आज सभी समाचार चैनलों पर फेस बुक पर की जाने वाली टिप्पणियों का समाचार चर्चा होती रही वैसे यह मामला कपिल सिब्बल द्वारा उठाया गया। वैसे सिब्बल जी ठीक है 1 पिछले दिनों इन्ही टिप्पणियों के कारण फेसबुक को अलविदा कहने का मन हो रहा था। मित्रों ने फिलहाल इसे टालने का आग्रह किया। फेसबुक पर अधिकतर लोगों में शब्द चयन की शालीनता नहीं है। फेसबुक पर अध्यापक संघों के पृष्ठ बने है । शिक्षा से जुड़ा होने के कारण इन पृष्ठों पर जाता रहता हूं परन्तु दुख होता है कि शिक्षा से जुड़े लोगो के शब्द चयन भी ठीक नहीं है1 एक ने टिप्पणी में शुशु और पोटी शब्दों का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की तो उस व्यक्ति की सोच पर हैरानी होने लगी कि कैसे कैसे लोग है जो सम्भवत: शालीनता शब्द के महत्व को नहीं जानते । वैसे फेसबुक की जाने वाली टिप्पणियों पर नज़र रखी जानी चाहिए। फेसबुक सम्पर्क और सृजनात्मकता का साधन हो सकता है। वैसे कुछ सन्दर्भों को को छोड़ कर मेरा अनुभव अच्छा रहा है अच्छे और साहित्यिक मित्रों से सम्पर्क हो पाया है। खोए हुए मित्रों से पुन: संवाद स्थापित हो पाया है। सभी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए टिप्पणी करनी चाहिए। ग़लत को ग़लत कहना ही चाहिए समाज में ग़लत मान्यताओं का विरोध होना ही चाहिए। लेकिन इस विरोध में शब्दों की शालीनता पर भी अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए ।
मंगलवार, दिसंबर 06, 2011
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