ये वक्त है
गुजर ही जायेगा
अभी बुरा है
तो
अच्छा भी आयेगा,
वक्त है
गुजरना जिसकी फितरत है
गुजर ही जायेगा।
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ये वक्त है
गुजर ही जायेगा
अभी बुरा है
तो
अच्छा भी आयेगा,
वक्त है
गुजरना जिसकी फितरत है
गुजर ही जायेगा।
अम्मा
बुनती
है रंग बिरंगी गेंदें ,
वो
जानती है
पहाड़
की तलहटी में
सर्दियों
के मौसम में
खेल
होगा
और
जुटेंगे
अनगिनत लोग,
अम्मा
ने देखा नहीं है
सर्दियों
के मौसम का ये खेल
उसकी
आँखों ने देखे है
अपनों
के साथ
अपनों
का ही खेल,
वो
बुनती है गेंदें चुपचाप
गेंदें
रंग बिरंगी
तलहटी
में उस खेल के लिए ।
दिवारों
के कान होते हैं।
हमेशा
सुना है।
लेकिन
ये कान बहरे होते हैं।
ये सच
और सही सुन नहीं पाते
यही
बहरे कान अक्सर अफवाह फैलाते है
मत आना
तुम मेरे नगर
मैं बहुत तंग हो जाता हूँ
और उससे भी ज्यादा
तंग करते हैं सुरक्षा कर्मी,
मैं नहीं खरीद पाता हूँ सब्जियां,
मुझे नहीं मिलती है
दवाइया तुम्हारे आने पर,
तरेरता है आँखें सुरक्षा कर्मी
जैसे मैं कोई अपराधी हूँ,
मुझे नहीं मिलता है
थ्री वीलर,
मैं अब पैदल नहीं चल पाता
ढूंढना पड़ती है
मुझे कोई सवारी
वो भी तुम्हारे
आने पर अपना रेट
एकाएक बढा देते है
जैसे कल तो आना ही नहीं है
आज ही जी लो जीवन,
और सुनो
बड़े चौक पर
बढ़ी मुछो वाला
तुम्हारे आने पर
और ज्यादा डरावना लगता है
तुम्हारे आने पर
वो क्यों घूरता रहता है हमेशा,
स्वागत किया है मैंने
तुम जब भी आए हो मेरे नगर
मैंने सुन ली है
तुम्हारी बहुत सी बातें
नहीं है मुझे तुम पर विश्वाश
तुम्हारी भाषा
अब मुझे समझ नही आती
मत आना तुम मेरे
नगर दुबारा।
बदल गया मौसम बदल गए हम*,
ये कहां से कहां निकल गए हम।
जमाने का क्या कहता है बहुत कुछ,
आपकी सोहबत में सम्भल गए है हम।
वही है हम और वहीं हैं ठहरे हुए,
अफवाह है कि फिसल गए है हम।
दावा की बेहतर हम हमी से है दुनिया,
और कुछ नहीं बस मर गए है हम।
मज़हब है हौड़ है या कुछ और विक्षिप्त,
इतना आगे पहुँच कर पिछड़ गए है हम।
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*Vidya Chhabra जी की पुस्तक का शीर्षक । प्रयोग की अनुमति दी आभार।
कुछ
ना कुछ तो हुआ होगा कुछ जो छुपा रहे हो
जानता
समझता हूँ सच झठ,
तुम क्या बता रहे हो।
आसां
नहीं होता खुद को यूं ग़म में डुबो देना,
आज
तुम रिश्ते नातों अपनों को गंवा रहे हो।
मत
बताना मत कहना,
रास्ता लम्बा बता रहे हो।
अच्छा
है भ्रम है,
ये वफादारी और ये इश्क,
एक
तुम क्या हो कि सपनें झूठे दिखा रहे हो।
विक्षिप्त
है क्या हुआ,
क्या यही है इश्क तुम्हारा,
जानता
हूँ झूठ है, दूसरों
के किस्से सुना रहे हो।
सच कह ही दूं तो राज खुल जायेगा,
तू बता रुसवा हो कर कहां जायेगा।
ये
दुनिया है बेदर्द बेरंग,
अहसान फरामोश,
दावा
है मेरा धोखे खा के तू सम्भल जाएगा।
मत
मटक इतना मत इतरा मत गरूर कर,
मर
जायेगा मिट जाएगा फिर
किधर जाएगा।
उसने
कहा तेरे बिना जीना है नामुमकिन,
सच
सच बता ये झूठ कितनों को सुनाएगा।
मत बता गणित तू मुझे सम्बन्धों का,
कौन
सगा कौन पराया मुझे समझायेगा।
आग
का दरिया है ना कर इश्क नादां,
विक्षिप्त
ही तो है कहीं भी फिसल जाएगा।
ये रात
बेहद भयावहीँ है,
मुहल्ले में सन्नाटा क्यों है,
शहर के
सभी कुत्ते सौ गए है,
अब वो भोकते नहीं,
वो जान गए
भोंकना अब अर्थहीन है
अब
आदमी भोंकता है
बेहद शांति से
और खामोशी से।
ये जो
दरवाज़ा
रात में हल्के से
ठक की आवाज़ देता है,
सचमुच मुझे
डरा देता है,
हवा ही से तो हिला था
हल्के से ये दरवाज़ा,
हवा भी तो
आज
दूषित है डरावनी है
और नहीं है
विश्वास के योग्य।
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