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शनिवार, मई 15, 2010

भोग-विलास

एक बार दैत्यों ने देवताओं को युद्ध में बुरी तरह पराजित कर दिया। विजयी दैत्य अपने गुरु शुक्राचार्य के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे। उन्होंने कहा, ‘गुरुदेव, अब हम तपस्या कर अपने पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं। हमारी तपस्या सफल हो, ऐसा आशीर्वाद दीजिए।’ शुक्राचार्य ने कहा, ‘शील एवं संयम त्यागने के कारण ही समाज दैत्यों को घृणा की दृष्टि से देखता है। इसलिए तपस्या के दौरान मर्यादापूर्ण सात्विक जीवन बिताना।’ दैत्य तपस्या में लीन हो गए। दैत्यों की तपस्या की बात सुनकर देवता चिंतित हो उठे। वे भगवान विष्णु के पास पहुंचकर बोले, ‘दैत्यों की तपस्या से यदि आप प्रसन्न हो गए, तो उन्हें मनचाहा वरदान मिल जाएगा। इसलिए तपस्या विफल करने के उपाय बताएं।’ भगवान विष्णु ने उन्हें युक्ति बता दी। देवताओं ने माया मोह नाम के कपटी को तपस्यारत दैत्यों के पास भेजा। दैत्यों ने उसे देखते ही पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उसने कहा, ‘मैं माया मोह हूं। आपकी विजय का समाचार सुनकर आपको बधाई देने चला आया हूं।’ कुछ रुककर माया मोह ने दैत्यों से पूछा, ‘आप सब इस जंगल में बैठे क्या कर रहे हैं?’ दैत्य बोले, ‘हम अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए तपस्या कर रहे हैं, ताकि देवता हमें कभी पराजित न कर सकें।’ यह सुनकर माया मोह ने ठहाका लगाया और कहा, ‘तपस्या तो सबसे ज्यादा देवता करते हैं, फिर भी वे पराजित क्यों हो गए? तपस्या से शक्ति कम हो जाएगी। इसलिए आप लोग खाए-पीएं और मौज करें।’ माया मोह की बातें सुनकर दैत्यों की भोगवृत्ति जाग उठी। उन्होंने तपस्या छोड़कर भोग-विलास करना शुरू कर दिया। मौका पाकर देवताओं ने उन पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया। पराजित दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास पहुंचे। शुक्राचार्य ने उनसे कहा, ‘मैंने कहा था कि शील व संयम का त्याग न करना। तपस्या की जगह भोग-विलास में लगने का यह दुष्परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा।’

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