12 जनवरी, 2013 को स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयंती है।विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को
कलकत्ता में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त रखा गया। आगे चल कर नरेन्द्रनाथ को उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सन्यासी होने की दीक्षा दी। सन्यासी अपना सब कुछ त्याग देता है इसलिए नरेन्द्रनाथ ने अपने नाम को
भी त्याग दिया और नाम धारण कर लिया: स्वामी विवेकानंद। स्वामी विवेकानंद भारतीय
अध्यात्म और दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं। उन्होनें पश्चिमी देशों
का वेदांत और योग दर्शन से परिचय कराया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य को
सिखाया कि सभी धर्म सच्चे हैं और एक ही लक्ष्य की ओर जाने वाले अलग-अलग मार्गों की
तरह हैं। इस विश्व में सभी कुछ ईश्वर है और ईश्वर के सिवा यहाँ कुछ भी नहीं है। इस
दर्शन को अद्वैत वेदांत कहा जाता है। स्वामी विवेकानंद 1893 में हुई
उक्त धर्म संसद में भाग लेने के लिए शिकागो गए। वहाँ इस भारतीय सन्यासी ने सभी का
मन बिना प्रयत्न के ही जीत लिया। भारत वापस आने के बाद, 1897 में, उन्होनें रामकृष्ण मिशन नामक एक आध्यात्मिक और
लोकहितैषी संस्था की नींव रखी। भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है
जीवन में मनुष्य तभी तक महत्वपूर्ण बना रहता है,जब तक वह अपने लक्ष्य के प्रति कार्यशील रहता है। उदेश्यहीन व्यक्ति को
समाज ही नहीं बल्कि प्रकृति भी त्याग देती है। संपूर्ण विश्व में महान लोगों की
पहचान भी उनके द्वारा मानव विकास के लिए किए गए योगदान व बलिदान के कारण की हुई
है। मानवीय चेतना को उत्कृष्ट बनाने में स्वामी विवेकानंद का अतुलनीय योगदान है।
इसी कारण,वह करोड़ों भारतीयों के आदर्श बने और पूरी दुनिया
के सामने देश की समृद्ध संस्कृति को रखा। वर्तमान विसंगतियों को दूर करने में
स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएं आज भी सक्षम हैं। उनके शाश्वत विचारों के जरिए
सामाजिक समस्याओं को बड़े हद तक हल किया जा सकता है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है
कि – ‘‘मेरा विश्वास आधुनिक युवा
पीढ़ी में है। उनमें से मेरे कार्यकर्ता आएंगे और सिंह के समान पुरुषार्थ कर सभी
समस्याओं का समाधान करेंगे।’’
समाज के अग्रणी और प्रबुद्ध
वर्ग पर राष्ट्र निर्माण का दायित्व होता है ।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है
कि ‘‘याद रखो कि राष्ट्र गरीब की झोपड़ी में बसता है, राष्ट्र का भवितव्य
जनसामान्य की दशा पर निर्भर करता है। क्या तुम उन्हें ऊपर उठा सकते हो। उनके
आंतरिक आध्यात्मिक सत्व को नष्ट किए बिना क्या तुम उन्हे अपना खोया परिचय वापस
दिला सकते हो।’’ स्वामी जी की नजर में ग्राम्य जीवन ही भारत और
भारतीयता का आधार है। भारत के उत्थान के लिए ग्रामीणों का आत्मविश्वास बढ़ाने तथा
ग्राम जीवन को सशक्त बनाने की आवष्यकता है।
स्वामी जी का मत था कि हिन्दू महिलाएं अत्यंत
आध्यात्मिक और धार्मिक होती हैं। यदि हम इन गुणों का संवर्धन करते हुए जीवन के सभी
क्षेत्रों में महिलाओं के सहभाग को विकसित करते हैं तो भविष्य की हिन्दू महिलाएं
सभी क्षेत्रों में नए विकास के नए मानक गढ़ सकते हैं।
स्वामी जी मतांतरण के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने एक जगह पूछा है ईसाई
मिशनरियों से पूछा है कि -क्या हमने कभी मत परिवर्तन के लिए एक भी धर्म प्रचारक
दुनिया में भेजा है’’। अस्मिता के जरिए
जनजातियों के आत्मबल को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। इसके जरिएआना चाहिए।
स्वामी जी ने प्राचीन
शास्त्रों की पुनर्व्याख्या कर,निराशा, कुंठा, ईर्ष्या के भ्रमजाल में
फंसी मानवता को एक नया जीवनपथ दिखाया। आध्यात्मिक उन्नति के लिए देश की समृद्धि
आवश्यक है। उन्होंने आध्यात्मिकता को संसार विरोधी बताने वाली मान्यताओं का खंडन
और विरोध किया।
स्वामी विवेकानंद शैक्षिक
पाठ्यक्रम में आध्यात्मिकता के साथ विज्ञान व तकनीकि शिक्षा के पक्षधर थे। उनके अनुसार
विज्ञान के विकास ने मानव को कई कष्टों से मुक्ति दिलाई है, जीवन को सुख सुविधाओं से
परिपूर्ण किया है। लेकिन वेदांत के अभाव में यही विज्ञान विनाशकारी बन सकता है, स्वार्थ एवं शोषण को बढ़ाने
में सहायक हो सकता है। उनकी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि वर्तमान शिक्षा केवल नौकरी
योग्य ही बनाती है। उनके अनुसार शैक्षिक पाठ्यक्रम में विज्ञान, तकनीकि व औद्योगिक शिक्षा
को महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए, परंतु कला शिक्षा की उपेक्षा करके नहीं। कला शिक्षा भी
हमारे समाज का एक अभिन्न अंग है।
वर्तमान में भले ही विज्ञान व तकनीकि के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है, लेकिन गरीबी, अशिक्षा जैसी समस्याएं आज भी हमारे समाज में मौजूद
है। देश की लगभग 35 फीसदी से ज्यादा आबादी निरक्षर, कुपोषित,बेघर व फु टपाथों तथा झुग्गी-झोंपडि़यों में जीने को विवश है। इसका
कारण विज्ञान व तकनीकि नहीं,बल्कि मनुष्य में
व्यावहारिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक
मूल्यों का वैज्ञानिक शक्तियों के साथ समन्वय न होना है। इसी समन्वय के अभाव में
विज्ञान, तकनीकि व औद्योगिक विकास का
लाभ गरीब, ग्रामीण व आम लोगों तक नहीं
पहुंच पाया है। ऐसे में विज्ञान व व्यक्ति विकास के विभिन्न पहलुओं में समन्वय
बिठाने की आवश्यकता है। देश की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक स्थिति को
देखते हुए स्वामी विवेकानंद के विचारों को अपनाने के लिए गंभीरता से सोचने की
आवश्यकता है ताकि भारत अपने खोए हुए ताज विश्वगुरु को हासिल कर सके।
11 सितम्बर को “विश्व भाईचारा दिवस” मनाया जाता है। इसी दिन
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म संसद में अपना भाषण दिया था। भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है कन्याकुमारी विवेकानंद रॉक मेमोरियल बनाने का काम स्वामी विवेकानंद की जन्मशती के उपलक्ष्य में 1963 में शुरु हुआ था। यह मेमोरियल भारत भूमि के
सुदूरतम दक्षिणी बिंदू से 500 मीटर आगे समुद्र के बीच बना
है। इसे बनाने में सात वर्ष का समय लगा था।इस मेमोरियल को बनाने के राष्ट्रीय
प्रयास में करीब तीस लाख लोगों ने आर्थिक सहायता दी। इन सभी व्यक्तियों ने कम से
कम एक-एक रुपए का योगदान दिया।स्वामी विवेकानंद पहले भारतीय थे जिन्हे हार्वर्ड
विश्वविद्यालय में ओरियेंटल फ़िलॉसफ़ी चेयर स्वीकारने के लिए आमंत्रित किया गया
था।स्वामी विवेकानंद एक अच्छे कवि और गायक भी थे। उनकी सबसे पसंदीदा स्वरचित कविता
का शीर्षक“काली द मदर” है। स्वामी विवेकानंद ने
भविष्यवाणी की थी कि वे 40 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं
कर सकेंगे। उनकी यह बात तब सच साबित हो गई जब 4 जुलाई 1902 को उनकी मृत्यु 39 वर्ष की उम्र में ही हो गई। उन्होने समाधि की
अवस्था में अपने प्राण त्यागे !