बाऊ जी की मृत्यु के बाद मां ने कभी भी किसी कमी का अहसास नहीं होने दिया। हम अपनी जिम्मेवारियों का बोध तक नहीं कर पाऐ थे। कोई चिंता नहीं। मां है न वो सब कर देगी । मदद के लिए छोटा भाई है । जीवन चल रहा था बिना किसी समस्या के और सुखद जीवन।
तीन साल पूर्व (अगस्त 2012) जब मां का भी निधन हो गया तो दुनियादारी का पता चला। बड़े सामने हो तो बच्चों को कोई चिंता नहीं होती । मस्त होते है अपने अपने में। लेकिन उनकी रिक्तता असहनीय होती है। लोगो के आचार व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। जीवन की सचाई का सामना करना होता है। मां के जाने के बाद कई बातें याद आने लगी जो उन्होने समझाते हुए कही थी। एक एक शब्द की महता का आभास होने लगा थ्ाा। जीवन के मायने क्या है उसका बोध होने लगा था।
आना और जाना जीवन का सत्य है। जो आया है वो महाप्रस्थान तो करेगा ही। इस यात्रा में कई अनुभव मिले । मीठे कड़वे सब तरह के
तीन साल पूर्व (अगस्त 2012) जब मां का भी निधन हो गया तो दुनियादारी का पता चला। बड़े सामने हो तो बच्चों को कोई चिंता नहीं होती । मस्त होते है अपने अपने में। लेकिन उनकी रिक्तता असहनीय होती है। लोगो के आचार व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। जीवन की सचाई का सामना करना होता है। मां के जाने के बाद कई बातें याद आने लगी जो उन्होने समझाते हुए कही थी। एक एक शब्द की महता का आभास होने लगा थ्ाा। जीवन के मायने क्या है उसका बोध होने लगा था।
आना और जाना जीवन का सत्य है। जो आया है वो महाप्रस्थान तो करेगा ही। इस यात्रा में कई अनुभव मिले । मीठे कड़वे सब तरह के
विभागीय आदेश पर एक इन्कवारी के लिए बनूना स्कूल जाना पड़ा । इससे पूर्व भी इन्कवारी का कार्य कर चुका था । साथ कार्यालय अधीक्षक, गणित के प्राध्यापक और प्रयोगशाला परिचर भी साथ थ्ेा। वापसी में
स्कूल में हर रोज नया ही अनुभव प्राप्त होता है। बच्चों के नए नए बाहाने भी सृजनात्मकता का रूप ही तो है। प्राय: ये बाहाने झूठ पर आधारित होते है जिन्हें बोल का छुटी ले ही लेते हैं और बाहर निकलते ही अपनी स्थानीय बोली में भी जरूर टिप्पणी करते हैं। वे नहीं जानते की मैं पहाड़ी समझता हूं। एक लम्बे समय तक आकाशवाणी शिमला से नैमितिक उदघोषक और प्रादेशिक समाचार वाचक के रूप में जुड़ा रहा। किन्नौरी और लाहोल स्पिति को छोड़ कर अन्य बोलियों को प्राय: समझ जाता हूं परन्तु बोल नहीं पाता।
छुटी मिलते ही जैसे ही वे अपनी बोली में टिप्पणी करते मैं भी टूटी फूटी पहाड़ी में कुछ न कुछ जरूर कर देता । धीरे धीरे टिप्पणीयां तो बन्द हो गई लेकिन छुटी लेने का सिलसिला जारी ही रहता है। अवकाश अनुमादित करते ही मैं कह देता हूं ढेयो वे ढेयाे ( जाओ अब) ।
छुटी मिलते ही जैसे ही वे अपनी बोली में टिप्पणी करते मैं भी टूटी फूटी पहाड़ी में कुछ न कुछ जरूर कर देता । धीरे धीरे टिप्पणीयां तो बन्द हो गई लेकिन छुटी लेने का सिलसिला जारी ही रहता है। अवकाश अनुमादित करते ही मैं कह देता हूं ढेयो वे ढेयाे ( जाओ अब) ।
कुमारसैन शहर में जीवन का काफी समय गुजारा है । अनेक मित्र बने । गप्प शप्प जीवन अनुभव की बातें जीवन चर्या का एक हिस्सा है। मित्रों की गप्पें हमेशा ठाहके भरी होती है। एक मित्र है वैसे उमर में मेरे से काफी बड़े है के साथ चाए का दौर चलता ही है। चाए की अधिकता को देखते हुए मैं हमेशा एक कप मंगवाने का आग्रह करता हूं और कहता हूं एक बटा दो कर लेते है लेकिन चाए हमेशा ही पूरी ही आई। उन्होने दुकान परिवर्तन की तो मिलना कम हो गया। जबभी उनकी दुकान के सामने से गुजरता हूं तो वे कह उठते है वो एक बटा दो बहुत सी इक्कठी हो गई है जनाब। मेरे बैठते ही वे जोर से आवाज़ देकर चाए मंगवा लेते है दस पंद्रह मिनट चाए के साथ गप्प शप्प और ठहाके लगते है और मैं निकल आता हूं वादा करके एक और एक बटा दो के दौर का।
एक बार उन्होने ने शराबी कितने प्रकार के होते है और उनकी क्या पहचान होती है कि विस्तृत जानकारी दी जिस पर हम हंस हंस कर लोट पोट हुए। ओ हो क्षमा चाहूंगा आपको उन मित्र का नाम तो बताया ही नहीं । उनका .......
एक बार उन्होने ने शराबी कितने प्रकार के होते है और उनकी क्या पहचान होती है कि विस्तृत जानकारी दी जिस पर हम हंस हंस कर लोट पोट हुए। ओ हो क्षमा चाहूंगा आपको उन मित्र का नाम तो बताया ही नहीं । उनका .......
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