google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : घर ढूंढ़ता है कोई

बुधवार, नवंबर 06, 2019

घर ढूंढ़ता है कोई

इस शहर में घर ढूंढता है कोई,
क्या यहां अपना रहता है कोई।

उफ ये दौड़ , ये भागमभाग,
चुपचाप सा बहता है कोई।

बदहवास ज़िंदगी का सबब है क्या,
अपना ही पता यहां पूछता है कोई। 

एक दूसरे की साँसों से बंधे है हम,
फिर भी जुदा जुदा सा रहता है कोई। 

चेहरे तो हैं सभी जाने पहचाने, 
फिर भी अपना लापता है कोई। 

पूछ रहा हूं मैं उससे उसी का नाम,
मुझे ही विक्षिप्त कहता है कोई। 

जारी....

1 Reviews:

Digvijay Agrawal on 7 नवंबर 2019 को 12:48 pm बजे ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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