बदल गया मौसम बदल गए हम*,
ये कहां से कहां निकल गए हम।
जमाने का क्या कहता है बहुत कुछ,
आपकी सोहबत में सम्भल गए है हम।
वही है हम और वहीं हैं ठहरे हुए,
अफवाह है कि फिसल गए है हम।
दावा की बेहतर हम हमी से है दुनिया,
और कुछ नहीं बस मर गए है हम।
मज़हब है हौड़ है या कुछ और विक्षिप्त,
इतना आगे पहुँच कर पिछड़ गए है हम।
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*Vidya Chhabra जी की पुस्तक का शीर्षक । प्रयोग की अनुमति दी आभार।
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