#अधूरे_पन्ने
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
सुबह उठते ही गुनगुना पानी और टहलने, योगा करने का आदेश ये मीरा के दैनिक कामों में शामिल है। पानी पिया और एक दो चक्कर इधर उधर लगाए। फिर व्टस एप्प पर नमस्कार का दौर शुरू । फेसबुक पर अपडेट देखना । समय बीत जाता है तुरन्त।
मीरा व्यस्त हो जाती रसोई में । व्यस्तता सबकी है अपनी अपनी । वो सब के लिए कुछ न कुछ कर रही है मैं जो भी कर रहा हूं सिर्फ अपने लिए । इस यात्रा में अनेक बार ऐसा लगा मैं स्वार्थी हूँ कुछ नहीं कर पाता हूँ उसके लिए । मैं आत्मकेन्द्रित होता जा रहा हूँ । .........
मीरा व्यस्त हो जाती रसोई में । व्यस्तता सबकी है अपनी अपनी । वो सब के लिए कुछ न कुछ कर रही है मैं जो भी कर रहा हूं सिर्फ अपने लिए । इस यात्रा में अनेक बार ऐसा लगा मैं स्वार्थी हूँ कुछ नहीं कर पाता हूँ उसके लिए । मैं आत्मकेन्द्रित होता जा रहा हूँ । .........
#अधूरे_पन्ने
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
पदोन्नति के बाद बाहली स्कूल में कार्य भार ग्रहण था। एक दिन एक लड़का लगभग 11 बजे सुबह छुट्टी लेने। आ गया। मैंने पूछा क्यों चाहिए? वो बोला,"सर मुझे नींद आ रही है।" मेरे ये एक नया कारण था। इस तरह का छुट्टी का कारण पहली बार सुन रहा था।
मेरी उत्सुकता जागी मैंने पूछा नींद क्यों आ रही है? वो बोल,"सर रात को रामपुर में लवी का कार्यक्रम देखा तो सोया नहीं अब नींद आ रही है।
मैं निरुत्तर अपलक उसे देख रहा था.... ।
मेरी उत्सुकता जागी मैंने पूछा नींद क्यों आ रही है? वो बोल,"सर रात को रामपुर में लवी का कार्यक्रम देखा तो सोया नहीं अब नींद आ रही है।
मैं निरुत्तर अपलक उसे देख रहा था.... ।
#अधूरे_पन्ने
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
शुरू से कविताओं में रूचि रही । नए रचनाकार भी सेना में भर्ती रंगरूट की तरह ही तो होते है। यूूं भी कविताओं को कौन सुनना चाहता है वही जाे इसमें रूचि रखता हो। कुछ लिखता तो मां को सुना देता प्रसन्नत होता। वास्तव में मां मेरी कविताओं की प्रथम श्रोता रही है। वो लगातार प्रोत्साहन भी देती रही।
(शेष पुस्तक में)
#अधूरे_पन्ने
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
(जीवन यात्रा पर प्रकाशनाधीन पुस्तक से)
जब भी मीरा को देखता हूं उसके बारे में सोचता हूं तो उसकी किस्मत के बारे में मेरे भीतर ही भीतर मंत्रणा करने लगती है। एक अपराध बोध सा लगने लगता है कि उसकी अस्वस्थता के लिए क्या कहीं मैं ही जिम्मेदार तो नहीं?
जीवन और मृत्यु के प्रश्न उसी को देख कर पूर्ण हो जाते है।
जीवन और मृत्यु के प्रश्न उसी को देख कर पूर्ण हो जाते है।
(शेष पुस
0 Reviews:
एक टिप्पणी भेजें
" आधारशिला " के पाठक और टिप्पणीकार के रूप में आपका स्वागत है ! आपके सुझाव और स्नेहाशिर्वाद से मुझे प्रोत्साहन मिलता है ! एक बार पुन: आपका आभार !