google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : पहाड़ चुप है

रविवार, अप्रैल 05, 2020

पहाड़ चुप है

शहर
गमलों से निकल कर
निहार रहा है पहाड़ो को,

शहर देख रहा है
प्रकृति की अठखेलिया
स्वच्छ होता नभ
मनमोहक चांदनी
जीवों वनस्पतियों की 
चहलकदमी
और  
कर रहा है
स्वयं से मंथन,

लेकिन पहाड़
उदास है
गमगीन है
क्योंकि
वो जानता है
स्तिथियाँ बदल जाएगी
एक अंतराल के बाद
वो रह जायेगा एकाकी,

पहाड़ जानता है
ये प्रसन्नताएँ उल्हास
ये मन्त्रणाएँ
क्षणिक है
खो जाएगा ये सब
कहीं सुदूर
और
इन्ही गमलों में
खो जाएगा शहर
 पहाड़ चुप है
हमेशा की तरह।

1 Reviews:

सुशील कुमार जोशी on 5 अप्रैल 2020 को 9:45 am बजे ने कहा…

सुन्दर। चुप रहना ही ठीक है। नहीं तो चुप करा दिया जायेगा पहाड़ वैसे भी।

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