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सोमवार, अक्तूबर 16, 2017

गांव

गांव,
नहीं रहा है गाँव अब,
गांव बन गया है
षड्यंत्रकारियों,
चोरों और उच्चकों का गढ़,
संवेदना खत्म हो गई है
भर गई कड़वाहट
रिश्तों में है शून्यता,
सुरक्षित नहीं रहा है
गाँव अब
रास्ते , पगडंडियां और गालियां
हो गई है असुरक्षित,
ना जाने
कहाँ से निकल आये कोई
और
कत्ल कर दे
सम्मान, संवेदना और सहृयता का,
नहीं रहा है गांव
अब गाँव ।

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