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शुक्रवार, मई 12, 2023

अम्मा

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अम्मा

बुनती है रंग बिरंगी गेंदें ,

वो जानती है

पहाड़ की तलहटी में

सर्दियों के मौसम में

खेल होगा

और

जुटेंगे अनगिनत लोग,

अम्मा ने देखा नहीं है

सर्दियों के मौसम का ये खेल

उसकी आँखों ने देखे है

अपनों के साथ

अपनों का ही खेल,

वो बुनती है गेंदें चुपचाप

गेंदें रंग बिरंगी

तलहटी में उस खेल के लिए ।

गुरुवार, मई 11, 2023

कान

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दिवारों के कान होते हैं।

हमेशा सुना है।

लेकिन ये कान बहरे होते हैं।

ये सच और सही सुन नहीं पाते

यही बहरे कान अक्सर अफवाह फैलाते है

रविवार, मार्च 19, 2023

शिमला मैं तुम्हे याद करता हूँ।

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शिमला


मैं तुम्हे याद करता हूँ। बचपन यही तो बिता है। मटरगश्ती भी तो यही की है। ढली उस समय मिडल स्कूल होता था। मशोबरा से दसवीं पास करने के बाद संजौली कॉलेज में दाखिला लिया तो मानो आसमान मिल गया। कक्षाएं लगाने के बाद रिज पर जाना लोगो को देखना गप्पे लगाना हमेशा याद आता है। संजौली में कलकत्ता टी स्टॉल के परांठे हमेशा याद आते है। हाँ खाली समय मे सेंट बीड्स की तरफ चक्कर लगाना भी याद है।

स्नातक होने के बाद विश्वविद्यालय में प्रवेश ने नए आयाम दिए। कभी कभी ढली से समरहिल तक पैदल पहुंचना याद है। रिज पर लवीना में सॉफ्टी का आनंद मैं कभी नहीं भूल सकता और रिज पर पर बढ़े पेड़ के नीचे बैठे भाई से मूंगफली खाना मेरी स्मृतियों में है।

कभी सोचता था यहीं जीवन बीत जाएगा। गोष्ठियां होंगी कविताएं सुनाऊंगा कविताएं सुनूंगा।

ईश्वर आपके लिए क्या सोचता है कोई नहीं जानता।

ये फोर लेन कहां से आ गया विस्तफीत कर दिया ऐसा कभी सोचा नहीं था। फोरलेन तुम्हे मैं कभी माफ नहीं करूंगा । तुमने मेरे आत्मीयों को मुझ से छीना है और मुझे अकेला किया है।

मैं ये किस शहर में आ गया हूँ। यहां तो मैं अकेला हो गया हूँ ।

जब शिमला तुम मुझे बुलाते हो मैं अपने को रोक नहीं पता हूँ। गेयटी में हिमालयन मंच का आयोजन हो या कीकली या फिर भाषा विभाग का आयोजन। हिमालयन मंच तो काफी बाद में बना ये तरुण संगम होता था और ग्रेंड होटल के सभागार में आयोजन होते थे।

इसी समय कालीबाड़ी के रास्ते में गोलगप्पों का आनंद उठाते थे। वो जो काली बॉडी के पास गोलगप्पों वाला है उसका ज़ायका अलग था अगली बार समय मिला तो जरूर उससे मिलूंगा। अब वही है या नहीं मालूम नहीं ।

रेडियो और दूरदर्शन तक मुझे भूल गए है। उनसे कोई शिकायत नहीं। कुछ लोग समय के साथ बदल जाते है।

ये सब न लिखता अगर कीकली ने बच्चों के कार्यक्रम में न बुलाया होता।

मुझे हिमालयन मंच के आमन्त्रण का इंतज़ार रहता है। ये इसलिए की मेरे लेखन की शुरुआत में इसका बहुत बड़ा हाथ है। बाकी भाषा विभाग और अकादमी तो मुझे कभी याद करता ही नहीं। उनकी सूची में मैं हूँ ही नहीं।

कभी सोचा नहीं था जीवन के अंतिम पड़ाव मैं इस शहर सोलन आ जाऊंगा। लेकिन तुमसे शिकायत है तुम बहुधा पूर्वाग्रह में आ जाते हो। ये पूर्वाग्रह ये दल बंधी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। इस बारे कभी किसी दिन और बात करूँगा।

शिमला मैं कुछ नहीं भुला हूँ क्या तुम्हे कुछ याद है। शिमला मैं तुम्हे बहुत याद करता हूँ। परंतु तुम तो मुझे भूल गए हो....।


तस्‍वीर साभार नमन पांडेय

गुरुवार, दिसंबर 29, 2022

आदमी कितना बेईमान है?

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आदमी कितना बेईमान है? ये तो समय रहते ही पता चलता है। कब और कहां बेईमानी कर जाए कोई पता ही नहीं चलता।

कल कुछ खरीदारी करने बाजार गया तो अगरबत्ती भी खरीदी। वो जो डिपो के पास दुकान है हमेशा वही से अगरबत्ती खरीदता हूँ। वहां वेरायटी मिल जाती है। पिछले एक साल से वहां से अगरबत्ती खरीद रहा हूँ । कल अपनी पसंद के चार पैकेट ले लिये हमेशा की तरह। घर आ कर एक पैकेट खोलना चाहा तो शंका हुई कि पैकेट खुला हुआ है। सभी चार चेक किये तो सभी खुले थे और उसमें अगरबत्ती अलग अलग संख्या में थी।

आदमी कब क्या कर जाए कोई पता नहीं ।

देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई.......

रविवार, नवंबर 06, 2022

मत आना मेरे नगर

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 मत आना

तुम मेरे नगर

मैं बहुत तंग हो जाता हूँ 

और उससे भी ज्यादा

तंग करते हैं सुरक्षा कर्मी,

मैं नहीं खरीद पाता हूँ सब्जियां,

मुझे नहीं मिलती है

दवाइया तुम्हारे आने पर, 

तरेरता है आँखें सुरक्षा कर्मी

जैसे मैं  कोई अपराधी हूँ,

मुझे नहीं मिलता है 

थ्री वीलर,

मैं अब पैदल नहीं चल पाता

ढूंढना पड़ती है 

मुझे कोई सवारी

वो भी तुम्हारे  

आने पर अपना रेट

एकाएक बढा देते है

जैसे कल तो आना ही नहीं है

आज ही जी लो जीवन, 

और सुनो

बड़े चौक पर 

बढ़ी मुछो वाला 

तुम्हारे आने पर

और ज्यादा  डरावना लगता है

तुम्हारे आने पर 

वो क्यों घूरता रहता है हमेशा,

स्वागत किया है मैंने 

तुम जब भी आए हो मेरे नगर

मैंने सुन ली है

तुम्हारी बहुत सी बातें

नहीं है मुझे तुम पर विश्वाश

तुम्हारी भाषा 

अब मुझे समझ नही  आती

मत आना तुम मेरे 

नगर दुबारा।

 
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