(समीर जी के लेख "मैं कृष्ण होना चाहता हूं" से प्रेरित हो कर)
छायाचित्र साभार: समीर जी के लेख से
हर एक में कहीं
भीतर ही होता है कृष्ण
और होता है
एक निरंतर महाभारत
भीतर ही भीतर,
क्यों ढूढते है हम सारथी
जब स्वयं में है कृष्ण,
मैं तुम और हम में बटा ये चक्रव्यूह
तोड़ता है भीतर का ही अर्जुन,
माटी है और सिर्फ माटी है
हर रोज यहां देखता हुं
मैं तुम और हम का कुरुक्षेत्र !!
छायाचित्र साभार: समीर जी के लेख से
हर एक में कहीं
भीतर ही होता है कृष्ण
और होता है
एक निरंतर महाभारत
भीतर ही भीतर,
क्यों ढूढते है हम सारथी
जब स्वयं में है कृष्ण,
मैं तुम और हम में बटा ये चक्रव्यूह
तोड़ता है भीतर का ही अर्जुन,
माटी है और सिर्फ माटी है
हर रोज यहां देखता हुं
मैं तुम और हम का कुरुक्षेत्र !!
10 Reviews:
Sundar Rachna...
बहुत सुन्दर रचना!
एकदम सच ! शीर्षक की ज़रुरत नहीं है ... आपने बखूबी अपनी बात कह दी ...
shaandaar abhivayakti!
sail ji ne sahi kaha...
kunwar ji,
अति-सुन्दर.
मुझे पसंद आई आपकी रचना.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
"अंतर्द्वंद"
जन साधारण का जीवन संघर्ष देखा दिए हैं आप... टाईटिल का जरूरते नहिं है.. जो जईसा देखेगा, वईसा उसको जिंदगी का रूप देखाई देगा.. बहुत बढिया..
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति का शीर्षक हो सकता है आधार।
जो भीतर है उसे बाहर खोजने की प्रवृति पुरातन काल से हम में है.
कस्तूरी मृग का उदाहरण हमारे सामने है .
बहुत सुन्दर कविता जो शीर्षक की मोहताज नहीं.
आपके ब्लोग पर आ कर अच्छा लगा! ब्लोगिंग के विशाल परिवार में आपका स्वागत है! आप हिमाचल प्रदेश से सम्बधित है इसलिये हम आपको बताना चाहेगे कि हिमधारा ब्लोग हिमाचल प्रदेश के शौकिया ब्लोगर्स का एक प्रयास है ! आप इससे जुड़ कर अपना रचनात्मक सहयोग दे सकते है ! आपसे आग्रह है की हिमाचल के अन्य शौकिया ब्लोगर्स के ब्लॉग के पतें हमें ईमेल करें या आप उनका पता पंजिकृत करवा दें ताकि उनकी फीड हिमधारा में शामिल हो सके और स्तरीय रचनाओं की जानकारी पाठकों को मिल सके ! हिमधारा में प्रकाशित रचनाओं पर अपने विचार और सुझाव ज़रुर दें आपके विचार जहां रचना के लेखक को प्रोत्साहित करेंगे वहीं हिमधारा को और निखारने में भी हमें मदद देंगे! आप हिमधारा के दो और प्रयास (संकल्क)हिमधारा और टिप्स भी देखें और अपना सुझाव दें! आप अपना ब्लोग अन्य हिन्दी ब्लोग संकल्कों ब्लोगवाणी , चिठ्ठाजगत, INDIBLOGGER,
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हैप्पी ब्लोगिंग!
सहयोग की आशा सहित
सम्पादक हिमधारा
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