google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : आदमी आदमी को लूटता है

गुरुवार, अप्रैल 07, 2016

आदमी आदमी को लूटता है

आदमी आदमी को ही लूटता है
अपना पराया सभी को लूटता है

क्‍या खोया क्‍या पाया सोचता है
दुख भीतर ही तो कचोटता है

जीवन में खो जाते है जो जो
उन्‍ही को बार बार खोजता है

हार जीत का प्रश्‍न है गौण अब
जीवन जीवन को ही घसीटता है

दे दे विराम कह दे अलविदा
यही विचार अब जहर घोलता है

अजब है तुम्हारी ये बड़ी बड़ी बातें
विक्षिप्त कभी  झूठ नहीं बोलता है

3 Reviews:

kuldeep thakur on 7 अप्रैल 2016 को 9:27 am बजे ने कहा…

आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 08/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 266 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

रश्मि शर्मा on 8 अप्रैल 2016 को 5:53 pm बजे ने कहा…

हां..आज का सच ही लि‍खा आपने। साधुवाद

yashoda Agrawal on 17 अप्रैल 2016 को 7:48 am बजे ने कहा…

विक्षिप्त कभी भी झूठ नही कहता
रेखांकित करती हूँ.....आपके इस आधार शिला को
सादर

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