महाराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ समाप्त होने पर एक अद्भुत नेवला, जिसका आधा शरीर सुनहरा था, यज्ञ भूमि में लोट-पोट होने लगा । वह रुदन करके कहने लगा कि यज्ञ पूर्ण नहीं हुआ । सबको बड़ा आश्चर्य हुआ, पूछने पर नेवले ने बताया 'कुछ समय पहले अमुक देश में भयंकर अकाल पड़ा । मनुष्य भूख के मारे तड़प-तड़प कर मरने लगे। एक दिन कहीं से अन्न मिलने पर ब्राहमणी ने चार रोटियां बनाईं । उस ब्राहमण परिवार का यह नियम था कि भोजन से पूर्व कोई भूखा होता तो उसे पहले उसे भोजन कराया जाता था। एक भूखा चांडाल वहां आया तो ब्राह्मण ने अपने हिस्से की एक रोटी उसे सौंप दी, उसपर भी तृप्त न होने के कारण क्रमश: ब्राह्मण की पत्नी और उसके बच्चों ने भी अपना अपना हिस्सा उसे दे दिया । जब चांडाल ने भोजन करके पानी पीकर हाथ धोए तो उससे धरती पर कुछ पानी पड़ गया । मैं उधर होकर निकला तो उस गीली जमीन पर लेट गया । मेरा आधा शरीर ही संपर्क में आया जिससे उतना ही स्वर्णमय बन गया । मैंने सोचा था कि शेष आधा शरीर, युधिष्ठिर के यज्ञ में स्वर्णमय बन जाएगा, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। राजन! यज्ञ के साथ त्याग बलिदान की अभूतपूर्व परंपरा जुड़ी हुई है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 Reviews:
एक टिप्पणी भेजें
" आधारशिला " के पाठक और टिप्पणीकार के रूप में आपका स्वागत है ! आपके सुझाव और स्नेहाशिर्वाद से मुझे प्रोत्साहन मिलता है ! एक बार पुन: आपका आभार !