क्या
अजब जमाना है
लोग
बेच डालते है
माँ का नाम
और
करते है व्यवसाय
माँ के नाम पर,
भूल जाते है
संबंधो को
लूट जाते है ज़ज्बात
और
सजा लेते है
अपनी दूकान ,
बाँध डालते है
सीमाएं
धर्म और आस्था की,
तोड़ डालते है
विश्वास की डोर
और
कर डालते है
बेघर विश्वास को,
अर्थ का
समाज है
और
अर्थ के सम्बन्ध
छिनभिन्न कर डालते है
ममत्व और भातृत्व
सच क्या
ज़माना है ?
अजब जमाना है
लोग
बेच डालते है
माँ का नाम
और
करते है व्यवसाय
माँ के नाम पर,
भूल जाते है
संबंधो को
लूट जाते है ज़ज्बात
और
सजा लेते है
अपनी दूकान ,
बाँध डालते है
सीमाएं
धर्म और आस्था की,
तोड़ डालते है
विश्वास की डोर
और
कर डालते है
बेघर विश्वास को,
अर्थ का
समाज है
और
अर्थ के सम्बन्ध
छिनभिन्न कर डालते है
ममत्व और भातृत्व
सच क्या
ज़माना है ?
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