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गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

हिमप्रस्‍थ का जनवरी 2011

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हिमप्रस्‍थ के जनवरी 2011 के अंक में डा0 अम्बिका घेजटा का लेख सर्वेश्‍वर दयाल सक्‍सेना की कविताओं में ग्रामिण बोध की अभिव्‍यक्ति पठनीय लेख है। इसके अतिरिक्‍त प्रो0 डा0 यशवंतकर संतोष कुमार का लेख भारतीय समाजशास्‍त्र संग्रहीय लेख है। अन्‍य लेख में सुदर्शन वशिष्‍ठ, राजेन्‍द्र राजन, आंकाक्षा यादव, सीता राम गुप्‍ता, जितेन्‍द्र कुमार, डा0 शशि भूषण, सत्‍यनारायण भटनागर, और बी0डी0 शर्मा के आलेख महत्‍वपूर्ण है। डा0 मदन मोहन वर्मा की कहानी स्‍वतंत्र है अब हम प्रभावित करती है। अन्‍य कहानियों में डा0 लीला मोदी और साधु राम दर्शक की कहानियां पठनीय है। इस अंक में डा0 सुरेश उजाला और अंकुश्री की लघुकथाओं के साथ साथ राम नारायण हलधर, राजीव कुमार त्रिगर्ती, महेन्‍द्र सिंह शेखावत उत्‍साही, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, ज्ञान चन्‍द शर्मा, डा0 जगदीश चन्‍द्र शर्मा और शंकर सुल्‍तानपुरी की कवितायें पठनीय है। सुरेश आनन्‍द का व्‍यंग्‍य सुबह का भविष्‍यफल पठनीय है। हिमप्रस्‍थ के इस अंक में डा0 रमेश सोबती ने सुकृति भठनागर के काव्‍य संग्रह अनुगूंज और डा0 जगन सिंह ने डा0 अरूण कुमार की पुस्‍तक पालिटिकल मार्केटिंग इन इण्डिया की समीक्षा प्रस्‍तुत की है।
सम्‍पर्क :संपादक, रणजीत सिंह राणा, हिमप्रस्‍थ सम्‍पादकीय कार्यालय, हि0प्र0 प्रिटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चौकी, शिमला -171005

सोमवार, जनवरी 31, 2011

भारत की हिंदी लघुकथाएं

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पेशे से चिकित्सक डॉ. रामकुमार घोटड़ ने साहित्य के क्षेत्र में लघुकथा पर वृहद और कई महत्वपूर्ण कार्य किया है और अब तक उन्हें 22 पुस्तकों में समेटा है। इसी श्रृंखला में सद्य-प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय  हिन्दी लघुकथाएं’ इस मायने में ध्यान खींचती है कि इसमें देश  के लगभग हर प्रान्त के हिन्दी लघुकथाकारों की लघुकथाएं समाहित हैं और लघुकथा के सभी दिग्गज इसमें शामिल हैं। यह संकलन दो खंडों में है। ‘विरासत के धनी’ नामक पहले खंड में भारतेंदु हरिश्चंद्र , माधव राव सप्रे, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद , पदुमलाल पन्नालाल बक्षी, उपेन्द्रनाथ अश्करावी और विष्णु  प्रभाकर जैसे मूर्धन्य व अग्रज लेखकों की एक-एक लघुकथाएं संकलित हैं जबकि दूसरे खंड का नाम ‘विरासत के कर्णधार’ रखा गया है। इसमें लगभग वे सभी आधुनिक लेखक हैं जिन्होंने राष्ट्रीय  स्तर पर लघुकथा क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी है। इन लघुकथाकारों की तीन-तीन लघुकथाएं इसमें शामिल की गई हैं। डा. घोटड़ के अनुसार प्रथम व द्वितीय खंड में पुस्तक को विभक्त करने का उद्देष्य यह है कि पाठक पूर्ववर्ती ओर वर्तमान में लिखी जा रही लघुकथाओं से गुजरकर उनका पठनीय रसास्वादन और तात्विक मूल्यांकन कर सके।
यह कहना गलत नहीं होगा कि 1942 में बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ द्वारा नामांकित लघुकथा आज साहित्य की एक सशक्त और स्वीकृत विधा है तथा अन्य विधाओं की तरह देश -विदेश  में इस पर प्रयोग होते आ रहे हैं। फिर भी लघुकथा का मार्मिक प्रभाव इसके कम और उद्वेलित करने वाले शब्दों के कारण अधिक है। इसी से सार्थक लघुकथाएं हमेश  मानस-पटल पर लम्बे समय के लिए अंकित हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर इसी पुस्तक के प्रथम खंड में संकलित भारतेन्दु हरिश्चंद्र  (1850-1885) की लघुकथा ‘अंगहीन धनी’ को लिया जा सकता है।
‘‘एक  धनिष्ट के घर उसके बहुत से प्रतिष्ठित  व्यक्ति बैठे थे। नौकर बुलाने की घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा,  पर हंसता हुआ लौटा। दूसरे नौकरों ने पूछा, ‘क्यों हंस रहे हो?’ तो उसने जवाब दिया, ‘भाई सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उनसे एक बत्ती न बुझे, जब हम गए तो बुझे।’
मानव-मन के विभिन्न धरातलों पर रचे गए इस संकलन की लघुकथाओं को पढ़ते हुए ऐसे ही कई अनुभव, संप्रेषण और भाव जगते हैं। इनमें कहीं दुःख की नदी बहती है तो कहीं सुख का झरना। कहीं विसंगतियां हैं तो कहीं मुखौटा ओढ़े आदमी का चेहरा-दर-चेहरा। भूख की त्रासदी, गरीब-मजदूरों, किसानों की व्यथा, नेताओं का दोगलापन, राजनीति का भ्रष्ट आचरण, पुलिस के चेहरे, औरतों व बच्चों का शोषण -उत्पीड़न, व्यवस्था के डगमगाते रूप आदि जीवन के सभी पहलू यहां देखने को मिलते हैं तो साथ ही इनसे उभरती उम्मीद की किरणें। कथा-कहानियों  और यहां तक कि मीडिया में भी पुलिस का भ्रष्ट चेहरा ही दिखाया जाता है और उन पर लघुकथाएं भी खूब लिखी गई हैं, पर इस संकलन में पुलिस का सकारात्म पक्ष उनके अंदर के इंसानियत को दर्शाता है। अशोक भाटिया की लघुकथा ‘प्रतिक्रिया’, विजय रानी बंसल की ‘पुलिस’ और प्रताप सिंह सोढी की 'दुविधा' ऐसी  ही लघुकथाएं हैं। महेन्द्र सिंह महलान ने ‘झंडा’ में व्यवस्था का क्रूर उदाहरण प्रस्तुत किया है तो जयप्रकाश मानस  ने ‘वोट’ के अंतर्गत यह दर्शाया  है कि भूखे-मजदूरों को आर्थिक सहायता देने की बात हो तो वे भी यही समझते हैं कि चुनाव आने वाला है। लघुकथा क्षेत्र में नेताओं की छवि आजतक सुधर नहीं पायी जिसका मुख्य कारण हमारा भ्रष्टतंत्र ही है। ‘विजय-जुलूस‘(रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु'), ‘राजनीति’(सुरेन्द्र मंथन), ‘सियासत’(जसबीर चावला), ‘चुनाव’ ’(शंकर पुणतांबेकर), ‘चुनाव से पहले’ ’(महेश राजा), ‘लोकतंत्र‘ ’(अमरनाथ चौधरी अब्ज) आदि लघुकथाएं इसी ओर इशारा करती हैं। सुकेश साहनी, महेन्द्र सिंह महलान और धर्मपाल साहिल की लघुकथाएं बच्चों का मनोविज्ञान प्रस्तुत करने में सफल रही हैं तो सुदर्शन वशिष्ठ, डा. किशोर काबरा और युगल ने बुजुर्गों की व्यथा को उकेरा है। सफर में घटने वाली घटनाओं को माध्यम बनाकर कई उम्दा लघुकथाएं लिखी गई हैं जो इस संग्रह की पठनीयता को बरकरार रखती हैं। हीर के सुरीले बोल सुनते हुए एक पाकिस्तानी किसान कब देश  की सीमा पार कर गया, उसे पता ही नहीं चला। इसे श्याम सुन्दर दीप्ति ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से अपनी लघुकथा ‘हद’ में कलमवद्ध किया है। इसी तरह रोशन विक्षिप्त की चार वाक्यों की लघुकथा ‘निर्णय’ एक विसंगति की ओर इशारा करती है--- वह शक के आधार पर पकड़ा गया था। अपने पक्ष में गवाह प्रस्तुत न कर पाने के कारण उसे सात साल कैद का निर्णय दिया गया। जेल में अच्छे आचरण के कारण उसे अवधि से पहले रिहा करने का निर्णय लिया गया।
संकलन में इस तरह की कम शब्दों की लघुकथाएं बहुत मारक हैं। डा. राजेन्द्र सोनी की लघुकथा ‘गांधी के प्रतीक बंदर’ यों उभरा है ---इक्कीसवीं सदी प्रारम्भ हुई और गांधी जी के तीनों बंदरों ने अपने-अपने हाथ हटा लिए। आखिर ऐसा क्यों....?  पूछने पर समवेत स्वर सुनाई दिया, अब जीवन में ऐसी गलती नहीं करेंगे।
दफ्तरी व्यवस्था पर बलराम अग्रवाल (बिना नाल का घोड़ा), और डा0 सतीशराज पुश्करणा (बीती विभावरी) की लघुकथाएं अच्छी बन पड़ी हैं तो श्याम सुन्दर अग्रवाल (स्कूल), डा. रूप देवगुण (लक्ष्मी), डा. योगेन्द्रनाथ शुक्ल  (शिकार), मधुकांत (मेरा अध्यापक), शिक्षा-व्यवस्था की पड़ताल करते नजर आते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि संकलन में कई अच्छे लघुकथाकार छूट गए हैं और महिला लघुकथाकार भी गिनती के हैं। महिला लघुकथाकारों में डा. आभा झा, डा. आशा पुष्प, मालती वसंत, सुरभि रैना बाली, विजय रानी बंसल और पुष्पलता कश्यप ही हैं। चर्चित लघुकथाकारों में कमल चोपड़ा, कमलेश भारतीय, डा0 रामनिवास मानव, घनश्याम अग्रवाल, भगवान वैद्य प्रखर, भगीरथ, राजेन्द्र सोनी, विक्रम सोनी
रामयतन यादव, तारिक असलम ‘तस्नीम’ आदि भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। हालांकि पुस्तक संग्रहणीय है पर लघुकथाओं के चुनाव में भी डा. घोटड़ कहीं-कहीं चूकते नजर आते हैं।
पु स्तकः भारत की हिन्दी लघुकथाएंः डा.राम कुमार घोटड़
प्रकाशकः मंजुली प्रकाशन, पी-4, पिलंजी सरोजिनी नगर,
नई दिल्ली-110023
मूल्यः 400 रुपए


साभार :  रतन चन्‍द रत्‍नेश

सोमवार, नवंबर 15, 2010

भारत का हिंदी लघु कथा संसार

3 Reviews
लघुकथा वर्तमान में  साहित्य में एक सशक्त विधा के रूप में स्थापित है! आम पाठक की रूचि लघुकथाओ में बनी है ! लघु कथाओं को लेकर कई पुस्तके बाज़ार में आ रही है ! मुझे स्वयं लघुकथाओं में रूचि है तो इससे जुढ़ी पुस्तके पढ़ता रहता हू ! इस मध्य डा० राम कुमार घोटड  की पुस्तक भारत का हिंदी लघुकथा संसार आई है जिसमे १२ राज्यों के लघुकथा लेखन पर प्रकाश डाला गया है !  डॉ० घोटड एम् बी बी एस , एम् एस है और आज कल राजस्थान चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत है ! इस पुस्तक में राजस्थान  डा० राम कुमार घोटड, बिहार -सतीशराज पुष्करणा- रामयतन प्रसाद यादव  , मध्य प्रदेश -मालती बसंत  , हरियाणा - प्रो रूप देवगुण  , उत्तर प्रदेश - रामेश्वर कम्बोज हिमांशु , दिल्ली - हरनाम शर्मा , झारखण्ड-डा अमर नाथ चौधरी अब्ज , छतीसगढ़ -डा राजेंदर सोनी , हिमाचल प्रदेश- रतन चंद  रत्नेश  , पंजाब- श्याम सुन्दर अगरवाल , गुजरात- प्रो मुकेश रावल  और  महाराष्ट्र-  डा० राम कुमार घोटड ने इन  राज्यों में लघुकथा लेखन पर प्रकाश डाला  है ! इसके अलावा हिंदी लघुकथा के इतिहास पर महत्त्व पूर्ण आलेख है ! इस पुस्तक की विशेषता है की इसमे उन ४३ लोगो के नाम दिए गए है जिन्होंने हिंदी लघुकथाओ  पर पी एच डी और एम् फिल की उपाधि प्राप्त की है ! १६३ पृष्ठों  की यह पुस्तक पाठको  के लिए बेहद ही लाभप्रद है ! साहित्यागार , जयपुर द्वारा प्रकशित इस पुस्तक की छपाई सुन्दर है तथा मुद्रण में  गलतिया नहीं है !  पुस्तक प्राप्त करने वाले इच्छुक  डा० राम कुमार घोटड से सादलपुर ( राजगढ़ ), जिला चुरू राजस्थान ३३१०२३ फोन ०१५५९ २२४१०० निवास मोबाइल ०९४१४०८६८०० पर संपर्क कर सकते है !

शुक्रवार, सितंबर 10, 2010

हिमाचल मित्र का वर्षा अंक

3 Reviews



हिमाचल मित्र का वर्षा अंक मिला! जे पी सिघंल का आवरण बरबस मुखपृष्ठ को निहारने पर मज़बूर कर देता है! हिमाचल मित्र में प्रकाशित सामग्री पठनीय और संग्रहणीय होती है इसमें कोई दो राय नहीं है! कल्पना की उडान प्रभावित करती है साथ ही कोकस जी का लेख वसुदेव कुटम्बकम की याद दिला देता है! कैलाश आहलुवालिया जी संजोली शिमला महाविद्यालय में मेरे प्राध्यापक रहे है! उन्होने सदैव ही प्रोत्साहित किया है! अंक में प्रकाशित सभी को कहीं ना कहीं पढता रहा हूं! इसी दौरान एस आर हरनोट जी से लम्बे समय के बाद फ़ेस बुक पर सम्पर्क हो पाया यह हिमाचल मित्र का ही सहयोग है! हिमाचल मित्र ने कुछ करने के लिये प्रोत्साहित किया है अन्यथा मैं तो पिछले कई वर्षों से एकांत प्रिय हो गया था! मित्रों की रचनायें पढी तो उनके साथ की यादें ताज़ा हो आई! खैर..... हिमाचल मित्र को साधुवाद! और हां, अनुप जी मे्रा अंक देरी से मिलता है क्या कारण होगा? ज़रा मेरा ध्यान रखें! अगले अंक की प्रतीक्षा में..................... !

बुधवार, सितंबर 08, 2010

विश्‍वास तुम्‍हारा

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शहर मे जब हो
अराजकता
सुर‍क्षित ना हो आबरू
स्‍वतंत्र ना हो सासें
मोड़ पर खड़ी हो मौत
तो मैं कैसे करू विश्‍वास तुम्‍हारा,
बाहर से दिखते हो सुन्‍दर
रचते हो भीतर भीतर ही षड़यंत्र
ढूंढते रहते हो अवसर
किसी के कत्‍ल का
तो मैं कैसे विश्‍वास कंरू तुम्‍हारा,
तुम्‍हारा विश्‍वास नहीं कर सकता मैं
सांसों में तुम्‍हारी बसता है कोई और
तुम बादे करते हो किसी और से
दावा
करते हो तुम विश्‍वास का
परन्‍तु तुम में भरा  है अविश्‍वास,
माना विक्षिप्‍त हूं मैं
कंरू मैं कैसे विश्‍वास तुम्‍हारा
तुम और तुम्‍हारा शहर
नहीं है मेरे विश्‍वास का पात्र। 

शुक्रवार, मई 21, 2010

इसे मैं शीर्षक नहीं दे पाया

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(समीर जी के लेख "मैं कृष्ण होना चाहता हूं" से प्रेरित हो कर) 
छायाचित्र साभार: समीर जी के लेख से

हर एक में कहीं
भीतर ही होता है कृष्ण
और होता है
एक निरंतर महाभारत
भीतर ही भीतर,
क्यों ढूढते है हम सारथी
जब स्वयं में है कृष्ण,
मैं तुम और हम में बटा ये चक्रव्यूह
तोड़ता है भीतर का ही अर्जुन,
माटी है और सिर्फ माटी है
हर रोज यहां देखता हुं
मैं तुम और हम का कुरुक्षेत्र !!

शनिवार, अप्रैल 10, 2010

महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन की 107 वीं जयंति

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 हिमाचल साहित्यकार सहकार सभा ने आज 9 अप्रेल को महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन की 107 वीं जयंति पर बिलासपुर में साहित्यक सभा का आयोजन किया! तीन सत्रों मे आयोजित इस सभा में सांस्कृत्यायन के व्यकितत्व और कृतित्व पर विचार विमर्श हुआ तथा लेखक गोष्ठी, पत्र वाचन और कवि पाठ क आयोजन किया गया! आयोजन के मुख्यातिथि थे हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के सचिव प्रभात शर्मा और कार्यक्रम की अध्य्क्षता हिमाचल के व्योवृद्ध वरिष्ठ रचनाकार संत राम शर्मा ने की! इस अवसर पर बिलासपुर की ज़िला भाषा अधिकारी डा० अनिता शर्मा भी उपस्तिथ थी!
लेखक गोष्ठी में साहित्य्कात सभा के अध्यक्ष रतन चंद निर्झर ने राहुल सांस्कृत्यायन के हिमाचल पर लेखन पर विवेचना की और मन्डी के जगदीश कपूर ने  विवेचना पर अपने विचार व्यक्त किये!  आयोजन के दूसरे चरण में हिमाचल पत्रकार संघ के अध्यक्ष जय कुमार ने हिमाचल के साहित्य की प्रगति पर अपना पत्र वाचन किया!
तीसरे चरण में काव्य पाठ का आयोजन किया गया! इस सत्र में देहरादून के  तेज पाल नेगी, चण्डीगढ़ के रतन चंद रत्नेश, आलमपुर कांगडा़ के प्रीतम आलमपुरी, चम्बा के अशोक दर्द, हमीरपुए के नरेश राणा, सुंदरनगर के सुरेश सेन निशांत और पवन चॊहान, पद्दर मंडी के कृष्ण चंद महादेविया, मंडी के जगदीश कपूर, सोलन के प्रो० नरेन्द्र अरुण, बल्देव चॊहान ने काव्य पाठ किया जबकि बिलासपुर के  स्थानिय कवियों मेम अनुप मस्ताना, सुशील पुंडेर, रतन चंद निर्झर, प्रदीप गुप्ता, अरुण डोगरा रितु, रवि सांख्यायन, जगदीश जमथली, शक्ति उपाध्याय, राम लाल पुंडीर, कु० सुरभि शर्मा और स्वंत्रता सैनानी के० एल० दबड़ा ने काव्य पाठ किया!
इसी आयोजन में हिमाचल साहित्यकार सहकार सभा ने प्रतिवर्ष 9 अप्रेल को सांस्कृत्यायन जयंति पर साहित्यिक आयोअजन करने, और उनके सम्मान में साहित्यिक पुरस्कार शुरु करने और क्षेत्रिय स्तर पर हिमाचल साहित्यकार सहकार सभा के आयोजन करने  के निर्णय लइये गये ! सभा ने हिमाचल विधान सभा में पहाडी़ बोली के विकास के निर्णय पर खुशी जाहिर करते हुए सरकार का अभार व्यक्त किया गया!
सभा का निकट भविष्य में सहयोगी आधार पर काव्य और लघु कथा संकलन निकालने की योजना है! सभा का पता है
रतन चंद निर्झर, 
अध्यक्ष, हिमाचल साहित्यकार सहकार सभा,
मकान न० 210, रौड़ा सेक्टर 2,
बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश

फोटो साभार : जनोक्ति 

रविवार, दिसंबर 27, 2009

हिमाचल के सामान्य ज्ञान पर पुस्तक

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यूँ तो सामान्य ज्ञान पर बाज़ार में अनेक पुस्तकें आती रहती है ! परन्तु हिमाचल प्रदेश पर सामान्य ज्ञान पर किसी अच्छी पुस्तक की प्रतीक्षा रहती ही है ! डॉक्टर प्रमोद शर्मा जो हिमाचल प्रदेश विश्वविध्यालय में प्रोफ़ेसर के पद है ने हिमाचल के सामान्य ज्ञान पर एक अच्छी पुस्तक प्रस्तुत की है ! पुस्तक hका नामहै "An Encyclopedic Study of Himalayan Hill State HIMACHAL The Paradise of India" ६९२ पृष्ठ इस पुस्तक में हिमाचल प्रदेश की अनेक महत्वपूरण जानकारी समेटी गई है ! साथ ही कई दुर्लभ तस्वीरें भी इस पुस्तक की शोभ बड़ा रही है ये तस्वीरें प्राचीन हिमाचल के स्वरुप को प्रदर्शित करती है ! AlokParv Prakashan, Shahdara, Delhi 32 द्वारा प्रकशित ये पुस्तक मुद्रण की दृष्ठि से बेहतर पुस्तक है ! प्रश्नूत्तर पद्धति में प्रकाशित यह पुस्तक प्रतोयोगिताओं परीक्षा के लिए बहुमूल्य साबित हो सकती है ! पुस्तक आप प्रकाशक या डॉक्टर प्रमोद शर्मा से सम्पर्क कर प्राप्त कर सकते है ! पुस्तक विध्याधियों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है !

बुधवार, दिसंबर 16, 2009

हिमाचल मित्र का शरद अंक 2009

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हिमाचल मित्र का शरद अंक 2009 आज मिला! मुंबई से निकले वाली इस पत्रिका की रचनाएँ सदेव ही पाठकों को अपनी और खीच लेती है ! हिमाचल मित्र में हिमाचल से संबधित रचनाकारों की रचनाएँ तो पढने को मिलती ही हा साथ ही हिमाचली संस्कृति का अवलोकन भी हो पता है ! मुझे खास बात इस पत्रिका में जो अच्छी लगाती है वह है हिमाचली धाम का हर अंक में उलेख ! पाठक हिमाचल मित्र के साथ ही पहरी धाम का आनंद उठा सकते है !
साहित्य की हर विधा को हिमाचल मित्र में जगह मिलती है ! हिमाचल मित्र का हर अंक संग्रहणीय होता है !
शरद अंक में कुमार कृषण की कवितायेँ दी गई है वही रेखा से मधुकर भारती की बात चित भी है ये दोनों रचनाकार काव्य और कहानी के क्षेत्र के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर है ! अशोक जेरथ जेसे लेखक की रचना हिमाचल मित्र में होना उसे सार्थक कर देता है ! हिमाचल मित्र का उलेख अपने ब्लॉग पर मैं इसलिए कर रहा हूँ की यह पत्रिका साहित्य में रूचि रखने वाले लोगों को ज़रूर पसंद आयेगी ! पत्रिका के पीछे अनूप सेठी सहित उनकी टीम की मेहनत साफ झलकती है ! हिमाचल मित्र की अपनी वेबसईट भी  है जिसका पाठक लाभ उठा सकते हैं !  जबकि ईमेल पर भी पाठक अपनी रूचि हिमाचल मित्र को बता सकते है !
हिमाचल मित्र के फोन नम्बर्स है
09869244269  और 09820696684
हिमाचल मित्र का सम्पादकीय पता है
डी 46 / 16 साईं संगम,
सेक्टर 48 नेरुल
नवी मुंबई 400706

सोमवार, अगस्त 24, 2009

तलाश

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मन में अगर कुछ कर गुजरने की चाह हो तो रास्तें खुद ही निकल आते है ! मस्कुलर डिसट्राफी एक ऐसा रोग है जो व्यक्ति को लगभग नकारा कर देता है ! पिछले दिनों एक नवोदित रचनाकार प्रवीण कुमार अम्बडिया का काव्य संग्रह तलाश पढ़ने का मोका मिला ! हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिला के अम्बाडी गाँव में ३० जून १९७७ को जन्मे प्रवीण को दूसरी कक्षा में पढ़ते ही मस्कुलर डिसट्राफी ने अपंग कर दिया ! प्रवीण ने कुछ समय तो स्कुल में अध्ययन किया परन्तु आठवीं कक्षा के बाद प्रवीण को स्कुल छोड़ना पड़ा !
प्रवीण ने अपनी विकलागता को अपने जीवन में रूकावट नहीं बनने दिया ! साहित्य में रूचि ने कविता लेखन की तरफ अग्रसर किया ! प्रवीण अब तक लगभग ५०० कवितायेँ लिख चुका है ! तलाश में प्रवीण की करीब ३५ कवितायेँ है जिनमे से कुछ कविताये बरबस ही मन को
प्रभित करती है ! विकलागंता, खुशियाँ, मस्त पवन, जीने का इरादा, मैं हूँ नन्ही सी परी, हे माँ आदि प्रभावित करने वाली कवितायेँ है !
हिमाचल के सोलन स्तिथ इंडियन एसोसिअशन ऑफ़ मस्कुलर डिसट्राफी द्वारा प्रकशित प्रवीण के काव्य संग्रह का मूल्य ५० रुपये है ! यह सहयोग प्रवीण को मस्कुलर डिसट्राफी से लड़ने के प्रेरित करेगा ! मैं पाठकों के सुविधा के लिए एसोसिअशन का पता दे रहा हूँ जहाँ से अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है !
इंडियन एसोसिअशन ऑफ़ मस्कुलर डिसट्राफी
हॉस्पिटल रोड, सोलन १७३ २१२
फोन ०१७९२ २२३१८३ , ९८१६९ ०५११८

मंगलवार, जुलाई 14, 2009

लघुकथा : कलयुग

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काफी दिनों बाद इंदर से मुलाकात हुई तो पुराने मित्रों के बारे में बातचीत होने लगी ! मित्रों की सफलता और असफलता के किस्सों के बाद बाज़ार की तरफ़ निकले तो आवारा घुमते पशुओं की दशा पर चिंता हुई और उन पर दया आने लगी ! पशुओं की इस दशा पर मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया 'जब तक पशु काम का था तो खूब काम लिया और जब नकारा हो गया तो घर से बाहर निकालदिया !'
एकाएक इंदर बोल पड़ा अब वो दिन दूर नहीं जब घर के बूढों की भी नकारा होने पर घर से बाहर धकेल दिया जाएगा और आवारा घुमते दिखने पर कहा जाएगा, 'अरे यह तो फलां का बाप है !'
मुझे इंदर के चेहरे पर क्रोध के भाव साफ दिख रहे थे ! एक कटु सत्य मेरे सामने चुपचाप मुस्कुरा रहा था !
(12 जुलाई 2009 को दिव्य हिमाचल हमसफर परिशिष्ट में प्रकशित)

शुक्रवार, जून 19, 2009

आमंत्रण

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मेरे साहित्यक मित्र रत्तन चंद निर्झर और रत्तन चंद रतनेश के आग्रह पर यह सूचना पाठकों को दे रहा हूँ !

लघु कथा पर आधारित त्रेमासिक पत्रिका ओस के लिए मौलिक और अनुदित लघु कथाएँ आमंत्रित है ! अपनी लघुकथाएं इन पतों पर भिजवाएं

रतन चंद रतनेश
मकान संख्या 1859
सेक्टर 7 सी
चंडीगढ़

रतन चंद निर्झर
मकान संख्या 210
रोडा सेक्टर 2
बिलासपुर 174001 हिमाचल

शुक्रवार, मई 15, 2009

हिमाचल का लघु कथा संसार * रतन चन्द रतनेश

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रतन चंद रत्नेश जी के लेख हिमाचल का लघु कथा संसार को पुरा पढ़ने के बारे में मेरे कई मित्रों ने आग्रह किया ! पुरा लेख यहाँ देना मेरे लिए सम्भव नही है इसलिए मित्रों की सुविधा के लिए मैं गिरिराज साप्ताहिक का लिंक दे रहा हूँ मित्र बन्धु इसका लाभ उठाएंगे !
www.himachalpr.gov.in/Giriraj/May20091.pdf

सोमवार, मई 11, 2009

रत्नेश जी को

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गिरी राज के ६-१२ मई २००९ के अंक में हिमाचल का लघु कथा संसार लेख पढ़ा ! अच्छा लगा लेख सारगर्भित हैं इसमें कोई दो राए नहीं है ! रतनेश जी से मैं हलका सा नाराज़ हूँ क्योकि उन्होंने लेख में मुझे निष्क्रय लिखा है ! मैं यह मानता हूँ की मैं आजकल छाप नहीं रहा हूँ लेकिन मेरी लेखन यात्रा में विराम नहीं आया है ! मैं ईमानदारी से साहित्य सृजन तो कर ही रहा हूँ ! आज कल पात्र पत्रिकाओं में कोई भी रचना मैं भेज नहीं रहा हू ! शायद मेरी व्यस्तता इसमें आड़े आ रही है ! प्रशासनिक कार्यों के दृष्टिगत मेरे प्रकाशन में विराम सा तो आ गया हैं परन्तु मैं निष्क्रिय नहीं हुआ हूँ !
मुझे प्रसंता है की इतने वर्षों के बाद भी मेरे मित्रों ने मुझे याद रखा है ! मुझे रतनेश जी के साथ बिताये चंडीगढ़ में वो सभी लम्हे याद है ! वो सभी मेरी समृतियों की अनमोल धरोहर है !
रत्नेश जी के आलेख से मुझे पुनः रचनाये भेजने की प्रेरणा मिली है ! गिरिराज का भी धन्यवाद की उनके माध्यम से मुझे पुनः कुछ करने की प्रेरणा मिली है ! आशा हे की गिरी राज और हिमप्रस्थ मुझे भुला नहीं होगा ! पुनः आप सभी को साधुवाद
 
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