google.com, pub-7517185034865267, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आधारशिला : सतलुज

बुधवार, सितंबर 12, 2018

सतलुज

सतलुज निष्प्राण हो गई 
ममता पाषाण हो गई।

सीना हो रहा निरंतर छलनी
वीरानगी अब प्राण हो गई।

संस्कृति हो रही रोज विलुप्त
वीभत्सता अब विज्ञान हो गई। 

जीवन की आशा है कम कम 
अंधेरा, सिसकियाँ जान हो गई। 

पहाड़ सिसकता है अन्तस है सूखा
पानी की एक बूंद अरमान हो गई। 

दौड़ते घूमते देखते है सब
निर्जीव सेल्फी शान हो गई।

(कल्पा यात्रा के दौरान कड़छम के पास )

0 Reviews:

एक टिप्पणी भेजें

" आधारशिला " के पाठक और टिप्पणीकार के रूप में आपका स्वागत है ! आपके सुझाव और स्नेहाशिर्वाद से मुझे प्रोत्साहन मिलता है ! एक बार पुन: आपका आभार !

 
ब्लोगवाणी ! INDIBLOGGER ! BLOGCATALOG ! हिंदी लोक ! NetworkedBlogs ! हिमधारा ! ऐसी वाणी बोलिए ! ब्लोगर्स ट्रिक्स !

© : आधारशिला ! THEME: Revolution Two Church theme BY : Brian Gardner Blog Skins ! POWERED BY : blogger