बुधवार, मई 06, 2009
निष्ठा
महर्षि अरविन्द इश्वर में दृद विश्वास रखते थे ! वे अक्सर कहा करते थे की जो व्यक्ति निश्छल हृदय से भगवान का स्मरण करता है पूर्ण भाव से अपने जीवन की बागडोर उन्हें सोंप देता है वाही उनकी कृपा की अनुभूति कर सकता है ! बडोदा में श्री कन्या लाल मुंशी तथा एन पाटकर महर्षि अरविन्द के पास रह कर शिक्षा प्राप्त करते थे ! एक दिन पाटकर ने श्री अरविन्द से प्रश्न किया आप घंटो घंटो साधना करते है क्या आपको कभी भगवान् के दर्सहन की अनुभूति हुई है ? महर्षि अरविन्द ने मुस्कुराते हुए कहा कभी कभी नहीं मुझे प्रतिदिन भगवान् की कृपा की अनुभूति होती है ! मेरे आस पास रहने वाले तमाम व्यक्ति निश्छल और इमानदार है! मैं उनमें भगवान् के रूप का दर्शन करता हूँ ! रंग बिरंगें फूलों से आने वाली सुगंध के झोंको रिमझिम वर्षा की फुहारों कोयल और मोर की आवाजों मैं मुझे साक्षात भगवान् श्रीक्रिशन की कृपा नजर आती है ! एक दिन पाटकर ने कहा आप वेतन मिलते हवी उसे मेज पर खुला छोड़ देते है ! रुपयों को अलमारी में रखना चाहिए ! उनका हिसाब रखना चाहिए ! महर्षि अरविन्द ने गंभीरता पूर्वक कहा स्वयं भगवान मेरा हिसाब रखते है ! वह आवश्यकता की पूर्ति लायक धन की व्यवस्था करते है ! वह मुझे कभी आर्थिक तंगी नहीं होने देते !पाटकर जी श्री अरविन्द की दृद इश्वर निष्ठां देख कर दंग रह गए !
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