google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : माता का उपदेश

मंगलवार, जून 30, 2009

माता का उपदेश


सम्राट अशोक को चक्रवर्ती सम्राटों में गिने जाने की धुन सवार थी! अनेक राज्यों को जीतते हुए अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया ! रणभूमि में पड़े असंख्य रक्तरंजित शवों को देख कर अशोक का हृदय द्रवित हो गया ! अशोक ने शस्त्र फेंक दिए और युद्घ रोककर सेना सहित वापिस लौट आया! सम्राट अशोक की माँ धार्मिक विचारों और दया की मूर्ति थी ! वह समय समय पर अशोक को सत्य अंहिसा तथा दया की शिक्षा देती थी! परन्तु महत्वांकाक्षी अशोक विजय अभियान पर निकल पड़ा ! कलिंग के युद्घ मैदान में शास्त्र फेकने के बाद अशोक को अपनी माँ की शिक्षा याद आई ! अशोक महल में अपनी माता के कक्ष में पहुंचे और माँ को रोते हुए बताया
की रणक्षेत्र में क्षत विक्षत शवों को देख कर उनका मन हाहाकार कर उठा और वे लोट आये !
माँ ने कहा पुत्र मैंने बचपन में ही तुझे धरम के प्रमुख तत्व और दया भावना ग्रहण करने की शिक्षा दी थी ! शक्ति के अहंकार ने तुझे युद्घ की तरफ चला गया ! यह सोच यदि तू हिंसा के विनाशकारी रास्ते पर न चलता तो अंसख्य महिलाएं न विधवा होती और न ही पुत्रविहीन ! अब अहिंसा के प्रचार में जीवन लगा कर ही इस घोर अधर्म तथा पाप से मुक्ति संभव है !
आगे चल कर अशोक ने भगवन बुध के रस्ते को अपना लिया और अपना जीवन धरम और अंहिंसा के प्रचार में लगा दिया !

2 Reviews:

वन्दना अवस्थी दुबे on 30 जून 2009 को 5:39 pm बजे ने कहा…

बढिया है.

Udan Tashtari on 30 जून 2009 को 11:36 pm बजे ने कहा…

आभार इस आलेख के लिए.

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