google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : अहंकार पतन का कारण

मंगलवार, जून 15, 2010

अहंकार पतन का कारण

राजा भुवनेश्वर ने अनेक अश्वमेध और वाजपेय यज्ञ कराए थे। उन्हें अहंकार हो गया कि पृथ्वी पर उनसे बड़ा धर्मात्मा और कोई नहीं है। उन्होंने राज्य में घोषणा करा दी कि यज्ञ होम करके ही पूजा-उपासना की जा सकती है। जो इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे दंड दिया जाएगा। राज्य में हरिमित्र नामक एक पहुंचे हुए भक्त रहते थे। एक दिन नदी के तट पर जब वह वीणा पर संकीर्तन कर रहे थे, तो राजा के दूत ने उन्हें देख लिया। उसने राजा से शिकायत कर दी कि एक ब्राह्मण यज्ञ होम करने की जगह मूर्ति के सामने नाच-गाकर भगवान को रिझाने का प्रयास कर रहा है। अहंकार में डूबे राजा ने हरिमित्र को पकड़कर दरबार में बुलवाया और पूछा, ‘तुम वेदों के अनुसार यज्ञ-हवन न करके मनमानि ढंग से कीर्तन द्वारा पूजा क्यों कर रहे हो?’ हरिमित्र का उत्तर था, ‘राजन, मैं वेदशास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को नहीं समझ सकता। भगवान की मूर्ति के सामने नाच-गाकर उनके नाम का उच्चारण करने से मुझे परम शांति मिलती है।’ राजा संतुष्ट नहीं हुआ और उसने उन्हें राज्य से निकल जाने का आदेश दिया। कुछ दिनों बाद राजा भुवनेश्वर की मृत्यु हो गई। यमराज ने उनके कर्मों का खाता देखकर उन्हें उल्लू की योनि में भेजने का आदेश दिया। राजा ने सकपकाकर धर्मराज से पूछा, ‘मैंने जीवन में असंख्य अश्वमेध यज्ञ किए हैं। प्रजा को धर्मशास्त्रों के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। ऐसा फिर भला कौन सा पाप है, जो मुझे उल्लू योनि में भेजा जा रहा है?’ धर्मराज ने राजा को हरिमित्र वाली घटना की याद दिलाते हुए बताया, ‘अहंकार और मनमाने व्यवहार के कारण ही तुम्हारे तमाम पुण्य क्षीण हो गए हैं। इसलिए तुम्हें उल्लू योनि में भेजा जा रहा है।’ राजा समझ गया कि अहंकार पतन का कारण अवश्य बनता है

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