google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : मेरा कुछ नहीं

सोमवार, मई 04, 2009

मेरा कुछ नहीं

राजा जनक न्यायप्रिय शासक थे ! एक बार किसी ब्रह्मण से कोई अपराध हो गया ! रजा जनक ने आदेश दिया की उसे राज्य से निकल दिया जाये ! ब्राहमण शास्त्रों का ज्ञानी था ! उसे इस बात का दुःख हुआ की अनजाने में हुए अपराध के लिए उसे राज्य से निकला जा रहा है ! वह यह भी जनता था की राजा जनक परम विरक्त है ! शास्त्रों की चर्चा करने को वह सदेव तत्पर रहते है ! ब्राहमण उनके महल में जा पहुंचा ! विनम्रता से राजा जनक को अपना परिचय देते हुए उसने कहा महाराज राज्य से निष्काशन का आपका आदेश मुझे मान्य है ! किन्तु यह बताने की कृपा करें की आपके राज्य की सीमा कहाँ तक है ! ताकि मैं उससे बहार अपने रहने की व्यवस्था कर संकू !
ब्राहमण के प्रशन ने राजा जनक के हृदय को झकझोर दिया १ उन्हें लगा की वास्तव में मेरा जब अपने शारीर पर ही कोई अधिकार नहीं है तो मैं भूमि पर अधिकार केसे जमा सकता हूँ ! राज्य को अपना मानना निरा भ्रम भी ही तो है !
जनक जी ने हाथ जोड कर कहा ब्राहमण देवता वास्तव में मैं अपने राज्य की सीमा बताने में असमर्थ हूँ ! मैं यह भी जान गया हूँ किं राज्य को अपना बताना मेरा अहम् तथा भ्रम मात्र था ! राज्य तो क्या शारीर भी मेरा नहीं है ! मैं भूलवश निष्कासन का आदेश देने के लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ !
देखते ही राजा समाधि में खो गए ! उस दिन से उन्हें राज्य धन परिवारसे पूरी विरक्ति तरह हो गई !

10 Reviews:

PAUL CABLE NETWORK, KUMARSAIN, SHIMLA 172029 HP on 4 मई 2009 को 3:43 pm बजे ने कहा…

achha hai gyanbardhak

PAUL CABLE NETWORK, KUMARSAIN, SHIMLA 172029 HP on 4 मई 2009 को 3:43 pm बजे ने कहा…

achha hai gyanbardhak

Unknown on 5 मई 2009 को 10:18 pm बजे ने कहा…

aalekh achha hai.......BADHAI

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar on 5 मई 2009 को 11:08 pm बजे ने कहा…

Roshan ji,
Hindi ke chitthajagat men apka svagat hai.ye post to achchhee hone ke sath preranapad bhee hai.
HemantKumar

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर on 6 मई 2009 को 6:56 am बजे ने कहा…

yah bar hamer samajh aaye tab na, narayan narayan

alka mishra on 6 मई 2009 को 7:24 am बजे ने कहा…

ज्ञान,त्याग ,तप नहीं श्रेष्ठता का जब तक पद पायेंगे......
प्राचीन संस्मरण याद दिलाने के लिए धन्यवाद

उम्मीद on 6 मई 2009 को 9:57 am बजे ने कहा…

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

गार्गी

drishtipat on 6 मई 2009 को 10:25 am बजे ने कहा…

सच में येहाँ किसी का कुछ नहीं है. झूठा अहम लोगों को कहीं का नहीं छोड़ता. बहुत सुन्दर प्रसंग दिया है आपने. तेरामेरा कुछ भी नहीं अपना, फिर भी कश्मीर से कन्या कुमारी तक लोगों में जमीन हड़प की लालसा की सभी सीमा लोग पर कर गए हैं . आपकी ब्लॉग को मेरी शुभकामनायें
अरुण कुमार झा

admin on 6 मई 2009 को 5:07 pm बजे ने कहा…

इस प्रेरक कथा को हमारे साथ साझा करने के लिए आभार।

SBAI TSALIIM

रचना गौड़ ’भारती’ on 8 मई 2009 को 6:28 pm बजे ने कहा…

बे्हतरीन रचना के लिये बधाई। यदि शब्द न होते तो एह्सास भी न होता। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है। लिखते रहें हमारी शुभकामनाएं साथ है।

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