करवा चौथ पर कोई वैदिक जानकारी अपने मित्रो को देना चाहता था कोशिश करने पर दैनिक भास्कर में पं. रमेश भोजराज द्विवेदी, जोधपुर. राजस्थान का लेख पढ़ा ! लेखक ने बहुत अच्छी जानकारी चंद्रमा पर दी ! अपने मित्रो के लिए पं. रमेश भोजराज द्विवेदी, जोधपुर. राजस्थान का लेख दे रहा हूँ
रिवाज वेदों के अनुसार विराट पुरुष के मन से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई है। प्रकृति की सबसे सुंदर कृति चंद्रमा को अत्यधिक चंचल माना गया है, मन भी चंचल है। चंचल यानी तेज़ गति से चलने वाला। ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा सबसे तेज़ चलने वाला ग्रह है, जो लगभग 54 घंटों में राशि परिवर्तन कर देता है। यह भी कहा जाता है कि यदि सूर्य जगत की आत्मा है, तो चंद्रमाप्राण है।
जगत काप्राण है चंद्रमा ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति को धनवान बनाने का कारक भी चंद्रमा ही है। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि के साथ जो अमृत कलश था, उसी से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई है। अमृत का काम जीवन को अमर बनाना होता है, शायद इसलिए चंद्रमा को जगत का प्राण माना गया है। चंद्रमा कृष्ण पक्ष में रोज घटता है और शुक्ल पक्ष में बढ़ता है। यह जल तत्व का कारक ग्रह है इसलिए जल तत्व को प्रभावित करता है और इसकी कलाओं के कारण ही समुद्र में ज्वार आता है। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल है। अत: यह हमारे जीवन पर भी बहुत प्रभाव डालता है।
सुंदरतम् है चंद्रमा कहते हैं चंद्रमा राजा है। 27 नक्षत्र इसकी रानियां हैं। लक्ष्मी सहोदरी (बहन) है। इनके पुत्र का नाम बुध है, जो तारा से उत्पन्न हुए हैं। चंद्रमा को सृष्टि में सबसे सुंदर माना गया है। साथ ही यह भावुकता प्रधान और सौंदर्य का उपासक है। चंद्रमा को सोलह कलाओं से युक्त कहा जाता है। प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक तथा अमावस्या के सहित चंद्रमा की कुल सोलह कलाएं बनती हैं।
शरद पूर्णिमा का चंद्रमा आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसके अलावा इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। पूरे साल में आश्विन मास की पूर्णिमा का चंद्रमा ही सोलह कलाओं का होता है। कहते हैं कि इस रात चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है। पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्णबली होता है और शरद कालीन चंद्रमा सबसे सुंदर होता है।
सुंदरतम् है चंद्रमा कहते हैं चंद्रमा राजा है। 27 नक्षत्र इसकी रानियां हैं। लक्ष्मी सहोदरी (बहन) है। इनके पुत्र का नाम बुध है, जो तारा से उत्पन्न हुए हैं। चंद्रमा को सृष्टि में सबसे सुंदर माना गया है। साथ ही यह भावुकता प्रधान और सौंदर्य का उपासक है। चंद्रमा को सोलह कलाओं से युक्त कहा जाता है। प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक तथा अमावस्या के सहित चंद्रमा की कुल सोलह कलाएं बनती हैं।
शरद पूर्णिमा का चंद्रमा आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसके अलावा इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। पूरे साल में आश्विन मास की पूर्णिमा का चंद्रमा ही सोलह कलाओं का होता है। कहते हैं कि इस रात चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है। पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्णबली होता है और शरद कालीन चंद्रमा सबसे सुंदर होता है।
शरद पूर्णिमा-व्रत विधान इस दिन लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला कोजागर व्रत किया जाता है। विवाह के बाद शरद पूर्णिमा से ही पूर्णमा के व्रत को आरम्भ करने का विधान है। कार्तिक का व्रत भी इसी दिन से ही शुरू किया जाता है। इसी दिन भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ है। कहते हैं कि पूर्णमासी के दिन जन्म लेने वाला जातक चंद्रमा की तरह ही सुंदर होता है और चंद्रमा की पूर्ण रश्मियां व सोलह कलाओं के पूर्ण गुण भी जातक को मिलते हैं। इस दिन स्नान करके विधिपूर्वक उपवास रखना चाहिए। तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई मां लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा करें। कथा सुनते समय हाथ में गेहूं के दाने रखें। साथ ही एक लोटे में जल, कटोरी में रोली व चावल रखें। कथा समाप्त होने पर हाथ के गेहूं को चिड़ियों को डाल दें और लोटे के जल से रात्रि को अघ्र्य दें। शाम को चंद्रोदय होने पर सोने, चांदी या मिट्टी के घी से भरे हुए 11 दीपक जलाएं। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार कर चंद्रमा की चांदनी में रख दें। एक प्रहर बीतने के बाद इस खीर को देवी लक्ष्मी को अर्पित करें। ब्राह्मण को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएं और मांगलिक गीत गाकर रात्रि जागरण करें। अगली सुबह स्नान कर लक्ष्मीजी की वह प्रतिमा ब्राह्मण को अर्पित करें। माना जाता है कि पूजा से प्रसन्न होकर लक्ष्मीजी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं, साथ ही परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
रास पूर्णिमा का महत्व नि:संदेह शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, चांदनी रात, शीतल पवन और अमृत वर्षा करता आकाश, जिस दिव्य वातावरण की सर्जना करता है, वह अद्वितीय है। यहीं से शरद ऋतु भी प्रारंभ होती हैं। आयुर्वेद में इस रात्रि का विशेष महत्व माना गया है। कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात्रि को श्वास रोग की औषधियां रोगी को देने से उसे जल्द ही लाभ मिलता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि चांद की रोशनी में सुई पिरोने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। आज ही के दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचा था। यह भी माना जाता है कि वर्ष में केवल शरद पूर्णिमा की रात को ही खिलने वाले ब्रम्हकमल पुष्प देवी लक्ष्मी को चढ़ाने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
रास पूर्णिमा का महत्व नि:संदेह शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, चांदनी रात, शीतल पवन और अमृत वर्षा करता आकाश, जिस दिव्य वातावरण की सर्जना करता है, वह अद्वितीय है। यहीं से शरद ऋतु भी प्रारंभ होती हैं। आयुर्वेद में इस रात्रि का विशेष महत्व माना गया है। कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात्रि को श्वास रोग की औषधियां रोगी को देने से उसे जल्द ही लाभ मिलता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि चांद की रोशनी में सुई पिरोने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। आज ही के दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचा था। यह भी माना जाता है कि वर्ष में केवल शरद पूर्णिमा की रात को ही खिलने वाले ब्रम्हकमल पुष्प देवी लक्ष्मी को चढ़ाने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
5 Reviews:
मेरे लिए इसमें नई जानकारियाँ थीं. उपलब्ध कराने के लिए आभार.
good information.
thanks.
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kai baaten pata nahin thi.... achha laga aapne yah lekh padhwaya... aabhar
आप ने चन्द में चार चान्द और लगा दिए ! सुभानअल्लाह !
बहुत दिनों बाद आज यहाँ आना हुआ माफ़ कीजियेगा , आई तो चाँद पर महत्वपूर्ण जानकारियां मिली जो चाँद सदियों से प्रेम का प्रतीक है सुन्दरता का प्रतीक है उस पर बहुमूल्य जानकारी मिली बधाई
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