google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : आजकल कहाँ रहता हूँ मैं

शुक्रवार, जनवरी 12, 2018

आजकल कहाँ रहता हूँ मैं

पूछते हो अब कहां रहता हूँ मैं 
जहां कोई नहीं वहीं रहता हूँ मैं ।

भीड़ है, लोग हैं सब ही तो हैं यहां, 
एकाकी हूँ खामोशी से बहता हूँ मैं ।

पुष्प पसन्द है सबको, लेते है सुंगध
बंजर हूँ, वेदना कांटों की सहता हूँ मैं ।

खूब सजाए है महल तुमने कैसे कैसे,
किराए के मकां को घर कहता हूं मैं।

चलो अच्छा है अब भ्रम तो टूटा , 
रिश्तों  की ओट में बिकता रहा हूँ मैं ।


छला है अपना बन कर सभों ने,
यूं ही नहीं विक्षिप्‍त सा घूमता हूं मैं। 


4 Reviews:

yashoda Agrawal on 13 जनवरी 2018 को 4:23 pm बजे ने कहा…

आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani on 14 जनवरी 2018 को 6:30 am बजे ने कहा…

वाह!!!
बहुत सुन्दर...

रेणु on 14 जनवरी 2018 को 9:58 pm बजे ने कहा…

बहुत ही सुंदर पंक्तियों से सजी रचना बहुत मर्मस्पर्शी है | दुसरा शेर खास तौर पर पसंद आया | सादर शुभकामना --

रश्मि शर्मा on 14 जनवरी 2018 को 11:08 pm बजे ने कहा…

बहुत बढ़िया

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