बुधवार, जून 03, 2009
बात पते की
महात्मा जिलानी बहुत बढे विद्वान् थे ! उनके प्रवचन सुनने दूर दूर से लोग आते थे ! एक दिन नगर के राजा ने उनसे कहा," महात्मन मैं चाहता हूँ की आप जनहित में निति का ऐसे ग्रथ की रचना करें जिससे राज्य में नेतिक वातावरण का निर्माण हो सके ! महात्मा ने राजा की बात मन ली ! राजा ने जिलानी को सभी सुविधाएँ प्रदान की ! जिलानी औए उनके शिष्य ग्रन्थ का का देखने लगे ! जिलानी का हर कार्य अनुकर्णीय था ! एक दिन उन सभी ने आपस में बातचीत की और उनका एक शिष्य बोला की क्या तुमने गुरूजी का चमत्कारी दीपक देखा है ? जब वे काम करतें है तो उसी दीपक को जलाते है ! परन्तु जब वे कोई दूसरा काम करते है तो वे दूसरा दीपक जलाते है ! अधिक जानकारी के लिए सभी शिष्य जिलानीजी के पास पहुंचे और इस बारे में जानना चाहा ! जिलानी जी ने उनकी जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा की जब मैं राजा कम काम करता हूँ तो उनके द्वारा दिया गया दीपक ही जलाता हूँ ! परन्तु जब मैं अपना काम करता हूँ तो व्यक्तिगत दीपक कम इस्तेमाल करता हूँ ! जिलानिजी ने शिष्यों को समझाते हुए कहा की राज्य के संसाधनों का उपयोग राज्य के काम के लिए ही होना चाहिए और अपने कामों के लिए अपने साधनों का ही प्रयोग होना चाहिए ! अगर सभी नागरिक अपने अपने कर्तव्य जाने तो राज्य का विकास अपने आप ही हो जाएगा !
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