शाम ऑफिस से निकला तो घर के लिए ओल्ड बस स्टेंड से बस ली। सीट की आपाधापी में किसी तरह से सीट मिल ही गई।
सीट पर एक भाई साहब बैठे थे मुझे चुपचाप देख उसने बातों का सिलसिला शुरू कर दिया।
- बर्फ कुछ कम ही पड़ी है
- जी
- पहले वर्षा होनी चाहिए थी बगीचे के लिए अच्छी रहती है।
- जी
- राजा साहब इस बार चुनाव लड़ेंगे क्या?
- क्या पता
- जय राम जी अच्छे आदमी है
- जी
- विक्रमादित्य अब अच्छा भाषण देने लगे है
- जी
- तरक्की तो अनुराग ने की है
- जी
- आपका गांव कोन सा है
-- जी .... है
- वहां के तेज बन्दे है
- पता नहीं
- यहां कहा रहते हो
- जी .... में रहता हूँ।
- अकेले रहते हो
- नहीं बच्चें साथ रहते है
- पढ़ते होंगे
- जी
- किस डिपार्टमेंट में काम करते हो
- शिक्षा विभाग में
- मास्टरों की सैलरी तो बहुत अच्छी है। आपकी कितनी है
- जी, गुजारा चल रहा है
- टेक्स कितना काटते हो
- जी ... हर महीने
- आप कहाँ काम करते हैं, मैनें पूछा
- मैं सेटलमेंट में था।
- जी
- ठंड काफी हो गई है
- जी
- रम लगाते हो
- ढली वाले तैयार हो जाओ कंडक्टर की आवाज़ सुनाई दी
- मेरा स्टेशन आ गया था। उस व्यक्ति की बातों के सिलसिले का मूल तत्व मुझे समझ आ गया था।
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