आदमी आदमी को ही लूटता है
अपना पराया सभी को लूटता है
क्या खोया क्या पाया सोचता है
दुख भीतर ही तो कचोटता है
जीवन में खो जाते है जो जो
उन्ही को बार बार खोजता है
हार जीत का प्रश्न है गौण अब
जीवन जीवन को ही घसीटता है
दे दे विराम कह दे अलविदा
यही विचार अब जहर घोलता है
अजब है तुम्हारी ये बड़ी बड़ी बातें
विक्षिप्त कभी झूठ नहीं बोलता है
अपना पराया सभी को लूटता है
क्या खोया क्या पाया सोचता है
दुख भीतर ही तो कचोटता है
जीवन में खो जाते है जो जो
उन्ही को बार बार खोजता है
हार जीत का प्रश्न है गौण अब
जीवन जीवन को ही घसीटता है
दे दे विराम कह दे अलविदा
यही विचार अब जहर घोलता है
अजब है तुम्हारी ये बड़ी बड़ी बातें
विक्षिप्त कभी झूठ नहीं बोलता है
3 Reviews:
आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 08/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 266 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
हां..आज का सच ही लिखा आपने। साधुवाद
विक्षिप्त कभी भी झूठ नही कहता
रेखांकित करती हूँ.....आपके इस आधार शिला को
सादर
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