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शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010

किंकरी देवी की पुण्‍य तिथि

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आज 31 दिसम्‍बर है । आज प्रसिद्ध पर्यावरणविद किंकरी देवी की पुण्‍य तिथि है। आज ही के दिन 2007 को उनका स्‍वर्गवास हुआ था। किंकरी देवी ने सिरमौर में  खदान माफिया  के खिलाफ आवाज  उठाई थी । उन्‍हे 2001 में रानी झांसी राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। सिरमौर के संगड़ाह में उच्‍च शिक्षा के लिए उन्‍होने 2002 में  आवाज उठाई और संगड़ाह में 2005 में महाविद्यालय स्‍थापित हुआ।

रविवार, नवंबर 14, 2010

जवाहर लाल नेहरू

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आज बाल दिवस है सभी विद्यार्थियों को उज्‍जवल भविष्‍य के लिए अनेकानेक मंगलकामनायें। बाल दिवस जवाहर लाल नेहरू के जन्‍म दिवस के रूप में मनाया जाता है । प्रस्‍तुत है नेहरू जी का जीवन परिचय ।
                           जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में एक धनाढ्य वकील मोतीलाल नेहरू के घर हुआ था। उनकी माँ का नाम स्वरूप रानी नेहरू था। वह मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे। इनके अलावा मोती लाल नेहरू को तीन पुत्रियां थीं। नेहरू कश्मीरी वंश के सारस्वत ब्राह्मण थे। जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से, और कॉलेज की शि़क्षा ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। इंग्लैंड में उन्होंने सात साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए एक तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया। जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई। 1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रूल लीग में शामिल हो गए। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए। उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। नेहरू, महात्मा गांधी के सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए। गांधी ने भी युवा जवाहरलाल नेहरू में भारत का भविष्य देखा और उन्हें आगे बढने के लिए प्रेरित किया। नेहरू ने महात्मा गांधी के उपदेशों के अनुसार अपने परिवार को भी ढाल लिया। जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपडों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया। वे अब एक खादी कुर्ता और गाँधी टोपी पहनने लगे। जवाहर लाल नेहरू ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया और इस दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए। कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। जवाहरलाल नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो वर्ष तक सेवा की। यह उनके लिए एक मूल्यवान प्रशासनिक अनुभव था जो उन्हें तब काम आया जब वह देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकाल का इस्तेमाल सार्वजनिक शिक्षा के विस्तार, स्वास्थ्य की देखभाल और स्वच्छता के लिए किया। 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग की कमी का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया.
1926 से 1928 तक, जवाहर लाल ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में सेवा की। 1928-29 में, कांग्रेस के वार्षिक सत्र का आयोजन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया। उस सत्र में जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया, जबकि मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य का दर्जा पाने की मांग का समर्थन किया। मुद्दे को हल करने के लिए, गांधी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि ब्रिटेन को भारत के राज्य का दर्जा देने के लिए दो साल का समय दिया जाएगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए एक राष्ट्रीय संघर्ष शुरू करेगी। नेहरू और बोस ने मांग की कि इस समय को कम कर के एक साल कर दिया जाए। ब्रिटिश सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें भारत की स्वतंत्रता की मांग की गई। 26 जनवरी, 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। गांधी जी ने भी 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया। आंदोलन खासा सफल रहा और इसने ब्रिटिश सरकार को प्रमुख राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया ! जब ब्रिटिश सरकार ने भारत अधिनियम 1935 प्रख्यापित किया तब कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। नेहरू चुनाव के बाहर रहे लेकिन ज़ोरों के साथ पार्टी के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। कांग्रेस ने लगभग हर प्रांत में सरकारों का गठन किया और केन्द्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए 1936, 1937 और 1946 में चुने गए थे, और राष्ट्रवादी आंदोलन में गांधी के बाद द्वितीय स्थान हासिल किया। उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 1945 में छोड दिया गया। 1947 में भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय उन्होंने अंग्रेजी सरकार के साथ हुई वार्ताओं में महत्वपूर्ण भागीदारी की। 1947 में वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। अंग्रेजों ने करीब 500 देशी रियासतों को एक साथ स्वतंत्र किया था और उस वक्त सबसे बडी चुनौती थी उन्हें एक झंडे के नीचे लाना। उन्होंने भारत के पुनर्गठन के रास्ते में उभरी हर चुनौती का समझदारी पूर्वक सामना किया। जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. उन्होंने योजना आयोग का गठन किया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और तीन लगातार पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरु हुआ। नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई। जवाहर लाल नेहरू ने जोसेफ ब्रॉज टीटो और अब्दुल गमाल नासिर के साथ मिलकर एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद के खात्मे के लिए एक निर्गुट आंदोलन की रचना की। वह कोरियाई युद्ध का अंत करने, स्वेज नहर विवाद सुलझाने, और कांगो समझौते को मूर्तरूप देने जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ की भूमिका में रहे। पश्चिम बर्लिन, ऑस्ट्रिया, और लाओस के जैसे कई अन्य विस्फोटक मुद्दों के समाधान में पर्दे के पीछे रह कर भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्हें वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। लेकिन नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए। पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुँचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए। नेहरू ने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढाया, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था और शायद उनकी मौत भी इसी कारण हुई। 27 मई, 1964 को जवाहरलाल नेहरू को दिल का दौरा पडा जिसमें उनकी मृत्यु हो गई.



शनिवार, अक्तूबर 02, 2010

महात्‍मा गांधी की जयंति

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आज 2 अक्‍तूबर है और आज गांधी जी की जयंति है।
महात्‍मा गांधी को उनकी जयंति पर श्रधांजलि। 

"Truth alone will endure, all the rest will be swept away before the tide of time. I must continue to bear testimony to truth even if I am forsaken by all. Mine may today be a voice in the wilderness, but it will be heard when all other voices are silenced, if it is the voice of Truth."- Mahatama Gandhi



2 October 1869 – 30 January 1948)

रविवार, मई 02, 2010

हिमाचल निर्माता डा0 यशवंत सिंह परमार

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आज हिमाचल निर्माता डा0 यशवंत सिंह परमार की पुण्य तिथि है! हिमाचल प्रदेश को अस्तित्व लाने और विकास की आधा्रशिला रखने में डा0 यशवंत सिंह परमार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लगभग 3 दशकों तक कुशल प्रशासक के रुप में जन जन की भावनाओं संवेदनाओं को समझते हुए उन्होने प्रगति पथ पर अग्रसर होते हुए हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए नई दिशाएं प्रस्तुत की। उनका सारा जीवन प्रदेश की जनता के लिए समर्पित रहा वे उम्र भर गरीबों और जरुरतमंदों की सहायता करते रहे। सिरमौर जिला के चनालग गांव में 4 अगस्त 1906 को जन्मे डा0 परमार का जीवन संघर्षशिल व्यक्ति का जीवन रहा । उन्होने 1928 में बी0ए0 आनर्स किया  लखनउ से एम०ए० और एल०एल०बी०  तथा 1944 में समाज शास्त्र में पी एच डी की।  1929-30 में वे थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य रहे । उन्होने  सिरमौर रियासत में 11 वर्षों तक सब जज और मैजिसट्रेट (1930- 37)  के बाद जिला और सत्र न्यायधीश (1937 -41) के रुप में अपनी सेवाए दी।  वे नौकरी की परवाह ना करते हुए सुकेत सत्याग्रह प्रजामण्डल से जुड़े! उनके ही प्रयासों से यह सत्याग्रह सफल हुआ।  1943 से 46 तक वे सिरमौर एसोसियेशन के सचिव, 1946 से 47 तक हिमाचल हिल स्टेट कांउसिल के प्रधान, 1947 से 48 तक सदस्य आल इन्डिया पीपुलस कान्फ्रेस  तथा प्रधान प्रजामण्डल सिरमौर संचालक सुकेत आन्दोलन से जुड़े रहे। डा0 परमार के प्रयासों से ही 15 अप्रेल 1948 को 30 सियासतों के विलय के बाद हिमाचल प्रदेश बन पाया और 25 जनवरी 1971 को इस प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला।
1948 से 52 सदस्य सचिव हिमाचल प्रदेश चीफ एडवाजरी काउंसिल, 1948 से 64 अध्यक्ष हिमाचल कांग्रेस कमेटी,  1952 से 56 मुख्य मंत्री हिमाचल प्रदेश, 1957 सांसद बने और 1963 से 24 जनवरी 1977 तक हिमाचल के मुख्य मंत्री पद पर कार्य करते रहे किया!डा0 परमार ने पालियेन्डरी इन द हिमालयाज, हिमाचल पालियेन्डरी इटस शेप एण्ड स्टेटस, हिमाचल प्रदेश केस फार स्टेटहुड और हिमाचल प्रदे्श एरिया एण्ड लेगुएजिज नामक शोध आधारित पुस्तके भी लिखी। डा0 परमार  की सादगी और प्रदे्श के प्रति इमानदारी इसी बात से पता चलती है कि 17 वर्षों तक मुख्यमन्त्री पद पर कार्य करने के बावजूद मरणोपरान्त उनके बैंक खाते में मात्र 563 रुपये थे। डा0 परमार 2 मई 1981 को स्वर्ग सिधार गए। आज उनकी पुण्य तिथि पर हम हिमाचल वासी उन्हे उनके योगदान के लिए याद कर रहे है।

बुधवार, दिसंबर 30, 2009

किंकरी देवी की पुण्य तिथि

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हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण की प्रणेता किंकरी देवी की आज पुण्य तिथि है ! प्रदेश के सिरमौर जिला के दूर दराज़ गाँव घान्टो  संगडाह में चार जुलाई उनीस सौ चालीस को जन्मी किंकरी देवी ने सिरमौर जिले गिरिपार क्षेत्र के खदानों में अवैज्ञानिक और अवैध ढंग से हो रही के विरुद्ध आवाज़ उठा  कर पर्यावरण के प्रति लोगो को जागरूक किया ! 1985  में महिलाओं और स्याम सेवी सस्थाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई आरंभ की और आखिरी साँस तक इसे जारी रखा ! किंकरी देवी का जीवन घोर आभाव और गरीबी में बीता ! विरोध प्रदर्शन भूख हड़ताल ज्ञापनों के माधयम से किंकरी देवी ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को तो जागरूक किया ही साथ ही खनन माफियाओं को खुली चुनोती  दी !  1987  में दायर जनहित याचिका पर दिसम्बर 1991  में न्यायालय ने पक्ष में फैसला सुनाया था और 60  के लगभग खाने बंद हुई थी ! इस लड़ाई के खर्च के दौरान किंकरी देवी को ओना मंगलसूत्र तक बेचना पड़ा था ! 1998  में चीन के बीजिग में पांचवे विश्व महिला समेलन का सुभारम्भ करने वाली किंकरी देवी को 2001  में प्रधानमंत्री द्वारा स्त्री शक्ति राष्ट्रिय पुरस्कार  और रानी झाँसी उपाधि से समान्नित भी किया गया ! दिसम्बर 2007  में गंभीर बीमार होने पर किंकरी देवी को इलाज के लिए पीजीआई चंडीगड़ में  भर्ती  करवाया गया जहाँ उनका 30  दिसम्बर 2007  को निधन हो गया !
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गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

राज ........ पिछले जन्म का

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राज पिछले जन्म का ! सेट्टेलाईट चेनल पर  इस कार्यक्रम  को काफी पसंद किया जा रहा ! हमारे देनिक जीवन में भी कई ऐसे उदहारण मिल जाते है जो हमें हैरान कर देते है ! गत दिनों चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले अखवार अमर उजाला (२२ दिसंबर २००९ ) में अजय झंवर की कासगंज से रिपोर्ट छपी की कासगंज के अमरपुर गाँव के एक किशोर ने पांच बार के पूर्व जन्म की कहानी परिवार को बताई जिसने सभी को हैरान कर दिया ! उस किशोर के अनुसार उसका पहला जन्म 1984  में रामबेटी के घर हुआ और किसी संतानहीन महिला ने जहरीले बताशे से उसकी हत्या की उसका दूसरा जन्म मक्खी का और तीसरा जन्म बर्र चौथा जन्म सांप का था ! हैरानी वाली बात है की अपने पांचवे जन्म में उस किशोर की मौत ढाई तीन साल की उम्र में बताशा खा कर ही हुई ! सर्प योनी में भी उसकी मौत उसकी दादी द्वारा उसी घर में हुई ! 1993  में पांचवा जन्म भी उसी घर में लिया ! इस दौरान उसकी पूर्व जन्म की बातें सुन कर पूरा  परिवार हैरान हो गया जो सत्य थे ! 16 वर्ष की उम्र में उसकी एक सड़क दुर्घटना में  पुन: मौत  हो गई ! वह अपना पांचवा जन्म भी पूरा नहीं जी पाया ! उसकी मां रामबेटी ने उसके बताशे का डर होना पांचवे जन्म में भी बताया !  अब इस कहानी को  क्या कहा जाये  और किस संज्ञा से परिभाषित किया जाये ?

बुधवार, अक्तूबर 14, 2009

रुमाल

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रुमाल आज हमारी एक खास ज़रूरत बन चुका है ! नाक हाथ या अपना पसीना साफ करने के लिए लोग इसका प्रयोग करते है ! यह बात बहुत कम लोग जानते है की रुमाल का प्रचालन कब और कहाँ हुआ ?  रुमाल बनाने का विचार सबसे पहले इंग्लेंड के रजा  रिचर्ड दो को सूझा उसने फ्रांस के राजा की बेटी से शादी की ! राजा बनाने के बाद रिचर्ड ने महसूस किया की उसके हाथ साफ़ करने और नाक पोंछने के लिए जो तोलिया काम में लिया जाता है वो बहुत ही वजन दार होता है ! तब उसने हुकुम दिया की सुन्दर रंगीन कपडों के छोट्टे छोट्टे टुकडे काट कर हाथ और नाक साफ करने के लिए तैयार किये जाये ! बस कपडे के छोटे टुकडे आगे चल कर रुमाल के रूप में प्रसिद्ध हुए ! अब जीवन में रुमाल एक महत्वपूरण  हिस्सा और सभ्यता की निशानी बन चुके है !  हिमाचल प्रदेश में चम्बा का रुमाल संसार में काफी प्रसिद्ध है !

मंगलवार, अक्तूबर 13, 2009

सितार का अविष्कार

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संगीत के संसार में सितार का अविष्कार 13 वीं शताब्दी में आमिर खुसरो ने किया ! शुरुआत में सितार के लिए फारसी शब्द सह तार का इस्तेमाल हुआ था जिसका अर्थ है तीन तार !

मंगलवार, अगस्त 04, 2009

मलाणा गाँव एक बार फिर चर्चा में

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हिमाचल प्रदेश का मलाणा गाँव एक बार फिर चर्चा में है ! कुल्लू जिला में 8600 फ़ुट की ऊंचाई पर स्थित इस गाँव को अब विश्व विजेता सिकंदर के साथ जोड़ा जा रहा है ! इससे पूर्व मलाणा गाँव दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र के रूप में सामने आया था जहाँ उनका अपना ही कानून है ! देव संसद के निर्देश में ही सरे निर्णय किये जाते है और इस संसद में पॉँच सदस्य होते है जिनमें तीन साथी और शेष का चयन किया जाता है ! मलाणा गाँव की यह परम्परा सदियों से चली रही है जिसे मलाणा के लोग बखूबी निभा रहे है !

पिछले दिनों टीवी चेनलों और समाचार पत्रों में मलाणा में सिकंदर के वंशजों की खोज के समाचार चर्चा के विषय रहे ! स्वीडन ने मलाणा में सिकंदर की वंशावली को जानने के लिए एक परियोजना हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के जन जातीय अध्ययन विभाग को दिया है ! 356 -323 ईसा पूर्व विश्व विजयी बनाने निकला सिकंदर का मलाणा से क्या रिश्ता रहा होगा यह अब शोध का विषय बन गया है ! 326 ईसा पूर्व व्यास नदी के तट पर पोरस को हरा कर सिकंदर आगे बढ़ गया था ! पोरस को तो सिकंदर को उसका राज्य लोटा दिया था परन्तु साथ ही कई विद्वान् और ब्राहमणों को अपने साथ ले गया था ! वेसे देखा जाये तो मलाणा की स्थानीय बोली काफी अलग है ! बोली में कई शब्द यूरोपीय भाषा में आज भी प्रयुक्त होते है ! स्वीडन की उपासला विश्वविद्यालय की इस परियोजना में इसे प्रचलित लगभग 600 शब्दों की सूचि तैयार की गई है जो मलाणा के लोगों और सिकंदर के वंशजों के संबंधों के बारे में पता लगाने में सहायक होगी ! मत्वपूर्ण है की मलाणा में प्रयुक्त होने वाली बोली हिमाचल प्रदेश के किसी अन्य क्षेत्र में नहीं बोली जाती ! शोध का करण है की यहाँ के लोगों के चेहरे आँखों बालों आदि की बनावट के साथ कई समानताएं सिकंदर के वंशजों से मिलती है !

खैर..... मलाणा गाँव अपनी अलग परम्परों के कारण तो आकर्षण का विषय था ही अब मलाणा के लोगो का सिकंदर के वंशजों से सम्बन्ध शोध का विषय बन गया है !

रविवार, जुलाई 26, 2009

कारगिल के शहीदों को नमन

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कारगिल युद्घ प्रदेश के लोगो लिए मात्र एक युद्घ ना हो कर ऐसी विजय गाथा है जिसे 52 वीर योधाओं ने अपने प्राणों की आहुति दे कर लिखा ! इन शहीदों की कुर्बानी के आलावा हमारे अनेक वीर जवानों ने जो अभूतपूर्व सहस दिखाया उसे सुन कर आज हम गौरवान्वित होते है ! इन शेर दिल जवानों के कारण ही 25 जुलाई 1999 को हमने एक इतिहास की रचना की ! यह पल अमर शहीदों को श्रधांजलि अर्पित करने और उनके बलिदान पर अभिमान करने का है क्योंकि जब हिमाचल के वीर जवान सीमा पर नज़र रखते है तो दुश्मन भीतर तक हिल जाता है ! कारगिल के योधाओं में पालमपुर के विक्रम बतरा धरमशाला के सौरभ कालिया प्रमुख है! शिमला जिला से जिन जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी उनमे यशवंत सिंह, नरेश कुमार , अनत राम, प्रमुख है जबकि राजीव कुमार ने अपनी टांगे खोई ! सोलन से दो वीर जवानों धरमेंदर और प्रदीप कुमार ने युद्घ क्षेत्र में अपनी बहादुरी से दुशमनों के दांत खट्टे किये !मंडी जिला के सरवन कुमार, राजेश चौहान नरेश कुमार गुरदास, श्याम लाल, जगदीश, टेक चंद, दीपक गुलेरिया , हिरा सिंह, खेम चंद राणा, पूरण चंद, किशन चंद, ने वीरता दिखाई ! सिरमौर जिला के नाहन से कुलविंदर सिंह , कुल्लू जिला से डोला राम हमीरपुर से कश्मीर सिंह, राज कुमार, दिनेश कुमार, दीप चंद, स्वामी दास चंदेल, राकेश कुमार, प्रवीण कुमार, सुनील ने अपनी अभूतपूर्व वीरता का प्रदर्शन कर प्राणों की आहुति दी ! आज विजय दिवस के अवसर पर सभी भारतीय सैनिकों को अनेकानेक नमन !

शुक्रवार, जुलाई 24, 2009

धैर्य

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सरदार वल्लभभाई पटेल से हम सभी परिचित हैं। देश की आजादी की लड़ाई और उसके बाद यहां की अलग-अलग रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने को लेकर उनके अमूल्य योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनके जीवन से जुड़ा एक किस्सा है। सरदार पटेल फौजदारी के वकील थे। उनका सिद्धांत था कि निर्दोष अभियुक्त को हर कीमत पर बचाया जाए। वे कोई भी केस हाथ में लेने से पहले उसका सूक्ष्म अध्ययन करते। जब उन्हें पूरा विश्वास हो जाता कि अभियुक्त निर्दोष है, तभी वे उसका मुकदमा लड़ने को तैयार होते। एक बार वे किसी फौजदारी केस की पैरवी कर रहे थे। मामला संगीन था। तनिक भी असावधानी से अभियुक्त को फांसी हो सकती थी। उसी समय किसी व्यक्ति ने उनके नाम का तार लाकर उनके हाथों में थमा दिया। उन्होंने जल्दी से तार पढ़ा और जेब में रखकर पुन: पैरवी करने लगे। अदालत का वक्त खत्म होने के बाद वे हड़बड़ी में बाहर निकले। यह देख उनके एक साथी वकील ने उद्विग्नता का कारण जानना चाहा। सरदार पटेल बोले - मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है। तार उसी बारे में था। साथी वकील बोला - कमाल है! इतना बड़ा हादसा हो गया और आप बहस करते रहे। तब पटेल बोले - मेरी पत्नी तो जा ही चुकी थी। क्या उसके पीछे उस निर्दोष अभियुक्त को भी फांसी पर चढ़ने के लिए छोड़ देता? सरदार पटेल की यह कत्र्तव्यनिष्ठा संकेत करती है कि बड़े से बड़े संकट में भी व्यक्ति को अपने कत्र्तव्य पालन से पीछे नहीं हटना चाहिए। कत्र्तव्यशीलता धैर्य को जन्म देती है और यही धैर्य विपत्तियों से लड़ने का साहस देता है।


शनिवार, जुलाई 11, 2009

शहीद सतीश वर्मा

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बडागांव के सतीश वर्मा ने एक छोटी से आयु में स्थानीय विद्यालय और अन्य युवाओं को राष्ट्र सेवा का सन्देश दिया !21 अप्रेल 1972 को पिता करम चंद और माता अमलू देवी के घर जन्मे सतीश वर्मा ने राजकीय वरिष्ठ माद्यमिक पाठशाला बडागांव से मार्च 1988 में दसवी की परीक्षा पास की और द्वितीय बटालियन डोगरा रेजिमेंट में भारती हुए ! साहसिक कामों के परिणाम स्वरुप सतीश वर्मा को अनेक प्रन्संसा पात्र दिए गए ! 1991 से 93 में इन्होने जालंधर के सी ऐ आपरेशन के दौरान काकड़ सेक्टर में दुश्मनों का जम कर सामना किया और कारगिल की ऊँची चोटी ओ पी हिल पर कब्जा करने के दौरान सुरक्षा में महत्वपूरण भूमिका निभाई ! ओपरेशन के समय वे राजस्थान में तेनात थे ! इसके बाद जून 2001 में इन्हें मश्कोह घाटी कारगिल भेजा गया जहाँ सतीश वर्मा को सिपाही से लांस नायक की पदौनती दी गई ! 11 जुलाई 2001 को द्वितीय बटालियन डोगरा रेजिमेंट के सी आई ओपरेशन के समय गुरेज सेक्टर के ब्रोब गाँव में पेट्रोलिंग लाइन पर चोकसी के दौरान दुश्मनों से मुठभेड़ हुई ! इसमें सतीश वर्मा ने तीन दुश्मनों को ढेर किया ! और स्वयं भी मातृभूमि पकी रक्षा करते हुए शहीद हो गए ! 15 जुलाई 2001 को शहीद सतीश वर्मा का अंतिम संस्कार राजकीय वरिषीथ माद्यमिक पाठशाला बडागांव के मैदान में किया गया ! गाँव के लोगों सतीश वर्मा के सहपाठियों परिवारजनों और 1832 एलटी रेजिमेंट के कमांड ऑफिसर ऐ के मोरे सहित मेजर जे सी ओ तथा सेना के जवानों रामपुर बुशेहर के एस डी एम अरविन्द शुक्ला डी एस पी रामपुर बुशेहर सहित अनेक लोगो ने शहीद सतीश वर्मा को श्रधासुमन अर्पित किये ! पाठशाला परिसर में शहीद सतीश की प्रतिमा विद्यालय के छात्रों को राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करती है !

शुक्रवार, जुलाई 10, 2009

मौत को यादगार बनाने की हसरत

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अमेरिकी पॉप स्टार माइकल जैक्सन ने मौत से पहले इच्छा जाहिर की थी कि उन्हें भव्य समारोह के बीच शान से दफनाया जाए। अपनी मौत को यादगार बनाने की यह हसरत नई नहीं है। हिमाचल के कई क्षेत्रों में अंग्रेजों की ऐसी कब्रें हैं जहां उन्हें उनकी इच्छा के अनुरूप दफनाया गया और उनकी मौत यादगार बन गई। वायसरॉय लॉर्ड एलेगन को उनकी इच्छा के अनुरूप ही धर्मशाला के मैक्लोडगंज और चंबा में पहला कुष्ठ रोग अस्पताल खोलने वाले डॉ. हचिसन को यहां दफनाया गया। प्रदेश में ऐसे कई उदाहरण हैं। प्रदेश पर्यटन विभाग अंग्रेजों की इसी यादगार को अब पर्यटन से जोड़ेगा। हिमाचल की मिट्टी में दफन सैकड़ों अंग्रेजों के वंशज पर्यटन विभाग की बदौलत अपने पुरखों की कब्रों के दीदार कर पाएंगे। पर्यटन विभाग ने सिम्रिटी टूरिज्म के नाम से एक योजना शुरू की है। इसके तहत प्रदेश के विभिन्न स्थानों में स्थित कब्रगाहों को संरक्षित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।
शिमला, डलहौजी, कसौली और मैकलोडगंज में स्थित सिम्रिटी को पर्यटन निगम की वेबसाइट में डाला जाएगा। इन कब्रों में दफन अंग्रेजों के नाम-पते और लोकेशन भी वेबसाइट में डाली जाएगी। सिम्रिटी टूरिज्म के तहत प्रदेश में आने वाले पर्यटकों को पर्यटन निगम के होटलों में रियायत दी जाएगी। सभी कब्रिस्तानों में साइन बोर्ड लगाए जाएंगे। इसमें वहां दफन लोगों की पूरी जानकारी होगी। केंद्रीय पर्यटन विभाग और संस्कृति मंत्रालय ने राज्य सरकार को कब्रिस्तानों की दशा सुधारने को कहा है। केंद्र सरकार के आदेश के बाद पर्यटन विभाग प्रदेश के प्रमुख स्थानों में स्थित सिम्रिटी के डाक्यूमेंटेशन में लगा है। यह हर वर्ग के पर्यटकों के लिए नया आकर्षण होगा, खासतौर से उन पर्यटकों को जिनके पूर्वज यहां की मिट्टी में दफन हैं। चंबा में पहला कुष्ठ रोग अस्पताल अंग्रेज डॉ. जॉन हचिसन ने खोला था। डॉ. हचिसन ने पूरी उम्र चंबा में रहकर कुष्ठ रोगियों की सेवी की। उनकी दिली तमन्ना थी कि उन्हें चंबा में ही दफनाया जाए। उनके परिजनों ने उनकी यह ख्वाहिश पूरी की। उनकी ओर से बनाया गया अस्पताल अभी तक चल रहा है। वर्ष 1862 में भारत में आए ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड एलगिन को यह क्षेत्र स्कॉटलैंड की तरह लगा। वर्ष 1863 में अधिकारिक दौरे के दौरान एलगिन की बीमारी के कारण मौत हो गई। उनके क्षेत्र के प्रति लगाव के चलते उन्हें इस चर्च की कब्रगाह में दफनाया गया। यह प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण कब्रगाहों में से एक है। इसके संरक्षण का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। वर्ष 1905 में आए भीषण भूकंप में ब्रिटिश अधिकारियों और कर्मचारियों सहित मारे गए ब्रिटिश सैन्य जवानों की मौत के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने जिला मुख्यालय को यहां से शिफ्ट करने का निर्णय लिया था। ब्रिटिश शासन के दौरान मारे गए 400 के लगभग सैनिकों को यहीं दफनाया गया है। लॉर्ड एलगिन के पड़पोते एडम ब्रूस सहित अन्य परिजन भी यहां आकर श्रद्धांजलि अर्पित कर चुके हैं। पालमपुर और कांगड़ा में भी ब्रिटिश काल के कब्रिस्तान मौजूद हैं। कसौली स्थित सिम्रिटी 200 वर्ष पुरानी है, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी के कई आला ऑफिसर और सैनिकों को दफन किया गया है। करीब तीन सौ साल पहले कसौली में अंग्रेजों ने छावनी स्थापित की थी।

मंगलवार, जून 16, 2009

हिमाचल में थे कभी अद्भुत जीव

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देव भूमि हिमाचल प्रदेश की गुबसूरत वादियों में कभी विशालकाय जीवों और पक्षिओं का भी बसेरा होता था ! भूगर्भ वैज्ञानिकों एक टीम के अध्ययन से यह जानकारी मिली है ! टीम को हिमाचल की घाटी से शुतुरमुर्ग जेसे दानवाकार पक्षी के एक करोड़ साल पुराने अंडे के जीवाश्म मिले है ! पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के अनुसंधानकर्ताओं की टीम के नेतृत्व में भूगर्भ शाश्त्रिओं ने अत्यंत प्राचीन अंडे के जीवाश्म को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के हरिताल्या नगर क्षेत्र से खोज निकला है हरिताल्या शिमला से लगभग 250 किलोमीटर दूर है ! टीम का दावा है की अंडे का जीवाश्म शुतुरमुर्ग परिवार के पक्षी जेसे ही किसी विशालकाय जीव का है ! टीम को अंडो के 85 जीवाश्म मिले है ! अनुसंधानकर्ताओं की टीम में शामिल विश्वविद्यालय के एडवांस जीओलोजी केंद्र के विशेषज्ञों ने पाया की ये जीवाश्म ४० वर्ग सेंतिमेटर के बहुत छोटे से क्षेत्र से मिले है ! इनके रंग बाहरी आवरण की मोती समान है ! इनमें से कुछ एक दुसरे के साथ गुंथें हुए थे ! इससे संकेत मिलाता है की सभी जीवाश्म एक ही अंडे का हिस्सा है ! जिस क्षेत्र में ये जीवाश्म मिले है वहां से पहले भी कई प्राचीन जीवों के जीवाश्म मिल चुके है इनमें लंगूर बन्दर घोडे हिरन और कई तरह के कीट शामिल है ! इस तरह के जीवाश्मों के मिलाने से पता चलता है की यह क्षेत्र प्राचीन समय में घने जंगलों बड़ी घास और पानी के झरनों से घिरा अत्यंत रमणीय रहा होगा ! परन्तु लगभग 85 लाख साल पूर्व वातावरण में एकाएक परिवर्तन के कारन बहुत से जीव लुप्त हो गए !

सोमवार, जून 08, 2009

माइकल जेक्सन को किसने मारा ?

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माइकल जेक्सन मर चुके है ! लेकिन उन्हें किसने मारा ! किंग आफ पॉप, जेक्सन की मौत से जुड़ा ऐसा प्रश्न मेल बाक्स में आ सकता है ! कही यह ख़बर स्पेम मेसेज न हो जो आपके कम्पूटर के डाटा को नुक्सान पहुँचा सकता है ! इतना ही नहीं यह सेलिब्रेटी वायरस बेंक खाते नंबर और पासबर्डभी चुरा सकता है ! इसके बाद साईबर अपराधी खाता खाली कर सकता है !
अमर उजाला में एक ख़बर छपी है जिसे पाठकों की रूचि के लिए यहाँ दे रहा हूँ ! इस ख़बर के मुताबिक बर्मिघम के विश्वविध्यालय अलाबामा के एक विशेषज्ञ ने कहा है इस स्पेम वायरस का प्रयोग साईबर अपराधी कई हफ्तों से कर रहे है जिस पर नज़र रखी जा रही है !यूएबी के कम्पूटर फारेंसिक शोध निदेशक गैरी वार्नर ने कहा है की इन साईबर अपराधियों ने वाइरस एक ईमेल जोड़ दिया है ! वाइरस स्पेम में मोजूद संदेश पर जो भी क्लिक करता है उसे इस प्रश्न का उतर तो नही मिलता की जेक्सन को किसने मारा लेकिन उसके कंप्युटर में वायरस जरूर पहुँच जाता है ! यह वायरस बेंक खातोंऔर पासबर्ड जेसी जानकारी भी आपके कंप्युटर से चुरा सकता है !
इससे पूर्व सेलिब्रेटीयों के नाम पर वायरस बन चुके है ! मोनिका लेविसकी वायरस क्लिक करते ही मेमोरी की पुरी जगह घेर लेता है ! टाइटेनिक वायरस कम्पूटर को डाउन कर देता है ! बिल क्लिंटन वायरस सिस्टम कोप्राप्त कराने से रोकेगा ! सद्दाम हुसेन वायरस सिस्टम के किसी भी प्रोग्राम को इस्तेमाल नही कराने देगा ! आर्नोल्ड श्वार्ज नेगर वायरस कम्पूटर प्रेग्राम को पुरी तरह ख़तम कर देता है ! इसी प्रकार कई हस्तियों के नाम पर वायरस है !
 
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