पेटूपन : पेटूपन को भी सात महापापों में रखा गया है। हर जमाने में पेटूपन की निंदा हुई है और इसका मजाक उड़ाया गया है। ठूंस कर खाने को महापाप में इस लिए रखा गया है कि इसमें अधिक खाने की लालसा होती है और दूसरी तरफ कई जरूरतमंदों को खाना नहीं मिल पाता।
लालच : यह भी एक तरह से लालसा और पेटूपन की तरह ही है। इसमें अत्यधिक प्रलोभन होता है। चर्च ने इसे सात महापाप की सूची में अलग से इसलिए रखा है कि इस से धन दौलत की लालच शामिल है।
आलस्य : पहले स्लौथ का अर्थ होता था उदासी। इस प्रवृत्ति में खुदा की दी हुई चीज से परहेज किया जाता है। इस की वजह से आदमी अपनी योग्यता और क्षमता का प्रयोग नहीं करता है।
क्रोध : इसे नफरत और गुस्से का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है। जिस में आकर कोई कुछ भी कर सकता है। यह सात महापाप में अकेला पाप है जिसमें हो सकता है कि आपका अपना स्वार्थ शामिल न हो।
ईष्र्या : इसमें डाह, जलन भी शामिल है। यह महापाप इस लिए है कि इसमें किसी के गुण या अच्छी चीज को व्यक्ति सहन न कर पाता है। ईष्र्या से मन में संतोष नहीं रहता है।
घमंड : अभिमान को सातों महापाप में सबसे बुरा पाप समझा जाता है। हर धर्म में इसकी कठोर निंदा और भत्र्सना की गई है। इसे सारे पाप की जड़ समझा जाता है क्योंकि सारे पाप इसी पेट से निकलते हैं। इसमें खुद को सबसे महान समझना और खुद से अत्यधिक प्रेम शामिल है।
जरा सात महापुण्य भी देख लें। ये इस प्रकार हैं-पवित्रता, आत्म संयम, उदारता, परिश्रमी, क्षमा, दया और विनम्रता।
भगवान बुद्ध का पंचशील
बुद्ध ने बनारस के एक धनी व्यापारी यश को शील, सदाचाप के बारे में बताया। जब उसका मन शांत हो गया तो भगवान ने उसे पंचशील का उपदेश दिया।
बुद्ध ने कहा था-
प्राणी हिंसा से विरत रहो।
चोरी मत करो।
अनैतिक व्यवहार मत करो।
व्यभिचार, मिथ्याविचार से विरत रहो।
प्रमादकारी पदार्थों और नशीली चीजों के सेवन से बचो
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