात

बेहद भयावहीँ है,

मुहल्ले में सन्नाटा क्यों है,

शहर के

सभी कुत्ते सौ गए है,

अब वो भोकते नहीं,

वो जान गए 

भोंकना अब अर्थहीन है

अब 

आदमी भोंकता है

बेहद शांति से

और खामोशी से।

हवा

1 Reviews

 ये जो 

दरवाज़ा 

रात में हल्के से 

ठक की आवाज़ देता है,

सचमुच मुझे 

डरा देता है,

हवा ही से तो हिला था 

हल्के से ये दरवाज़ा,

हवा भी तो

आज

दूषित है डरावनी है

और नहीं है

विश्वास के योग्य।

मंगलवार, जून 09, 2020

पराजय

5 Reviews
हार जाता है
आदमी कभी
स्वयं से ही,
उठता है
फिर दौड़ता है
एक नई
पराजय के लिए। 

रविवार, अप्रैल 05, 2020

पहाड़ चुप है

1 Reviews
शहर
गमलों से निकल कर
निहार रहा है पहाड़ो को,

शहर देख रहा है
प्रकृति की अठखेलिया
स्वच्छ होता नभ
मनमोहक चांदनी
जीवों वनस्पतियों की 
चहलकदमी
और  
कर रहा है
स्वयं से मंथन,

लेकिन पहाड़
उदास है
गमगीन है
क्योंकि
वो जानता है
स्तिथियाँ बदल जाएगी
एक अंतराल के बाद
वो रह जायेगा एकाकी,

पहाड़ जानता है
ये प्रसन्नताएँ उल्हास
ये मन्त्रणाएँ
क्षणिक है
खो जाएगा ये सब
कहीं सुदूर
और
इन्ही गमलों में
खो जाएगा शहर
 पहाड़ चुप है
हमेशा की तरह।
 
ब्लोगवाणी ! INDIBLOGGER ! BLOGCATALOG ! हिंदी लोक ! NetworkedBlogs ! हिमधारा ! ऐसी वाणी बोलिए ! ब्लोगर्स ट्रिक्स !

© : आधारशिला ! THEME: Revolution Two Church theme BY : Brian Gardner Blog Skins ! POWERED BY : blogger