हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव 2012 में चुनाव डयूटी के लिए जुब्बल
श्रेत्र में डयूटी लगाई गई तो हाटकोटी मन्दिर जाने का मोह छोड़ नहीं पाया । शिमला जिला की जुब्बल तहसील में हाटकोटी दुर्गा मंदिर
स्थित है।लगभग 1370 मीटर की उंचाई पर बसा पब्बर नदी के किनारे हाटकोटी में महिषासुर र्मदिनी का पुरातन मंदिर हे। जिसमें वास्तुकला, शिल्पकला के उत्कृष्ठ नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं। कहते हैं कि यह मंदिर 10वीं शताब्दी के आस-पास बना है। इसमें महिषासुर र्मदिनी की दो मीटर ऊंची कांस्य की प्रतिमा है तोरण सहित है। इसके साथ ही शिव मंदिर है जहां पत्थर पर बना प्राचीन शिवलिंग है। द्वार को कलात्मक पत्थरों से सुसज्जित किया गया है। छत लकड़ी से र्निमित है, जिस पर देवी देवताओं की अनुकृतियों बनाई गई हैं। मंदिर के गर्भगृह में लक्ष्मी, विष्णु, दुर्गा, गणेश आदि की प्रतिमाएं हैं। इसके अतिरिक्त यहां मंदिर के प्रांगण में देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। बताया जाता है कि इनका निर्माण पांडवों ने करवाया था। हाटकोटी मंदिर के चारों ओर का
असीम सौंदर्य सैलानियों के मन को बहुत भाता है। हाटकोटी मंदिर में स्थापित
महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति लोकमानस में दुर्गा रूप में पूजित है। आठवीं शताब्दी
में बना यह मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से शिखर और पैगोडानुमा शिल्प की अमूल्य
कृति है। वर्तमान में यह मंदिर दो छतरी के पैगोडा और शिखर शैली के मिश्रित रूप में
बना है। शिखर पर सज्जे आमलक के ऊपर स्वर्ण कलश सुशोभित हैं। इस मंदिर का शेष शीर्ष
भाग पत्थर की स्लेट की ढलानदार छत से आच्छादित है। हाटकोटी मंदिर दुर्गा के
गर्भगृह में महिषासुरमर्दिनी की तोरण से विभूषित आदमकद कांस्य प्रतिमा गहरी लोक
आस्था का प्रतीक है। महिष नाम के दानव का मर्दन करती दर्शाई गई दुर्गा की यह
प्रतिमा सौम्यभाव की अभिव्यक्ति देती है। यहां मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाईं ओर
लोहे की जंजीरों में बंधा एक विशालकाय ताम्र घट भगवती दुर्गा के द्वारपाल होने का
प्रमाण पुख्ता करता है। जनश्रुति है कि इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर
वृहदाकार ताम्र कुंभ स्थापित थे। जब श्रावण मास में पब्बर खड्ड उफान पर होती थी
तो यह दोनों घट लोहे की
जंजीरों से मुक्ति पाने के लिए छटपटाहट में जोरदार सीटियों को मारने वाली आवाज
जैसा वातावरण बना देते थे। जिससे यह स्पष्ट होता था कि दोनों घट अथाह जलवेग में वह
जाने के लिए तत्पर रहते थे। यह भी लोक मान्यता है कि भगवती मूलतः रोहडू खशधार की
माटी से उद्भासित होकर प्रबल जलवेग के साथ बहती हुई हाटकोटी के समतल भूभाग पर रूक
गईं ।
आज भी यह लोक आस्था है कि जब-जब खशधार के नाले का बढ़ता जल वेग पब्बर नदी
में शामिल होता है तब-तब हाटकोटी मंदिर में कुंभीय गर्जना अधिक भयंकर हो जाती है। कहा
जाता है कि खशधार की दुर्गा के पब्बर नदी में प्रवाहित हुए अवशेषों की स्मृति में
कुंभ विकराल रूंदन करते सुनाई देता है। मान्यता है कि हाटकोटी मंदिर की परीधि के ग्रामों में जब कोई विशाल उत्सव,यज्ञ,शादी आदि का आयोजन किया
जाता था तो हाटकोटी से चरू ला कर उसमें भोजन रखा जाता था। चरू में रखा भोजन
बार-बार बांटने पर भी समाप्त नहीं होता था। यह सब दैविक कृपा का प्रसाद माना जाता
था। चरू को अत्यंत पवित्रता के साथ रखा जाना आवश्यक होता था अन्यथा परिणाम उलटा हो
जाता था। लोक मानस में चरू को भी देवी का बिंब माना जाता रहा है। शास्त्रीय दृष्टि
से चरू को हवन या यज्ञ का अन्न भी कहा जाता है। हाटकोटी मंदिर में दुर्गा मंदिर के
साथ शिखरनुमा शैली में बना शिव मंदिर है। इस मंदिर का द्वार शांत मुखमुद्रा में
अष्टभुज नटराज शिव से सुसज्जित है। शिव मंदिर के गर्भगृह में प्रस्तर शिल्प में
निर्मित शिवलिंग,दुर्गा,गरूड़ासीन लक्ष्मी-विष्णु,गणेश आदि की प्रतिमाएं है। इस मंदिर का द्वार मुख तथा
बाह्यप्रस्तर दीवारें कीर्तिमुख, पूर्णघट,कमल और हंस की नक्काशी के साथ अलंकृत है। नागर शैली में
बने अन्य पांच छोटे-छोटे मंदिर प्रस्तर शिल्प के जीवन अलंकरण को प्रस्तुत करते
हैं। इस पावन धारा पर संजोए पुरावशेष और प्रस्तर पर उर्त्कीण देवी-देवताओं की
भाव-भंगिमाएं देवभूमि पर शैव-शाक्त संप्रदायों के प्रबल प्रभाव के उद्बोधक हैं।
हाटकोटी दुर्गा का मान्यता क्षेत्र व्यापक है। पर्वतीय क्षेत्रों में शाक्त धर्म
का सर्वाधिक प्रभाव दुर्गा रूप में ही देखा जाता है। हाटकोटी मंदिर के दैनिक पूजा
विधान में प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में भगवती का स्तुति गान स्थानीय बोली में किया
जाता है। प्रात:कालीन पूजा को ढोल-नगाड़ों
की देव धुन पर किया जाता है। इसे लोक मानस में प्रबाद कहा जाता है। सूर्योदय के
साथ -साथ एक बार फिर पूजा की जाती है। इसके बाद दोपहर तथा सांझ होते ही
पूजा-अर्चना करने का विधान है। सांयकालीन पूजा को सदीवा कहते है। रात्रिकालीन में मां दुर्गा के शयन पर नब्द बजाई जाती है।
यहां प्रत्येक पूजा वाद्य यंत्रों की लय और ताल पर की जाती है। हाटकोटी मंदिर
शिमला- रोहडू मार्ग पर है। हाटकोटी मंदिर
शिमला से 100
किलोमीटर
की दूरी पर स्थित है।
आभार उत्तम चन्द प्रवक्ता रोहड़ू
आभार उत्तम चन्द प्रवक्ता रोहड़ू
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