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बुधवार, अक्तूबर 04, 2023

सच्‍ची दूकान

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हर रोज़ ही उस दूकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। भीड़ हो भी क्यों न? जो सामान कहीं अन्य दूकान पर ना मिले तो उस दूकान पर सस्ता और हमेशा उपलब्ध हो जाता था। यही कारण था कि उस दूकान पर हमेशा भीड़ उमड़ी रहती थी। दूकान का नाम भी आकर्षित करता था सच्ची दूकान ।

हर वर्ष उस दूकान का मालिक सभी के लिए भंडारे का आयोजन भी करता और खूब दान आदि भी देता। लोग कहते थे कि ईश्वर की उस पर विशेष कृपा है। 

कृपा के साथ साथ उसकी समृद्धि की चर्चा अक्सर लोग करते रहते थे। गाहे बगाहे ये चर्चाएं मुझ तक भी पहुंचती रहती थी। इतनी चर्चा और प्रसिद्धि के बावज़ूद कभी उस दूकान से सामान लेने का अवसर नहीं मिला।

रविवार का दिन वैसे तो आराम का दिन होता है। रसोई का कुछ सामान समाप्त हो गया था। सूची लम्बी बन गई थी। सोचा उसी दूकान का लाभ उठाया जाए। परिचय भी हो जायेगा।

सामान की सूची दूकानदार को दी। सामान पैक हुआ और वापस हो लिया। घर आ कर सामान खोलने लगा तो एक पैकेट पर बेस्ट बिफोर डेट पर पढ़ी।  डेट खत्म हो चुकी थी। पूरा सामान चेक किया तो तीन सामान की डेट एकस्पायरी निकली। ऐसी षिकायत अन्य ग्राहकों से भी सुनने को मिली थी। लोग तो कहते थे कि पूरा साल एकस्पायरी बेचते रहो और साल में भण्डारा और दान दिया करो। पाप कट जाते है। उस दूकान के सस्ते सामान और ईश्वर कृपा का गणित धीरे धीरे मेरी समझ में आ रहा था।


शुक्रवार, जून 02, 2023

सोलन का शूलिनी मेला

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हिमाचल को प्राचीन काल से ही देव भूमि के नाम से संबोधित किया गया है। यदि हम ये कहें कि हिमाचल देवी देवताओं का निवास स्थान रहा है । हमारे कई धर्म ग्रन्थों में भी हमे हिमाचल का विवरण मिलता है। महाभारत 
,पदमपुराण और कनिंघम जैसे धर्म ग्रन्थों में हमे हिमाचल का विवरण मिलता है। इस सब से हम ये अनुमान लगा सकते है कि हिमाचल प्राचीन काल से ही देवी देवताओं का प्रिय स्थान रहा है ।

हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में सोलन  एक महत्‍वपूर्ण जिला है। सोलन  जिला मुख्यालय है । सोलन  राज्य की राजधानी शिमला से लगभग 47  किलोमीटर और  5,090 फीट की औसत ऊंचाई पर स्थित है।  कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग-22 पर  स्थित है । नैरो-गेज कालका-शिमला रेलवे सोलन से होकर गुजरती है। पंजाब हिमाचल सीमा पर स्थितसोलन हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में बसा है ।

सोलन  का नाम देवी शूलिनी देवी के नाम पर रखा गया है । हर साल जून में  3 दिवसीय  शूलिनी मेला आयोजित किया जाता है। सोलन तत्कालीन रियासत  बघाट की राजधानी थी । 

सोलन को मशरूम शहर  रूप में जाना जाता है क्योंकि  मशरूम की खेती के साथ-साथ चंबाघाट में  मशरूम अनुसंधान निदेशालय भी है। टमाटर के थोक उत्पादन के कारण सोलन को लाल सोने का शहर भी कहा जाता है। 

सोलन में कई प्राचीन मंदिर  हैं। देश की सबसे पुरानी ब्रुअरीज  मोहन मैकिन भी सोलन में  है। धारों की धार  पहाड़ी पर 300 साल पुराना किला भी है। शूलिनी माता मंदिर और जटोली शिव मंदिर पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्थान हैं। कालाघाट ओच्‍छघाट में तिब्‍बती  मठ इस क्षेत्र के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है।


मां शूलिनी मेला लगभग 200 साल से मनाया जा रहा है।  इस मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हैं।  यह मेला हर साल जून माह में मनाया जाता है। इस दौरान मां शूलिनी शहर के भ्रमण पर निकलती हैं व वापसी में अपनी बहन के पास दो दिन के लिए ठहरती हैं। इसके बाद अपने मंदिर स्थान पर वापस पहुंचती हैंइसलिए इस मेले का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि माता शूलिनी सात बहनों में से एक थी। अन्य बहनें हिंगलाज देवीजेठी ज्वाला जीलुगासना देवीनैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं। सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी। इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल लगभग 30  वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी कुछ समय कोटी और बाद में सोलन बनी। राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे।

माँ शूलिनी देवी दुर्गा या पार्वती का प्रमुख रूप है। उन्हें देवी और शक्तिशूलिनी दुर्गाशिवानी और सलोनी के नाम से भी जाना जाता है। माँ शूलिनी भगवान शिव की शक्ति हैं।

भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंहउपद्रवी असुर राजा हिरण्यकश्यप को मारने के बाद अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सके। नरसिंह पूरे ब्रह्मांड के लिए खतरा बन रहे थे तब भगवान शिवनरसिंह को शांत करने के लिए शरभ के रूप में प्रकट हुए। शरभ एक आठ पैरों वाला जानवर थाजो शेर या हाथी से अधिक शक्तिशाली था और सिंह को शांत करने में सक्षम भी था। नरसिंह को शांत करने के लिए भगवान शिव के आशीर्वाद से शूलिनी भी प्रकट हुई थीं। माँ शूलिनी सोलन के लोगों की कुल देवी हैं। प्रदेश में मनाए जाने वाले पारंपरिक एवं प्रसिद्ध मेलों में माता शूलिनी मेला का भी प्रमुख स्थान है। बदलते परिवेश के बावजूद यह मेला अपनी प्राचीन परंपरा को संजोए हुए है।

मान्यता है कि माता शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता हैबल्कि सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। मेले की यह परंपरा आज भी कायम है। कालांतर में यह मेला केवल एक दिन ही अर्थात् आषाढ़ मास के दूसरे रविवार को शूलिनी माता के मंदिर के समीप खेतों में मनाया जाता था। सोलन जिला के अस्तित्व में आने के पश्चात् इसका सांस्कृतिक महत्व बनाए रखने तथा इसे और आकर्षक बनाने के अलावा पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तरीय मेले का दर्जा प्रदान किया गया और तीन दिवसीय उत्सव का दर्जा प्रदान किया गया है। वर्तमान समय में यह मेला जहां जनमानस की भावनाओं  से जुड़ा हैवहीं पर विशेषकर ग्रामीण लोगों को मेले में आपसी मिलने-जुलने का अवसर मिलता है जिससे लोगों में आपसी भाईचारा तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता की भावना पैदा होती है।



 

 


बुधवार, मई 17, 2023

अंतरराष्‍ट्रीय संग्रहालय दिवस

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 संग्रहालय  जगह होती है, जहां पर संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक महत्व रखने वाली अतीत की स्मृतियों के अवशेषों और कलाकृतियों को सु‍रक्षित रखा जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ी को पुरानी संस्‍कृति से जोड़ा जा सके. इसके लिए भारत समेत दुनियाभर में तमाम म्‍यूजियम बनाए गए हैं. इन संग्रहालय की महत्‍ता को समझाने के लिए हर साल 18 मई को अंतरराष्‍ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जाता है

देश का सबसे बड़ा म्‍यूजियम कोलकाता में है. इस संग्रहालय को भारतीय संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. भारतीय संग्रहालय का पुराना नाम इंपीरियल म्यूजियम था, बाद में बदलकर इंडियन म्यूजियम कर दिया गया. जवाहरलाल स्ट्रीट पर स्थित इस म्‍यूजियम को छह खंडों में बनाया गया है.

इस म्‍यूजियम की स्‍थापना अंग्रेजों के समय में सन 1814 ई. में की गई थी. भारत की विरासत की रक्षा के लिए इसकी  स्थापना एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल ने की थी और इसे नेथेलिन वैलीच की देख-रेख में बनाया गया था. विलियम जॉन्स ने इस संग्रहालय को बनवाने में अहम योगदान दिया था. इस म्‍यूजियम के बाद ही भारत में तमाम संग्रहालय बनने शुरू हुए.

इस संग्रहालय को छह खंडों आर्कियोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी, जियोलॉजी, जूलॉजी, इंडस्ट्री और आर्ट में बनाया गया है. एंथ्रोपोलॉजी सेक्‍शन में आप मोहनजोदड़ो और हड़प्पा काल की निशानियां देख सकते हैं. यहां चार हजार साल पुरानी मिस्र की ममी भी रखी है.

हिमाचल का राज्‍य संग्रहालय शिमला में एक पुरानी विक्टोरियन हेवली में बनाया गया है। यह हवेली कभी लॉर्ड विलियम बेरेस्फोर्ड का निवास स्थान हुआ करती थी, जो वायसराय लॉर्ड विलियम बेनटिक के सैन्य सचिव थे। ब्रिटिश साम्राज्य के चले जाने के बाद यह इमारत भारत के सरकारी अधिकारियों के निवास स्थान के रूप में इस्तेमाल की जाने लगी। 26 जनवरी 1974 को इस इमारत में शिमला स्टेट म्यूजिम का उद्घाटन हुआ। 

अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की स्थापना 1977 में मॉस्को, रूस में ICOM महासभा के दौरान की गई थी। अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम दिवस18 मई को सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच आपसी समझ, सहयोग और शांति के विकास के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में मनाने के लिए किया गया।


विवरण सभार 

तस्वीर

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 ज़िन्दगी

तुम खीचना तस्वीरें

अपने कैमरे से ऐसी,

ना दिखे

दर्द वेदना विरह जिसमें।

शनिवार, मई 13, 2023

शहर

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 शहर 

तुम 

कितना बदल गए हो

तुम 

अक्सर 

मुझे पहचानते ही नहीं

और 

निकल जाते जो 

बेपरवाह

एक

 अजनबी की तरह

 
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